डेस्क न्यूज – राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक के विरोध में दिल्ली सहित देश भर के डॉक्टर हड़ताल पर हैं। इस बिल के कई प्रावधानों को लेकर डॉक्टरों के संगठनों ने आपत्ति जताई है। हालांकि इस बिल को अब राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई है। डॉक्टरों का कहना है कि एनएमसी बिल राष्ट्रविरोधी, स्वास्थ्य विरोधी और गरीब विरोधी है। इससे स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी। जानिए क्या है एनएमसी बिल जिसे लेकर हड़ताल पर हैं देशभर के डॉक्टर्स…
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान साल 2018 में नेशनल मेडिकल कमीशन बिल को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने लोकसभा में रखा था। जिसे अब राज्यसभा में पारित कर दिया गया है।
भारत में अब तक मेडिकल शिक्षा, मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से संबंधित काम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की ज़िम्मेदारी थी। अब अगर इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है तो नेशनल काउंसिल ऑफ इंडिया खत्म हो जाएगी और इसकी जगह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (नेशनल मेडिकल कमीशन) ले लेगा।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग एक 25 सदस्यीय संगठन होगा जिसमें एक अध्यक्ष, एक सचिव, आठ पदेन सदस्य और 10 अंशकालिक सदस्य शामिल होंगे। यह आयोग स्नातक और परास्नातक चिकित्सा शिक्षा को देखेगा। इसके अलावा यह आयोग चिकित्सा संस्थानों की मान्यता और डॉक्टरों के पंजीकरण की व्यवस्था भी देखेगा।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाएगी। जबकि, सदस्यों को एक सर्च कमेटी द्वारा नियु्क्त किया जाएगा। जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे। पहले यह प्रक्रिया एक चुनाव द्वारा पूरी की जाती थी।
ये भी पढ़ें – मोदी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था को लेकर आयी बुरी..
एनएमसी बिल में ये हैं प्रावधान…
केंद्र सरकार इस बिल के अंतर्गत एक काउंसिल का गठन करेगी जहां राज्य मेडिकल शिक्षा और ट्रेनिंग के बारे में अपनी समस्याएं और सुझाव दर्ज करा सकेंगे। इसके बाद यह काउंसिल राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को मेडिकल शिक्षा से संबंधित सुझाव देगी।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग देश भर के सभी निजी मेडिकल संस्थानों में 40 फीसदी सीटों की फीस तय करेगा। जबकि शेष बचे हुए 60 फीसदी सीटों की फीस निजी संस्थान खुद तय करेंगे।
इस बिल के धारा 49 के अंतर्गत एक ब्रिज कोर्स करते आयुर्वेद, होम्योपेथी के डॉक्टर भी एलोपेथी इलाज करने के योग्य हो जाएंगे।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की धारा 58 के अनुसार इस कानून के प्रभावी होते ही मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ इसके अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त हो जाएंगी। इसके एवज में उन्हें तीन महीने का वेतन और भत्ते मिलेंगे।
मेडिकल की होगी एक परीक्षा- नए बिल के लागू होते ही देश के सभी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए केवल एक परीक्षा ही ली जाएगी। इस परीक्षा का नाम नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट होगा।