महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच चल रहे सीमा विवाद ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बुधवार को एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा कि जब तक दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद का निपटारा नहीं हो जाता,
तब तक विवादित हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाना चाहिए।
उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग कर डाली।
मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग-कर्नाटक
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने कहा ,
“हम महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बयान की निंदा करते हैं। हमें विश्वास है कि चीजें सर्वोच्च न्यायालय में हमारे पक्ष में होंगी।” सावदी ने
कहा कि हमारे क्षेत्र के लोगों की मांग है कि हम भी मुंबई-कर्नाटक
(क्षेत्र) का हिस्सा रहे हैं, इसलिए हमारा भी मुंबई पर अधिकार है। ”
सावदी ने कहा कि लोग चाहते हैं कि मुंबई को उनके राज्य में शामिल किया जाए और जब तक ऐसा नहीं होता है, तब तक इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए। जब तक मुंबई कर्नाटक का हिस्सा नहीं बन जाता, तब तक मैं केंद्र सरकार से
गुजारिश करूंगा कि इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए जैसा कि 1967 की महाजन आयोग की रिपोर्ट-
जिसे तत्कालीन कर्नाटक द्वारा स्वागत किया गया था, में कहा गया है।
ऐसे गरमाया सीमा विवाद मामला
महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद को लेकर एक किताब जारी की थी।इसी कार्यक्रम
में उद्धव ठाकरे ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में मामला होने के बावजूद कर्नाटक सरकार ने जानबूझकर विवादित बेलगाम
क्षेत्र का नाम बदला।उद्धव ठाकरे ने कहा कि इस इलाके में रहने वाले मराठी भाषियों पर हो रहे अत्याचार को देखते हुए हमारी सरकार
सुप्रीम कोर्ट से अपील करेगी कि जब तक मामला कोर्ट में है, तब तक वह इस हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करे।
अब कर्नाटक के डिप्टी सीएम ने इसी का जवाब दिया है।
मामला क्या है
बेलगाम को लेकर कर्नाटक और महाराष्ट्र में विवाद चल रहा है। यह शहर कर्नाटक में है, लेकिन महाराष्ट्र लंबे
समय से इस पर अपना दावा ठोक रहा है। महाराष्ट्र बेलगाम, करवार और निप्पनी सहित कर्नाटक के
कई हिस्सों पर दावा करता है। उसका कहना है कि इन इलाकों में अधिकतर आबादी मराठी भाषी हैं।
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद का यह मामला कई सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
विवाद का कारण क्या है?
देश आजाद होने से पहले महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य नहीं थे। उस समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी और मैसूर स्टेट हुआ करते थे।
अभी के कर्नाटक के कई इलाके तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे। आजादी के बाद राज्यों का बंटवारा
शुरू हुआ और 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून लागू हुआ, तो बेलगाम को महाराष्ट्र की जगह मैसूर स्टेट का हिस्सा
बना दिया गया और मैसूर स्टेट का नाम बदलकर 1973 में कर्नाटक हो गया। बेलगाम में मराठी
बोलने वालों की संख्या काफी होने की वजह से इसे महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग राज्य पुनर्गठन के समय से ही हो रही है।
1957 में ही महाराष्ट्र सरकार ने बेलगाम को कर्नाटक का हिस्सा बनाने का विरोध करते हुए इस पर एक आयोग
बनाने की मांग की। रिटायर्ड जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में बने आयोग ने अपनी रिपोर्ट में
सिफारिश की उत्तर कन्नड़ जिले में आने वाले कारवाड सहित 264 गांव के साथ ही हलियल और सूपा इलाके के 300 गांव
भी महाराष्ट्र को दिए जाएं। इस रिपोर्ट में भी बेलगाम शहर को महाराष्ट्र में शामिल किए जाने
की सिफारिश नहीं की गई। रिपोर्ट में महाराष्ट्र के शोलापुर समेत 247 गांवों के साथ केरल का कासरगोड
जिला भी कर्नाटक को देने की सिफारिश की गई। महाराष्ट्र और कर्नाटक, दोनों ने इन सिफारिशों को मानने से इनकार कर दिया।
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