कोलंबो – दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते दवाब को कम करने के लिए भारत और जापान ने मिलकर श्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह को कंटेनर टर्मिनल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है। भारत, जापान और श्रीलंका जल्द ही एक बैठक करेंगे जिसमें इस प्रोजेक्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में लगातार चीन अपनी पैठ बना रहा है जो भारत के लिए एक चिंता का विषय है। ऐसे में हिन्द महासागर में भारत और जापान का साथ आना चीन के प्रभाव को कम करेगा।
भारत और जापान इस प्रोजेक्ट को 49 फीसदी नियत्रितकरेंगे। जबकि श्रीलंका के पास का 51 फीसदी नियत्रंण होगा। इससे पहले चीन द्वारा मिलेकर्ज को नही चुका पाने के कारण श्रीलंका को अपना हम्बनटोंटा पोर्ट चीन को 99 साल के लिए लीज पर देना पडा था।
श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी (एसएलपीए) का कहना है किश्रीलंका के कोलंबो बंदरगाह से होने वाला व्यापार भारत के साथ 70 फीसदी से भी अधिकहै। और श्रीलंका हिंद महासागर का केंद्र होने के कारण इसके बंदरगाहों का विकसित होनाबेहद जरूरी है। यह एक साझा प्रोजेक्ट है, जो तीनों देशोंकी लंबे समय से चली आ रही दोस्ती और सहयोग को दर्शाता है।
थोडे समय पहले एक रिपोर्ट में दावा किया गया था किहम्बनटोटा पोर्ट पर चीन के बढ़ते कर्ज के चलते श्रीलंका कोलंबो बंदरगाह विकसित करनेमें दूसरे देशों का सहयोग मांग सकता है। इसमें भारत और जापान का नाम सबसे आगे था। इसकेलिए जापान 40 साल के लिए कर्ज दे सकता है और किसी स्थिति में कर्ज ना चुका पाने परकर्ज चुकाने के लिए 10 साल का अतिरिक्त समय देगा।
भारत और जापान मिलकर के यदि प्रोजेक्ट पर साथ मिलकरके काम करते है तो हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते दबाव को कम कर सकते है। दक्षिण एशियामें चीन लगातार अपना प्रभुत्व जमाने में लगा है, चीन छोटेछोटे देशों को कर्ज देकर उनको फंसाने में लगा है। और यदि वे देश कर्ज वापस नही चुकापाते तो चीन उनके सामने कई शर्ते लगा देता है जिससे चीन का उन देशों पर नियत्रण होनेलगता है।