डेस्क न्यूज़- अक्सर हम प्लास्टिक की बोतलें, चादरें, डिब्बे कचरे के रूप में फेंक देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस चीज की हमें जरूरत होती है वह भी उसी प्लास्टिक कचरे से बनाई जा सकती है। वो भी इको फ्रेंडली तरीके से। यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है, लेकिन यह एक सच्चाई है। ऐसी ही एक पहल दिल्ली के सन्नी गोयल और खंडवा की उन्नति मित्तल ने शुरू की है। दोनों मिलकर प्लास्टिक के कचरे से फर्नीचर और घर की सजावट का सामान बना रहे हैं। उन्होंने इस स्टार्टअप को एक साल पहले ही शुरू किया था। अभी वह इससे हर महीने एक लाख रुपये कमा रहे हैं।
दरअसल प्लास्टिक कचरा हम सभी के लिए एक बड़ी चुनौती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 15 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। इसका अधिकांश भाग समुद्र में फेंक दिया जाता है। प्लास्टिक बहुत छोटे पैमाने पर डिकम्पोज या रिसाइकिल किया जाता है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के बारे में जागरूकता थोड़ी बढ़ी है। इस परेशानी को कम करने के लिए कई युवा काम कर रहे हैं।
21 साल के सन्नी और 22 साल के उन्नति दोनों बीकॉम ग्रेजुएट हैं। दोनों ने मध्य प्रदेश के इंदौर के एक कॉलेज से एक साथ पढ़ाई की है। सनी का कहना है कि जब मैं फर्स्ट ईयर में था तो दोस्तों के साथ टूर पर जाया करता था। प्लास्टिक कचरा अक्सर वहां पाया जाता था। लोग प्लास्टिक कचरे को इस्तेमाल करने के बाद इधर-उधर फेंक देते थे। मैं इससे परेशान होता था और तब से सोच रहा था कि इससे कैसे छुटकारा पाया जाए।
साल 2018 में मैंने इस बारे में अपने कॉलेज के एक प्रोफेसर से बात की थी। फिर उन्होंने प्लास्टिक कचरा प्रबंधन की जानकारी दी। इसके बाद मैंने इसके बारे में शोध करना शुरू किया। कई प्रोजेक्ट्स का अध्ययन किया और पहला प्रोटोटाइप कॉलेज की लैब में ही तैयार किया गया। यह सफल रहा। लोगों ने तारीफ भी की। कुछ दिनों बाद एक प्रतियोगिता में हम विजेता बने और पुरस्कार मिला।
सन्नी और उन्नति ने मिलकर इंदौर में किराए पर ऑफिस लिया। कुछ कर्मचारियों और इंटर्न को काम पर रखा। इसके बाद लैब और कंप्रेसर मशीन की व्यवस्था की। इसमें करीब 10 लाख रुपए खर्च हुए। उन्होंने अपनी कंपनी को प्लामेंट नाम से पंजीकृत किया और काम करना शुरू कर दिया। सनी का कहना है कि हमने इंदौर में स्कूल, कॉलेज और कुछ रेस्टोरेंट के लिए फर्नीचर बनाया। कई लोगों के लिए हमने घर का जरूरी सामान भी तैयार किया। चूंकि हमारा आइडिया यूनिक था और क्वालिटी अच्छी थी इसलिए लोगों की डिमांड बढ़ती रही।
हालांकि, कोरोना के कारण देशव्यापी लॉकडाउन था। इसका सीधा असर हमारे कारोबार पर पड़ा। शुरुआत में हम यह तय नहीं कर पा रहे थे कि इसे कैसे आगे बढ़ाया जाए। कारीगर काम करने को तैयार नहीं थे और महामारी के बीच उन्हें काम पर बुलाना भी सही नहीं था। इसलिए कुछ महीनों के बाद हमें काम बंद करना पड़ा। उसके बाद जब स्थिति बेहतर हुई तो हमने वापस काम करना शुरू किया, लेकिन फिर दूसरी लहर का खतरा पैदा हो गया। हमें फिर से काम करना बंद करना पड़ा। हालांकि, चीजें अब धीरे-धीरे बेहतर हो रही हैं। हम अपने काम पर वापस जा रहे हैं। हमें कई व्यक्तियों और कॉर्पोरेट ग्राहकों से ऑर्डर मिले हैं। कोविड के बाद भी हमने पिछले एक साल में करीब 12 लाख रुपए का कारोबार किया है।
सनी बताते हैं कि प्लास्टिक कचरे से फर्नीचर तैयार करने के लिए सबसे पहले हम प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करते हैं। इसके लिए हमने जमीन के साथ-साथ स्थानीय नगर पालिका के कार्यकर्ताओं से भी संपर्क किया है। वे हमें प्लास्टिक कचरे की आपूर्ति करते हैं। प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने के बाद हम उसे अलग-अलग कैटेगरी में बांटते हैं। फिर इसे एक निश्चित तापमान पर गर्म किया जाता है। इससे प्लास्टिक का कचरा पिघलता है। इसके बाद हम इसमें एक केमिकल मिलाते हैं। और प्रोसेसिंग के बाद शीट तैयार करते हैं। इस शीट को गुणवत्ता परीक्षण के बाद प्रोटोटाइप पर फिट किया जाता है। फिर इससे फर्नीचर और अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं।
फिलहाल सनी की टीम में 4 लोग काम करते हैं। इसके अलावा उनके साथ कुछ इंटर्न भी जुड़े हुए हैं। वर्तमान में वे कार्यालय उपयोग से लेकर घर की साज-सज्जा तक एक दर्जन से अधिक सामान बना रहे हैं। कई ग्राहकों के लिए वे अपनी मांग के अनुसार कस्टमाइज्ड उत्पाद भी बनाते हैं। मार्केटिंग के लिए सनी सोशल मीडिया, रिटेलरशिप और वर्ड ऑफ माउथ का इस्तेमाल कर रहे हैं। जल्द ही वे अपने उत्पाद की मार्केटिंग Amazon और Flipkart पर भी करेंगे। उन्होंने फर्नीचर बनाने वाली कई थोक दुकानों से भी गठजोड़ किया है।
अगर कोई इस क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहता है, तो उसे सबसे पहले प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को समझना होगा। आपको प्रक्रिया को समझना होगा। इस संबंध में केंद्र सरकार और राज्य सरकार भी प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित करती है। कई निजी संस्थान भी यह प्रशिक्षण देते हैं। इसका प्रशिक्षण इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से लिया जा सकता है। इस सेक्टर में काम करने वाले कई लोग इसमें ट्रेनिंग भी देते हैं।
प्लास्टिक कचरा प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अभियान चला रही हैं। कई शहरों में प्लास्टिक कचरा संग्रहण केंद्र भी बनाए गए हैं। जहां लोगों को कचरे के बदले पैसे मिलते हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के तहत प्लास्टिक वेस्ट मैन के लिए कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है