आखिर क्या? है एनआरसी, फाइनल लिस्ट में नहीं है जिसका नाम क्या वो हिंदुस्तानी नहीं है..

एनआरसी की फाइनल लिस्ट में 19 लाख (19,06,657) लोगों का नाम नहीं
आखिर क्या? है एनआरसी, फाइनल लिस्ट में नहीं है जिसका नाम क्या वो हिंदुस्तानी नहीं है..

न्यूज – असम में कडी सुरक्षा बंदोबस्त के बाद असम में एनआरसी की अंतिम लिस्ट जारी हो गई है, एनआरसी की फाइनल लिस्ट में 19 लाख (19,06,657) से अधिक व्यक्तियों को छोड़ दिया गया था, यानी की ये लोग अपनी भारतीय नागरिकता साबित नहीं कर पाये, इसका मतलब ये भी है कि ये लोग या तो भारत तो भारतीय नागरिक नहीं है या फिर घुसपैठिए है,

अतिंम लिस्ट में 3.11 करोड़ (3,11,21,004) को असम की नागरिक सूची में शामिल किया गया था। यानी की ये लोग ही भारतीय नागरिक है। अब इनको 120 दिन में फॉरेन ट्रिब्यूनल के सामने अपील करना होगी जहाँ तय होगा कि ये नागरिक है या नहीं, आपको बता दें, 24 मार्च 1971 कट ऑफ़ डेट थी, इससे पहले असम में रहने वाले लोग या, उनके वंशज ही नागरिक माने जाएँगे।

NRC शनिवार को सुबह 10 बजे https://www.nrcassam.nic.in पर प्रकाशित किया गया था।

सरकार ने आश्वस्त किया है कि रजिस्टर से बाहर रखने वालों का मतलब यह नहीं होगा कि उन्हें स्वचालित रूप से विदेशी लेबल दिया जाएगा। सरकार ने असम के लोगों को अफवाहों पर ध्यान न देने की सलाह भी दी।

अंग्रेजों के जमाने में  रोजगार के लिए यहां लोग बाहर से आते थे इसलिए बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों के चलते स्थानीय बनाम बाहरी का प्रतिरोध हमेशा से चलता रहा था, असम एक बडा राज्य था और इसलिए आज़ादी के बाद बड़ी संख्या में लोग पूर्वी पाकिस्तान जो आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है, वे भारत में आए थे और असम पास में होने के कारण यहां बस गए।

इसके बाद से राज्य में बाहरी लोगों के अवैध रूप से आने का मुद्दा सिर उठाने लगा और 1951 की जनगणना के बाद एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स तैयार किया गया, तब इसे जनगणना के दौरान मिले लोगों के विवरण के आधार पर तैयार किया गया था। स्थितियां तब गंभीर हुईं जब पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला भाषा आंदोलन शुरू हुआ और लोग बांग्लाभाषी लोग पलायन कर भारत पहुंचने लगे, समय के साथ यह आंदोलन बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में बदल गया, जिसका अंत 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश के गठन के साथ हुआ,

ऐसा बताया जाता है कि उस समय तकरीबन दस लाख लोग बांग्लादेश से भारत पहुंचे थे. हालांकि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि भारत शरणार्थियों का बोझ वहन नहीं करेगा और किसी भी धर्म के शरणार्थी हों, उन्हें वापस जाना ही होगा।

1971 में बांग्लादेश के गठन के बाद इनमें से अधिकतर वापस चले गए लेकिन आंकड़े बताते हैं कि एक लाख के करीब बांग्लादेशी असम में ही रह गए, असम आंदोलन मुख्य रूप से ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) और असम गण संग्राम परिषद शामिल थे, इस आंदोलन को असमिया बोलने वाले हिंदू, मुस्लिम, यहां तक कि बांग्लाभाषियों का भी समर्थन मिला।

1983 में मोरीगांव जिले के नेल्ली में हुए नरसंहार के बाद केंद्र सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौते को लेकर बाचीत शुरू हुई और 15 अगस्त 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लालकिले से अपने भाषण में असम समझौते की घोषणा की, इसके अनुसार 25 मार्च 1971 के बाद राज्य में आए लोगों को विदेशी माना जाएगा और वापस उनके देश भेज दिया जाएगा,

इसके बाद एनआरसी अपडेट का मुद्दा 1999 में केंद्र की वाजपेयी सरकार ने उठाया और इसे अपडेट करने का फैसला लिया. हालांकि साल 2004 में सरकार बदलने तक इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया गया, मई 2005 में मनमोहन सिंह सरकार के समय केंद्र, असम सरकार और आसू नेताओं की बैठक हुई और एनआरसी अपडेट करने का निर्णय लिया गया।

2009 में सुप्रीम कोर्ट भी इस प्रक्रिया में जुड़ गया, जब असम पब्लिक वर्क्स नाम के एक एनजीओ ने अवैध प्रवासियों को असम की मतदाता सूची से हटाने को लेकर शीर्ष अदालत में याचिका दायर की।

जून 2010 में राज्य के दो जिलों- कामरूप और बारपेटा में एनआरसी अपडेट करने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया, लेकिन हिंसा और कानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्याओं के चलते इसे महीने भर में ही बंद करना पड़ा,

इसके बाद राज्य सरकार ने जुलाई 2011 में इस प्रक्रिया को और आसान बनाने के लिए एक सब-कमेटी बनाई, मई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एनआरसी संबंधी तौर-तरीकों को अंतिम प्रारूप देने का निर्देश दिया। इसके बाद साल 2014 में कोर्ट ने एनआरसी अपडेट करने की यह प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया और तब से सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहा है,

2015 में एनआरसी आवेदन की प्रक्रिया शुरू हुई और अदालत ने 31 दिसंबर 2017 को इसे पूरा करने को कहा, एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर 2017 और एक जनवरी 2018 की रात में प्रकाशित हुआ था, इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से सिर्फ 1.9 करोड़ लोगों के नाम ही शामिल किए गए थे। इसके बाद 31 जुलाई 2018 में प्रकाशित एनआरसी के फाइनल मसौदे में कुल 3.29 करोड़ आवेदनों में से 2.9 करोड़ लोगों का नाम शामिल हुए थे, जबकि 40 लाख लोगों को इस सूची से बाहर कर दिया गया था।

Related Stories

No stories found.
logo
Since independence
hindi.sinceindependence.com