एग्रीकल्चर डेस्क – कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था चरमराई तो लेकिन इस दौरान कृषि के क्षेत्र में कई फायदे दिखे बेहतर मानसून के कारण सरकार ने फसल वर्ष 2020-21 (जुलाई-जून) के दौरान 30.1 करोड़ टन अनाज की पैदावार का लक्ष्य रखा. ये काफी बड़ा टारगेट है, जो पिछले साल के उत्पादआज भारत देश की तुलना दुनिया के बडे अन्न उत्पादक देशो में होने लगी है। पहले भारत अनाज के लिए पश्चिमी देशो पर न से करीब 1.5 प्रतिशत ज्यादा है.
उन्नत तकनीक के कारण ही अनाज की पैदावार के लिए लक्ष्य बढ़ाने का फैसला लिया गया अब किसान पूरी तरह
से पारंपरिक तरीकों पर निर्भर नहीं रहे, बल्कि वे तकनीक के मेल से पैदावार बढ़ा रहे हैं.
उन्नत पैदावार के लिए मोबाइल फोन एप्प का उपयोग
पंजाब की ही बात करें तो वहां की सरकार ने पंजाब रिमोट
सेंसिंग सेंटर (PRSC) तैयार किया है. ये मोबाइल फोन के जरिए किसानों
को मिट्टी की उर्वरता से लेकर हवा की गुणवत्ता तक के बारे में
बताता है ताकि किसान उसके मुताबिक फैसला ले सकें.
इसके तहत तीन एप्लिकेशन हैं, I-खेत मशीन, e-पहल और e-प्रिवेंट.
ड्रोन्स का उपयोग भी आम हो चुका है
खेती में अब ड्रोन्स का उपयोग भी आम हो चुका है. ये केवल यहीं तक सीमित नहीं कि ड्रोन्स खेतों पर उड़ते हुए
फसल की निगरानी करें या डाटा जमा करें. ड्रोन्स का काम इससे काफी आगे निकल चुका है.
वो अलग-अलग श्रेणियों के तहत डाटा जमा करते हैं ताकि स्मार्ट खेती हो सके.
सही सेंसर इस्तेमाल करने से किसानों को रियल-टाइम डाटा मिल पाता है कि फसल कैसी तैयार हो रही है, कहां पर
किसी तरह की खरपतवार पैदा हो रही है और कहां मिट्टी का उपजाऊपन घट रहा है. इससे किसानों को समझने में मदद होती है
कि खेत के किस एरिया में बेहतर सिंचाई या गुड़ाई की जरूरत है. इसके अलावा ड्रोन के जरिए पानी का या
खाद का छिड़काव भी किया जाता है. देश में आंध्रप्रदेश ड्रोन के उपयोग में काफी आगे निकल चुका है,
वहां मकई की उन्नत खेती में इसका जमकर उपयोग हो रहा है.
विशाल डाटा को एक जगह जमा करके रखा जाता है
पहले जमीन का रिकॉर्ड रखने का काम भारी मेहनत मांगता था और मैनुअल होने के कारण इसमें गड़बड़ूी का डर भी बना रहता था.
अब बिग डाटा की मदद से विशाल डाटा को एक जगह जमा करके रखा जाता है. इससे तुलना में मदद मिलती है.
इसके अलावा एनालिटिक्स से रियल टाइम डाटा भी मिलता है. साथ ही किसानों को तुरंत ही
ये पता चलता है कि वे खेती में जो तकनीक अपना रहे हैं, वो कितनी कारगर है. इसके लिए दूसरी खेती से तुलना भी होती है
और उनकी तकनीकों का भी ब्यौरा रहता है. इससे भविष्य में खेती के लिए तय करने में किसान को मदद होती है.
मौसम में बदलाव के बारे में भी किसान इससे जानकारी ले पाते हैं. इससे होता ये है कि
वे समय पर खेती के बचाव के निर्णय ले पाते हैं. या फिर वक्त रहते खेती की किस्म बदल पाते हैं.
सिंचाई तकनीकों में भी काफी बदलाव हुए
इसके अलावा सिंचाई तकनीकों में भी काफी बदलाव हुए हैं. अब किसान टपक सिंचाई और सूक्ष्म बूंद सिंचाई
जैसी तकनीक को अपना रहे हैं. सिंचाई की इन तकनीकों से पैदावार में बढ़ोत्तरी, पानी का सही
मात्रा में उपयोग और पौधों को संतुलित रूप से पोषक तत्वों की पूर्ति करने जैसे लाभ हो रहे हैं. फिलहाल भारत में यह
इंडस्ट्री लगभग 4 बिलियन डॉलर का कारोबार कर रही है. साल 2022 तक इसके बढ़कर 6.54 बिलियन
डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है.
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