Madhuri Sonkar
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में आज भी जब चर्चा होती तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। फिर भला उस नौजवान के दिल में आग क्यों न लगती, जो उस घटना का गवाह था।
उसके दिल में इस नरसंहार के जिम्मेदार से बदला लेने की ज्वाला ऐसी धधकी की सात समुद्र पार जाकर 21 साल बाद उसे अंजाम दिया। ये कोई और नहीं ब्लकि उधम सिंह थे।
उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था। ये पहले भारतीय थे, जिन्होंने अंग्रेज अधिकारी से उसी के देश में घुसकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था।
13 मार्च 1940 को लंदन में रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी के कॉक्सटन हॉल में माइकल डायर को स्पीच देनी थी। उधम सिंह वहां रिवाल्वर समेत पहुंचने में कामयाब हो गए।
संयोग देखिए कि माइकल डायर ने अपने भाषण में कहा कि अगर उसे मौका मिले तो दोबारा जलियांवाला बाग नरसंहार को दोहराएगा। यही वह वक्त था, जब उधम सिंह ने रिवाल्वर की गोलियां उसके सीने में उतार दीं। दो गोली लगने से माइकल डायर की मौके पर ही मौत हो गई।
21 साल पुरानी कसम पूरी हुई तो उधम सिंह के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। भागने की कोशिश करने के बजाय वहीं खड़े रहे, गिरफ्तार हुए। कोर्ट में पेशी के दौरान उधम सिंह ने कहा कि माइकल डायर को मारा क्योंकि वह इसी लायक था। 31 जुलाई 1940 को लंदन की पेंटविले जेल में उधम सिंह हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए।