डेस्क न्यूज – पश्चिम बंगाल में राज्य विधानसभा चुनावों से पहले, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बिहार में नीतीश मंत्रिमंडल में पार्टी के जाने-माने चेहरे सैयद शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) की वापसी कराई है।
भाजपा सीएम नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए का सहयोगी दल है।
नीतीश कैबिनेट में हुसैन की एंट्री कराकर अब पार्टी बड़े पैमाने पर ममता बनर्जी शासित राज्य पश्चिम बंगाल में लाभ उठाना चाह रही है।
सैयद शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) ने पहली बार आज यानी 9 फरवरी को पटना के राजभवन में मंत्री के रूप में शपथ ली।
इसके साथ ही लंबे समय से नीतीश मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों पर विराम लग गया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री हुसैन केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा थे।
जब वो 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए थे। तब पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया गया था।
शाहनवाज हुसैन भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे थे
जाहिर तौर से उनके ‘अच्छे दिन’ के लौटने की उम्मीद थी।
बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में शपथ लेने के दो सप्ताह से भी कम समय के बाद उन्हें अंततः नीतीश मंत्रालय में शामिल कर लिया गया।
शाहनवाज हुसैन न केवल एक विशेष समुदाय से आते हैं और युवा नेता है।
बल्कि, वो स्वच्छ छवि के नेता भी माने जाते हैं।
राजनीतिक पंडितों का ये भी मानना है कि वो 2025 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए में भाजपा के लिए बेहतर विकल्प होंगे।
भाजपा पहले भी शहनवाज हुसैन की तरह अपने युवा नेताओं पर भरोसा जता चुकी है
भाजपा पहले भी शहनवाज हुसैन की तरह अपने युवा नेताओं पर भरोसा जता चुकी है।
पार्टी पहले ही सुशील कुमार मोदी, नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार जैसे पार्टी के दिग्गजों को दरकिनार कर चुकी है,
जो पिछली सभी एनडीए सरकारों में नीतीश मंत्रिमंडल का हिस्सा थे।
सिर्फ सुशील मोदी को राज्यसभा भेजा गया है।
स्पष्ट है कि पार्टी नीतीश के साथ अपने पूराने समीकरणों को फिर से कायम करना चाहती है,
जो पिछले 15 सालों से गठबंधन के भीतर था।
नवंबर 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जदयू से 31 अधिक सीटें अधिक जीती थी
नवंबर 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा जदयू से 31 अधिक सीटें जीतकर बड़े भाई की भूमिका में उभरी थी।
बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं जबकि नीतीश की पार्टी को केवल 43 सीटें हीं मिल सकीं।
हालांकि विधानसभा में अपने विधायकों की संख्या अधिक होने के बावजूद भी चुनाव पूर्व किए अपने वादे को ध्यान में रखते हुए राज्य की बागडोर नीतीश को सौंप दी।
लेकिन अब भाजपा अगले चुनावों में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं।
यह हुसैन की बिहार में वापसी का सबसे बड़ा रास्ता है,
एक ऐसा कदम जो इस समय उनके लिए कम हो सकता है,
लेकिन स्पष्ट रूप से इसके जरिए एक अस्पष्ट राजनीतिक संदेश दिया गया है।