बिहार लोक सेवा आयोग के नतीजो का ऐलान किया गया. इसी कम्र में कामयाबी की यह कहानियां जानकर कोई भी इनके हौसले को सलाम करना चाहेगा. क्या कोई सोच सकता है कि सड़क किनारे अंडे बेचने वाला एक दिन बीपीएससी पासकर अफसर बन जाएगा. क्या कोई यकीन कर लेगा कि जिसकी मां कभी बीड़ी बेचकर गुजारा करती हो, उसकी संतान एक दिन अफसर के इम्तिहान में कामयाबी के झंडे गाड़ देगी? ये सारी कहानियां सौ फीसदी सच साबित हुई है.
बिहार लोक सेवा आयोग के नतीजे का ऐलान हुआ तो कामयाबी पाने वालों में
ओमप्रकाश गुप्ता का नाम अव्वल था. राजधानी पटना के सोनारु इलाके के
रहने वाले ओमप्रकाश के पिता विंदेश्वरी साव किराना दुकानदार हैं.
सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने वाले ओमप्रकाश की राह में मुश्किलें एक नहीं,
अनेकों थी. लेकिन जिद और जुनून के आगे मुश्किलें छोटी पड़ती गई.
पढ़ाई के साथ-साथ वह पिता का हाथ भी बंटाते थे.
दुकानदारी से फुर्सत मिलने पर ओमप्रकाश दुकान में ही बैठकर पढ़ाई भी करते थे. मेधा के धनी ओमप्रकाश ने पहले प्रयास में ही आईआईटी में कामयाबी पाई और अब पहले ही प्रयास में वह बीपीएससी में अव्वल रहे है.
सारण जिले के कादीपुर गांव के रहने वाले अलाउद्दीन ने बीपीएससी के इम्तिहान में 1453 वीं रैंकिंग पाई है. इनके परिवार और परवरिश के बारे में जानेंगे तो समझ पाएंगे कि यह कामयाबी कितनी बड़ी है. अलाउद्दीन के पिता जलालुद्दीन कभी खैनी बेचा करते थे और मां बीड़ी बनाकर बच्चों का पालन-पोषण करती थी.
तीन बच्चों में अलाउद्दीन दूसरे नंबर पर हैं. मेधा के धनी अलाउद्दीन ने अपनी लगन और मेहनत से वह सब पा लिया. इन्होंने कई नौकरियां पाई और अब बीपीएससी में कामयाबी पाकर उन्होंने प्रखंड कल्याण पदाधिकारी का पद पाया है.
औरंगाबाद के हाथीखाप के रहने वाले वीरेंद्र कुमार ने बीपीएससी के इम्तिहान में 2232 वीं रैंकिंग पाई है. इनकी कामयाबी की कहानी उन सभी छात्रों के लिए प्रेरणा बन सकती है, जो गुरबत में भी बड़े सपने देखना नहीं छोड़ते है.
वीरेंद्र के सामने तंगी इतनी थी कि गुजारे के लिए वह सड़क के किनारे अंडे बेचा करते थे. वहीं, इनके भाई जीतेंद्र कुमार बताते हैं कि 'रात के 1 बजे या 2 बजे हो जब भी वह जागते थे, तो वीरेंद्र को पढ़ाई करते हुए देखते थे. आज उनका सपना सच साबित हुआ और वह बीपीएससी पासकर प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी चुने गए हैं.'