दो दोस्तों ने की सबसे बड़े एक्वापोनिक फार्म की शुरुआत, अब 300 एकड़ में 1500 किसान कर रहे खेती

दो दोस्तों ललित जवाहर और 32 वर्षीय मयंक गुप्ता देश का सबसे बड़ा व्यावसायिक एक्वापोनिक फार्म चला रहे हैं। इसके जरिए वे न सिर्फ जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि लोगों को रोजगार देने के साथ ही करोड़ों का बिजनेस मॉडल भी चला रहे हैं।
दो दोस्तों ने की सबसे बड़े एक्वापोनिक फार्म की शुरुआत, अब 300 एकड़ में 1500 किसान कर रहे खेती

डेस्क न्यूज़- आपने पारम्परिक यानी परम्परागत खेती को होते हुए देखा होगा। आपने पॉली फार्मिंग, हाइड्रोपोनिक भी देखी होगी, लेकिन क्या आपने एक्वापोनिक्स फार्मिंग के बारे में सुना है? मछलियों के वेस्ट से खेती करने का यह तरीका भारत में बहुत नया है। आज की कहानी में दो दोस्तों ललित जवाहर और 32 वर्षीय मयंक गुप्ता के बारे में बात करेंगे है, जो देश का सबसे बड़ा व्यावसायिक एक्वापोनिक फार्म चला रहे हैं। इसके जरिए वे न सिर्फ जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि लोगों को रोजगार देने के साथ ही करोड़ों का बिजनेस मॉडल भी चला रहे हैं।

इंजीनियरिंग में की फढ़ाई

हैदराबाद के रहने वाले मयंक ने वर्ष 2007 में आईआईटी बॉम्बे में बी टेक और एम टेक में दाखिला लिया। प्लेसमेंट 2012 में हुआ और उन्होंने न्यूयॉर्क में एक कंपनी के लिए तीन साल तक विश्लेषक के रूप में काम किया। मयंक काम के सिलसिले में अक्सर मुंबई आता-जाता रहता था। इसी दौरान उन्हें एहसास हुआ कि वह 9 से 5 की नौकरी के साथ नहीं रह सकते। अब मयंक की जिंदगी में एक और टर्निंग प्वाइंट की बारी थी। उन्होंने अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में एमबीए के लिए आवेदन किया था। सेलेक्शन हुआ और जाने की तैयारी भी शुरू हो गई।

बैंकॉक का स्ट्रीट मार्केट पहुंचाया ऑनलाइन

इस बीच कई बार वह और उनके दोस्त स्टार्टअप के बारे में बातें किया करते थे। मयंक बताते हैं, "उस समय स्टार्टअप का दौर शुरू ही हुआ था। पूरी दुनिया में ऑनलाइन शॉपिंग पर भारी पड़ रहा था। हमने शोध में पाया कि दक्षिण-पूर्व एशिया में बढ़ती मांग के अनुसार ऑनलाइन स्टार्टअप एक अच्छी शुरुआत है। 2015 में हम 4 दोस्त बैंकॉक गए और स्टार्टअप zilingo.com शुरू किया। इसके जरिए हमने स्ट्रीट शॉपिंग को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराया। यह पहल बहुत सफल रही और कई कंपनियों ने इसे वित्त पोषित भी किया।

खेती करने का लिया फैसला

अपने स्टार्टअप के दौरान मयंक को कई नई चीजें सीखने को मिलीं, लेकिन दूसरे देश की चकाचौंध के बीच मयंक को अपने देश की मिट्टी बहुत याद आती थी। वह शहरों से तंग आ चुका था और भारत के हरित क्षेत्र में कुछ नया शुरू करना चाहता था। उसने भारत लौटने का मन बना लिया, लेकिन एक सवाल अभी भी उसके सामने खड़ा था… आगे क्या किया जाए? साल 2018 में उनकी इस बार अपने मुंबई के एक पुराने दोस्त ललित जवार से बात हुई थी। दोनों ने तय किया कि मिलकर खेती से जुड़ा एक स्टार्टअप शुरू करें, जिससे लोगों तक चार बुनियादी चीजें जैसे रोटी, कपड़ा, घर और दवा पहुंचाई जा सके।

देश और विदेश में अनुसंधान

मयंक बताते हैं कि शोध के दौरान ही हमें पता चला कि भारत में जैविक खेती के तरीकों में बहुत कम नवाचार और विकास हुआ है। साथ ही, भारत में किसान पारंपरिक खेती करते हैं और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए इसमें बहुत सारे उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। इससे अधिकांश खेती योग्य भूमि और पानी जहरीला हो जाता है। इन सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान जैविक खेती ही थी। मयंक और ललित ने इस पहल के लिए देश-विदेश में शोध किया। दोनों ने अमेरिका, चीन, इस्राइल, हांगकांग और थाईलैंड जैसे कई देशों में शोध कर जैविक और टिकाऊ खेती की नई तकनीक सीखी। इनमें से एक्वापोनिक्स खेती भारत के लिए सबसे उपयुक्त है। अब इसके लिए भारत में सबसे अच्छी जगह का चुनाव करना जरूरी था।

मयंक बताते हैं- चूंकि हम नई शुरुआत करने जा रहे थे, इसलिए लोकेशन को लेकर हम स्वतंत्र थे। यानी स्टार्टअप भारत के किसी भी हिस्से में शुरू किए जा सकते हैं, शहर की हलचल से दूर। इसके लिए हमने भारत के हर जिले में जलवायु, पानी, मिट्टी, किसानों की उपलब्धता और बाजार जैसे पहलुओं पर परीक्षण किया और महाराष्ट्र का कोल्हापुर इन सभी पर खरा उतरा। इसकी मिट्टी और पानी की उपलब्धता अच्छी है क्योंकि कभी सूखा नहीं पड़ा।

टीम में 85 महिलाए कर रही काम

मयंक का कहना है कि इन तमाम शोधों के बाद हमने देश का सबसे बड़ा एक्वापोनिक्स फार्म लेंड क्राफ्ट एग्रो शुरू किया। यह दो एकड़ जमीन में फैला हुआ है। लेंड क्राफ्ट एग्रो न केवल एक्वापोनिक खेती के माध्यम से आस-पास के लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है बल्कि महिला सशक्तिकरण और आस-पास के किसानों को रोजगार भी प्रदान कर रहा है। टीम में प्रत्यक्ष क्षेत्र में काम करने वाले 100 लोग हैं, जिनमें 85 महिलाएं हैं।

एक्वापोनिक खेती क्या हैं?

एक्वापोनिक खेती जलवायु के अनुसार किसी भी क्षेत्र में की जा सकती है। खास बात यह है कि इससे पानी की भी काफी बचत होती है। मयंक का कहना है कि पिछले दो साल से उनके सेटअप पर जो पानी इस्तेमाल हो रहा है, उसे अभी बदलने की जरूरत नहीं है। एक्वापोनिक खेती से 95 प्रतिशत पानी की बचत होती है। अगर इसकी तुलना पारंपरिक खेती से की जाए तो इसमें सिर्फ 5% पानी लगता है।

एक्वापोनिक खेती कैसे करें?

एक्वापोनिक खेती दो भागों में की जाती है। सबसे पहले मछली पालन एक टैंक में किया जाता है। मछली से अपशिष्ट एकत्र किया जाता है। यह कचरा पोषण से भरपूर होता है। दूसरे चरण में पौधे को नर्सरी के नेट गमले में लगाया जाता है। इसके बाद पॉलीहाउस में इस पौधे को मेन प्लांट में ट्रांसप्लांट किया जाता है। पौधे को फ्लोटिंग बेस पर रखा जाता है, ताकि वह पानी में न डूबे। मछली का वेस्ट उस पानी में मिला दिया जाता है पौधे की जड़े इसमें मौजूद न्यूट्रिशन को सोख लेती हैं।

इन पौधों को किसी भी तरह की बीमारी से बचाने के लिए पानी में बुलबुलों के जरिए ऑक्सीजन दी जाती है। परिणाम जैविक सब्जियां हैं। यही कारण है कि एक्वापोनिक खेती को हाइड्रोपोनिक खेती से बेहतर माना जाता है। एक्वापोनिक खेती को संयुक्त राज्य अमेरिका में जैविक खेती का प्रमाण पत्र भी दिया गया है।

पूरे साल बनी रहती हैं सप्लाई चैन

मयंक अपने खेत में कदम दर कदम अपनी फसल लगाते हैं। जिससे साल में 365 दिन सप्लाई चेन बनी रहती है। सामान्य खेती में यह संभव नहीं है। मयंक अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग के बारे में बताते हैं- हमने शुरू से ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ-साथ वेबसाइट का भी इस्तेमाल किया। जिससे कम समय में अधिक लोगों तक आसानी से पहुंचा जा सके। हमारे पास 200 से अधिक सुपर मार्केट आधारित स्थायी ग्राहक हैं, जिन्हें प्रतिदिन 5000 से अधिक पैकेट भेजे जाते हैं। उनके पास 65 से अधिक उत्पाद शामिल हैं।

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