इस साल दुनियाभर में हर 33 घंटे में 10 लाख लोग गरीब हो जाएंगे।
गौरतलब है कि दुनिया के 10 सबसे अमीर लोगों के पास 3.1 अरब यानी 40 फीसदी आबादी से ज्यादा संपत्ति है। वहीं, शीर्ष 20 अरबपतियों के पास पूरे उप-सहारा अफ्रीका की जीडीपी से अधिक संपत्ति है। और 50 प्रतिशत सीमांत श्रमिक 112 वर्षों में कमाते हैं, शीर्ष 1 प्रतिशत केवल एक वर्ष में कमाते हैं।
Every 30 hours New Billionaire: वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम एनुअल मीटिंग 2022 (World Economic Forum Annual Meeting 2022) का आयोजन हुआ, जिसमें दुनिया भर से अमीर और पावरफुल देश जमा हुए। इस बैठक में ऑक्सफैम (Oxfam International) ने सोमवार को कहा कि कोरोना महामारी (COVID-19 pandemic) के दौरान हर 30 घंटे में एक नए अरबपति के तौर पर उभरते देखा गया है। यह बात कहते हुए ऑक्सफैम ने कहा कि अब वो समय आ गया है जब कम भाग्यशाली लोगों को सपोर्ट करने और संतुलन बनाने के लिए अमीरों पर टैक्स लगाना चाहिए।
वहीं ऑक्सफैम (Oxfam International) ने संभावना जताते हुए कहा है कि इस साल 26.3 करोड़ लोग अत्यधिक गरीब हो जाएंगे, इसमें ऑक्सफैम के आकड़ो के अनुसार दुनियाभर में हर 33 घंटे में 10 लाख लोग गरीब हो जाएंगे। वहीं ऑक्सफैम की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने अपने एक बयान में कहा कि अरबपति और अच्छी किस्मत वाले अपने व्यापार में अविश्वसनीय बढ़त का जश्न मनाने के लिए दावोस पहुंच रहे हैं।
ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International) की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर गैब्रिएला बुचर ने कहा कि pandemic और अब एनर्जी व फूड की बढ़ती प्राइस सीधे तौर पर अमीरों के लिए वरदान बन गई है। बुचर ने कहा दुनिया में लाखों लोग सिर्फ जीवित रहने के लिए कॉस्टिंग में नामुमकिन बढ़ोतरी का सामना कर रहे हैं। गैब्रिएला बुचर के अनुसार प्राइवेटाइजेश का एक बड़ा नतीजा ये हुआ है कि दुनिया की संपत्ति में अमीरों ने एक बड़ी और चौंकाने वाली राशि पर कब्जा कर लिया है। ऐसे में सुपर रिच लोग दशकों से सिस्टम में हेराफेरी कर के उसका लाभ लेते आ रहे हैं, हैरानी की बात ये भी है कि ये सभी सरकारों की मिलीभगत के साथ ही हो रहा है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड महामारी के दौरान फार्मा से जुड़े 40 नए अरबपति बने। मॉडर्ना और फाइजर जैसी फार्मास्युटिकल कंपनियां कोविड-19 वैक्सीन पर एकाधिकार से प्रति सेकेंड 1,000 डॉलर का मुनाफा कमा रही हैं। वे सरकार से जेनरिक के उत्पादन की अनुमानित लागत से 24 गुना अधिक शुल्क ले रहे हैं। कम आय वाले देशों में 87 प्रतिशत लोगों को अभी भी पूरी तरह से टीका नहीं लगाया गया है।
बूचर ने कहा, “अमीर और शक्तिशाली लोग दर्द और पीड़ा से लाभ उठा रहे हैं। कुछ लोग अरबों लोगों को टीकों की पहुंच से वंचित करके अमीर बन गए हैं, जबकि अन्य भोजन और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों का लाभ उठाकर अमीर बन गए हैं। बढ़ती दौलत और बढ़ती गरीबी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और इस बात का सबूत हैं कि हमारी आर्थिक व्यवस्था उस तरह से काम कर रही है जिस तरह से इसे अमीर और शक्तिशाली ने डिजाइन कर दिया ह।
बुचर ने आगे कहा, "इस बीच, लाखों अन्य लोग अपना फूड स्किप रहे हैं, रोजमर्रा के बिलों को चुकाने के लिए हर दिन दौड़ रहे हैं और यही सोच रहे हैं कि वे जीवित रहने या परिवार चलाने के लिए आगे क्या कर सकते हैं। ये सब सामान्य लगता है लेकिन गरीबी में धकेलने के लिए ये बेहद खतरनाक स्थिति है। यह असमानता है जो सचमुच गरीबी से मार देती है।
इन्फ्लेशन दुूनियाभर में बढ़ रही है, ये मूल्य वृद्धि खास तौर से कम वेतन वाले लोगों के लिए विनाशकारी बनी हुई है। इन हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य और आजीविका पहले से ही COVID-19 महामारी ने सबसे असुरक्षित कर दिया ह।। ऑक्सफैम ने कहा कि गरीब देशों के लोग अपनी आय का दोगुना से ज्यादा खर्च अमीर देशों की तुलना में सिर्फ भोजन हासिल करने के लिए ही कर रहे हैं।
ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में दुनियाभर की सरकारों को कुछ सलाह भी दी है। इसमें पहला यह है कि बढ़ती कीमतों का सामना करने वाले लोगों का समर्थन करने के लिए अरबपतियों पर लमसम ‘एकजुटता कर’ लगाया जाना चाहिए
वहीं बड़े निगमों के अप्रत्याशित मुनाफे पर 90 प्रतिशत का ‘अस्थायी अतिरिक्त लाभ कर’ शुरू करके संकट से मुनाफाखोरी को खत्म करने का समय आ गया है
ऑक्सफैम ने कहा कि करोड़पतियों पर सालाना दो प्रतिशत और अरबपतियों के लिए पांच प्रतिशत संपत्ति कर लगाने से हर साल 2.52 ट्रिलियन डॉलर जुटाए जा सकते हैं इन पैसों से 2.3 अरब लोगों को गरीबी से बाहर निकालने, दुनिया के लिए पर्याप्त टीके बनाने और गरीब देशों में लोगों के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए भुगतान करने में मदद मिलेगी
ऑक्सफैम (Oxfam) के मुताबिक नॉर्थ अफ्रीका में हर एक मिनट एक व्यक्ति भूख से दम तोड़ रहा है। ये बहुत बड़ी असमानता है जो मानवता के बंधनों को धराशायी कर रही है। उन्होंने कहा कि ये असमानता लोगों को मार देगी। इसके साथ ही मजदूरी करने वालों के सामने तो ये मुश्किले बढ़ी है ही और अब कोरोना के बाद तो मजदूर और श्रमिक वर्ग दशकों की हाइएस्ट प्राइस से संघर्ष कर रहे हैं।