डेस्क न्यूज़- नवजोत सिंह सिद्धू ने क्रिकेट से लेकर राजनीति तक की पिच पर अपने आसपास के लोगों को असहज किया है। उन्होंने अरुण जेटली को राजनीति का गुरु बनाया और बाद में उसके खिलाफ भी विद्रोह कर दिया। क्रिकेटर के तौर पर दौरे को छोड़ना या राज्यसभा से इस्तीफा देकर पार्टी बदलना है। सिद्धू अपने विद्रोही सुरों से सुर्खियां बटोरते रहे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू ने 2004 में राजनीति में प्रवेश किया। खेल में भी उनका करियर विवादों से दूर नहीं रहा। क्रिकेट प्रेमियों को याद होगा कि 1996 के इंग्लैंड दौरे के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन से बगावत कर बीच में ही देश लौट आए थे। काफी बवाल हुआ था और चर्चा थी कि संयम बरतना एक खिलाड़ी का सबसे बड़ा गुण होता है। सिद्दू ने की बगावत ।
नवजोत सिंह सिद्धू 2004 में बीजेपी के टिकट पर अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। उस वक्त उनके खिलाफ पुराना केस चल रहा था। पटियाला निवासी गुरनाम सिंह पर पार्किंग विवाद के दौरान मारपीट करने का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने सिद्धू की पैरवी की और जमानत दी। सिद्धू ने अपनी राजनीतिक पारी में अरुण जेटली को अपना गुरु बनाया। 2014 में, जब बीजेपी ने अरुण जेटली को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया, तो सिद्धू ने घोषणा की कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। महत्वाकांक्षी सिद्धू ने तब विद्रोही कर लिया। वह अपने राजनीतिक गुरु अरुण जेटली के लिए प्रचार करने अमृतसर नहीं पहुंचे।
एक बार बिक्रम सिंह मजीठिया और सुखबीर बादल की शान में गीत पढ़ने वाले सिद्धू उनकी जमकर आलोचना करने लगे। उनके इस व्यवहार ने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष कमल शर्मा को काफी मुश्किल में डाल दिया था। सिद्धू कई मौकों पर भ्रष्टाचार, केबल माफिया, खनन माफिया जैसे मुद्दों पर अकाली दल पर निशाना साध चुके हैं। वहीं बीजेपी नेताओं ने भी उन्हें लपेटना शुरू कर दिया। सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू तब मुख्य संसदीय सचिव थीं। सिद्धू अप्रैल 2016 में राज्यसभा सांसद बने लेकिन उन्होंने तीन महीने बाद अपना इस्तीफा दे दिया।
तभी से सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई थी कि नवजोत सिद्धू अब आम आदमी पार्टी में शामिल होंगे। वह राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। इसके विपरीत, वह 2017 के विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इससे पहले उन्होंने आवाज-ए-पंजाब फोरम का गठन किया था, जिसमें बैंस बंधु और परगट सिंह भी शामिल थे।
2017 में बने थे कैबिनेट मंत्री
2017 में पंजाब में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई और सिद्धू कैबिनेट मंत्री बने। कुछ महीनों के बाद, उन्होंने अमृतसर के मेयर के चुनाव पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और कैप्टन के खिलाफ सिद्धू ने विद्रोह शुरू कर दिया, फिर केबल नेटवर्क पर मनोरंजन कर और रेत खनन के लिए एक कोर्पोरेशन बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
2019 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू का मंत्रालय बदल दिया। विरोध में सिद्धू ने पदभाग ग्रहण किए बिना इस्तीफा दे दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने नवजोत सिंह सिद्धू को शपथ ग्रहण का न्योता भेजा था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू से इस समारोह में नहीं जाने की अपील की लेकिन सिद्धू वाघा बार्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे। वहां करतारपुर कॉरिडोर खोलने की पेशकश पर वो पाकिस्तान सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा से गले भी मिले। अमरिंदर सिंह की सरकार इस मुद्दे पर बुरी तरह से घिर गई। तेलंगाना में कांग्रेस का प्रचार करते हुए सिद्धू ने कहा था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के भी कैप्टन राहुल गांधी ही हैं। सिद्धू के इस बयान की पंजाब कांग्रेस में काफी आलोचना हुई थी।
2019 के लोकसभा चुनाव के प्रचार में सिद्धू ज्यादा नहीं दिखे, लेकिन प्रियंका गांधी के कहने पर उन्होंने बठिंडा में प्रचार किया। लंबे इंतजार के बाद जब सिद्धू ने पार्टी में अपनी सक्रियता बढ़ाई तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। इस दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू का कड़ा विरोध किया। अध्यक्ष बनने के बाद सिद्धू ने फिर कप्तान के खिलाफ आवाज उठाई और हंगामा इतना बढ़ गया कि अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। सीएम बदलने और प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद ऐसा लग रहा था कि सिद्धू अब पार्टी के प्रति मजबूती से काम करेंगे लेकिन अचानक इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया।