डेस्क न्यूज़: भारत के साथ जारी सीमा विवाद के बीच चीन ने अपने स्टील्थ बॉम्बर जेट एच-20 के परीक्षण को तेज कर दिया है। यह टेस्ट लद्दाख से सटे चीनी इलाके में किया गया है। राफेल जेट की भारतीय वायुसेना में कुछ समय पहले ही एंट्री हुई है। चीन के पास राफेल के बराबर कोई विमान नहीं है। इस कमी को पूरा करने के लिए चीन तेजी से एच-20 का परीक्षण कर रहा है। अगर इसका फाइनल ट्रायल उम्मीदों के मुताबिक हुआ तो चीन अमेरिका और रूस के बाद स्टील्थ टेक्नोलॉजी हासिल करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन जाएगा। एक स्टील्थ जेट वह है जो रडार द्वारा पकड़े बिना दुश्मन के इलाके पर बमबारी कर सकता है।
चीन अपने शियान एच-20 लड़ाकू विमान के अंतिम परीक्षण की प्रक्रिया पूरी कर रहा है। परीक्षण होतान एयरबेस में हो रहा है। जानकारी के मुताबिक चीन का ये ट्रायल 22 जून तक चलेगा। इस दिन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के भी 100 साल पूरे हो रहे हैं। शायद उस दिन किसी बड़े ऐलान के तौर पर चीन अपनी वायुसेना में स्टील्थ लड़ाकू विमान को शामिल करने की औपचारिक जानकारी दे सकता है।
H-20 विमान कई क्षमताओं से लैस एक लड़ाकू विमान है। यह लंबी दूरी तक काम कर सकता है। साथ ही अधिक वजन उठाने में सक्षम है। यह दुश्मन के रडार को चकमा देकर आ-जा सकता है। इस सुपरसोनिक जेट में 3000 किमी की "beyond visual range" है। इस वजह से यह विमान बिना अफगानिस्तान, बलूचिस्तान या लद्दाख की सीमा में घुसे हमला कर सकता है। H-20 प्रोजेक्ट की शुरुआत चीन ने 2010 में की थी, जब भारत 126 राफेल जेट के लिए फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन के साथ बातचीत कर रहा था।
चीन ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसका नवनिर्मित लड़ाकू विमान परमाणु हथियार से हमला करने में सक्षम है या नहीं। अमेरिका के तमाम अत्याधुनिक बमवर्षक भी परमाणु हमले करने में सक्षम हैं। चीन ने 2025 तक अपनी वायु सेना में एच-20 बमवर्षकों को शामिल करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस समय सीमा को कम कर दिया गया है। आने वाले समय में इसका असर दक्षिण चीन सागर और ताइवान के मुद्दों पर भी देखने को मिल सकता है।