राजस्थान में बिजली संकट जारी है। राज्य के सभी बिजली संयंत्रों की बंद पड़ी सभी इकाइयों को फिर से चलाने के लिए रोजाना कुल 1 लाख 8 हजार टन कोयले की जरूरत है. यानी हर दिन 27 रेक कोयला मिलने के बाद ही सभी इकाइयां शुरू हो सकेंगी।
इस समय राज्य को औसतन प्रतिदिन 15 रेक कोयला ही मिल रहा है। हालांकि ऊर्जा विभाग सभी संयंत्रों को चलाने के लिए करीब 21 रेक कोयले की जरूरत महसूस कर रहा है। फिलहाल विभाग का कोई गणित नहीं है कि इतने रेक आने के बाद क्षमता के अनुसार बिजली उत्पादन शुरू हो सकेगा. ऊर्जा विभाग और बिजली उत्पादन से जुड़े विशेषज्ञों से जाना कि सभी बिजली स्टेशनों को चलाने के लिए कम से कम कितने रेक कोयले की आवश्यकता होती है। क्या है पावर स्टेशन की बिजली पैदा करने वाली यूनिट्स को चलाने के लिए कोयले का गणित। सरकार के पास क्या है व्यवस्था?
सूरतगढ़ में यूनिट नंबर 2, 3, 4, 5, 6 250-250 मेगावाट की कुल 5 यूनिट बंद हैं। वे अधिक कोयला भी लेती हैं। इन्हें चलाने के लिए रोजाना 5 रेक कोयले की जरूरत होती है। सूरतगढ़ में 7 नंबर की एक सुपर क्रिटिकल 660 मेगावाट की इकाई बंद है, जिसे चलाने के लिए रोजाना 2 रेक कोयले की जरूरत होती है। ऐसे में सूरतगढ़ की बंद पड़ी इकाइयों को फिर से चालू करने के लिए 7 और रेक कोयले की जरूरत है। सूरतगढ़ संयंत्र में पुरानी 250 मेगावाट नंबर 1 इकाई और सुपर क्रिटिकल 660 मेगावाट संख्या 8 इकाई चालू हैं। ये दोनों इकाइयां रोजाना 3 रेक कोयले की खपत कर रही हैं। शेष इकाइयां कोयले की कमी के कारण ठप पड़ी हैं। यानी सूरतगढ़ की सभी इकाइयों को चलाने के लिए 10 रेक कोयले की जरूरत होगी।
छबड़ा में यूनिट नंबर 2, 3 और 4 बंद हैं। 250-250 मेगावाट की इन 3 इकाइयों को फिर से शुरू करने के लिए रोजाना 3 रेक कोयले की जरूरत होती है। इसके अलावा छबड़ा में ही 660 मेगावाट की एक सुपर क्रिटिकल इकाई संख्या 6 भी बंद होने के कारण बंद चल रही है, जिसे शटडाउन से बाहर निकालने के लिए रोजाना 2 रेक कोयले की जरूरत होती है। इन्हें शुरू करने के लिए रोजाना कुल 5 रेक कोयले की जरूरत होती है। छाबड़ा में नंबर 1 की 250 मेगावाट पुरानी 1 यूनिट चालू है, जिसमें रोजाना 1 रैक कोयला लगता है। इसके साथ ही 660 मेगावाट की संख्या 5 इकाई चालू है, जिसमें प्रतिदिन 2 रेक कोयले का उपयोग होता है। इस प्रकार छबड़ा में कोयले की 3 रेक की खपत वर्तमान में परिचालन इकाइयों में हो रही है। जबकि पूरी यूनिट को चलाने के लिए रोजाना 8 रेक कोयले की जरूरत होती है।
कोटा थर्मल पावर स्टेशन में 110, 110 मेगावाट की 2 इकाइयाँ, 210-210 मेगावाट की 3 इकाइयाँ, 195-195 मेगावाट की 2 इकाइयाँ चालू हैं। इन सभी 7 इकाइयों को मिलाकर प्लांट की क्षमता 1240 मेगावाट है। कोटा थर्मल पावर स्टेशन में कोयले के करीब 5 रेक लगाए जा रहे हैं।
कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट में 600-600 मेगावाट बिजली उत्पादन की दो इकाइयां चल रही हैं, जिनमें करीब 4 रेक कोयले का इस्तेमाल हो रहा है.
सूरतगढ़ में 3 रेक, छाबड़ा में 3 रेक, कोटा में 5 रेक, कालीसिंध में 4 रेक यानी इन प्लांटों में औसतन कुल 15 रेक कोयले की खपत हो रही है. सभी यूनिटों को चालू करने के लिए सूरतगढ़ को कुल 10, छाबड़ा 8, कोटा 5, काली सिंध 4 रेक यानी कुल 27 रेक कोयले की जरूरत है।
8 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक राजस्थान को रोजाना 14 से 16 रेक मिल पाए हैं। इस तरह राज्य को प्रतिदिन औसतन 15 रेक कोयला ही प्राप्त हुआ है। इसमें राज्य को पीकेसीएल कंपनी से 9 रैक मिले हैं। एनसीएल से 5 रेक और एसईसीएल सड़क मार्ग से कोयला उठाकर फिर लदान करवाने पर 1 रैक मिल पाई है। जो 3-4 दिन में आती है। इस तरह 15 रैक हो पाई हैं, लेकिन साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की ओर से नियमित 1 रेक भी मालगाड़ी लोड कर अब तक नहीं आ सकी है.
सभी इकाइयों को शुरू करने के लिए कम से कम 27 रेक कोयले की आवश्यकता है। जबकि वर्तमान में जोर लगाने पर औसतन केवल 15 रेक ही उपलब्ध हो पा रहे हैं। ऐसे में 12 और कोल रेक की जरूरत है। जिससे सभी संयंत्रों की बंद पड़ी इकाइयों को चालू किया जा सके। अगर छबड़ा में हादसे और तकनीकी कारणों से बंद की गईं यूनिट को अभी शुरू नहीं करना चाहते, तो वहां 8 की बजाय 3 रैक कोयले में काम चलेगा, लेकिन फिर 5 यूनिट से बिजली प्रोडक्शन नहीं हो पाएगा। ऐसे हालात में भी कम से कम 22 रैक कोयले के प्रदेश को चाहिए।