डेस्क न्यूज़- सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक जनहित याचिका दायर कर केंद्र और राज्यों को गैर-कोविड-19 रोगियों को भी पर्याप्त चिकित्सा उपचार और सुविधाएं सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई हैं। याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। गैर-कोविड-19 रोगी ।
अधिवक्ता जीएस मणि की ओर से दायर याचिका में कहा
गया है कि करीब 2.70 लाख लोगों की मौत कोविड-19
संक्रमण से हुई। हालांकि दूसरी लहर के बाद ज्यादातर
राज्यों ने पाबंदियां लगा दी हैं और कोरोना मरीजों के इलाज के लिए प्रोटोकॉल बनाए हैं।
ऐसे में हृदय, किडनी, लीवर और फेफड़ों के रोगों से पीड़ित मरीजों व गर्भवती महिलाओं का नियमित इलाज नहीं हो पा रहा है। न ही अस्पतालों में कोई जांच होती है। जिन लोगों को सर्जरी या ऑपरेशन की जरूरत है, उन्हें भी चिकित्सा सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि हृदय रोगियों और गर्भवती महिलाओं के लिए अस्पताल में दाखिल होना बेहद मुश्किल हो गया है। कुछ निजी अस्पताल ऑनलाइन काउंसलिंग दे रहे हैं, लेकिन ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में ऐसी कोई सुविधा नहीं है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी नागरिकों को जीवन और सार्वजनिक स्वास्थ्य का अधिकार है। याचिका में कहा गया है कि गैर-कोविड-19 मरीजों के लिए अधिक सरकारी अस्पताल होने चाहिए। डॉक्टरों के मुताबिक, उन्हें कई इमरजेंसी कॉल आती हैं। लोगों में भ्रम की स्थिति है। अस्पतालों की आपातकालीन सेवाएं कोविड-19 के मरीजों से भरी पड़ी हैं. इसलिए अन्य मरीज वहां नहीं जा सकते।
याचिका में यह भी कहा गया है कि कोविड -19 संक्रमण की दूसरी लहर के कारण उत्तर प्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसी कई राज्य सरकारों ने अप्रैल और मई, 2021 के महीने के लिए पूर्ण और आंशिक लॉकडाउन की घोषणा की है। कई राज्य सरकारों ने प्रतिबंधों को जून, 2021 तक के लिए बढ़ा दिया है। इससे अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों को अस्पतालों में नियमित इलाज नहीं मिल पा रहा है।