ब्लैक फंगस के सीधे दिमाग में पहुंचने का पहला मामला, सूरत के डॉक्टॉर भी रह गए हैरान, ब्लैक फंगस किडनी और लीवर ट्रांसप्लांट करा चुके मरीजों के लिए ज्यादा खतरनाक है

गुजरात के सूरत में डॉक्‍टरों के सामने ऐसा अनोखा मामला आया है जहां कोरोना से सही होने के बाद 23 साल के एक मरीज के दिमाग में ब्‍लैक फंगस या म्‍यूकरमाइकोसिस पाया गया। हैरानी की बात यह है कि ब्‍लैक फंगस का संक्रमण फेफड़ों, साइनस और आंखों में बिल्‍कुल नहीं था जहां आमतौर पर पाया जाता है। डॉक्‍टरों का कहना है कि यह अपनी तरह का पहला मामला है
ब्लैक फंगस के सीधे दिमाग में पहुंचने का पहला मामला, सूरत के डॉक्टॉर भी रह गए हैरान, ब्लैक फंगस किडनी और लीवर ट्रांसप्लांट करा चुके मरीजों के लिए ज्यादा खतरनाक है
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गुजरात के सूरत में डॉक्‍टरों के सामने ऐसा अनोखा मामला आया है जहां कोरोना से सही होने के बाद 23 साल के एक मरीज के दिमाग में ब्लैक फंगस या म्‍यूकरमाइकोसिस पाया गया। हैरानी की बात यह है कि ब्‍लैक फंगस का संक्रमण फेफड़ों, साइनस और आंखों में बिल्‍कुल नहीं था जहां आमतौर पर पाया जाता है। डॉक्‍टरों का कहना है कि यह अपनी तरह का पहला मामला है।

गुजरात के सूरत में डॉक्‍टरों के सामने ऐसा अनोखा मामला आया है जहां कोरोना से सही होने के बाद 23 साल के एक मरीज के दिमाग में ब्‍लैक फंगस पाया गया

इसे देखते हुए ब्‍लैक फंगस का इलाज करने वाले डॉक्‍टरों की सलाह है कि

मरीजों को एमआरआई स्‍कैन कराना चाहिए। ऐसा इसलिए क्‍योंकि दिमाग में

फैला संक्रमण तब पता चलता है जब या तो मरीज को मिर्गी के दौरे पड़ने लगें

या वह बेहोश हो जाए।

इस मामले में डॉक्‍टरों का अनुमान है कि मरीज के शरीर में

ब्‍लैक फंगस का इन्‍फेक्‍शन खून के जरिए ब्रेन तक पहुंच गया होगा।

अहम बात यह है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की

अडवाइजरी में भी दौरे पड़ने और दिमाग में सूजन का जिक्र नहीं है।

गुजरात में कोविड से ठीक होने वाले मरीजों में म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामलों में तेजी आई है

गुजरात में कोविड से ठीक होने वाले मरीजों में म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामलों में तेजी आई है। पिछले एक हफ्ते में, म्यूकोरमाइकोसिस के ऑपरेशन कराने वाले रोगियों की संख्या भी बढ़ी है। अंग प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों में देरी से इस बीमारी की पहचान ने डॉक्टरों के बीच इसके इलाज को लेकर चिंता बढ़ा दी है।

ब्लैक फंगस के इलाज के लिए इंजेक्शन की सप्लाई भी काफी कम है

ब्लैक फंगस के इलाज के लिए इंजेक्शन की सप्लाई भी काफी कम है। ऐसी परिस्थितियों में, प्रारंभिक सर्जरी एक व्यवहारिक विकल्प है। यह पता चला है कि म्यूकोरमाइकोसिस के लिए सर्जरी कराने वालों में से कई ऐसे मरीज हैं जो पहले किडनी और लीवर ट्रांसप्लांट करा चुके हैं।

ब्लैक फंगस के लगभग 130 रोगियों की एंडोस्कोपी के साथ-साथ आंखों को हटाने जैसी सर्जरी भी हुई

अहमदाबाद सिविल अस्पताल के एसोसिएट प्रफेसर डॉ. कल्पेश पटेल ने कहा, 'पिछले एक हफ्ते में, ब्लैक फंगस के लगभग 130 रोगियों की एंडोस्कोपी के साथ-साथ आंखों को हटाने जैसी सर्जरी भी हुई है। स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब कोविड के बाद किडनी या लीवर ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीज म्यूकोरमाइकोसिस से प्रभावित होते हैं।

अपोलो अस्पताल में ईएनटी विभाग के निदेशक डॉक्टर राजेश विश्वकर्मा ने कहा, 'पिछले एक सप्ताह में, सिविल अस्पताल परिसर में किडनी अस्पताल में उन रोगियों में पोस्ट-कोविड म्यूकोरमाइकोसिस के मामले देखे गए हैं, जिनका किडनी या लीवर प्रत्यारोपण हुआ है।'

बीमारी की समय से पहचान जरूरी

डॉ. राजेश ने इलाज के दौरान किसी भी प्रतिकूल दुष्प्रभाव से बचने के लिए ऐसे रोगियों में शीघ्र निदान पर जोर दिया। उन्होंने कहा, 'ऐसे रोगियों की सर्जरी अन्य म्यूकोरमाइकोसिस रोगियों की तुलना में अधिक कठिन होती है क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है। कोविड से पीड़ित होने के कारण उनकी हालत पहले ही खराब हो जाती। इसलिए, जब वे म्यूकोरमाइकोसिस उपचार के लिए हमारे पास आते हैं, तो उपचार को लेकर बहुत दुविधा होती है।

म्यूकोरमाइकोसिस का शुरुआती चरण में पता चल जाए ताकि इसका प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सके

डॉक्टर ने बताया, 'ऐसा इसलिए, क्योंकि म्यूकोरमाइकोसिस के इंजेक्शन गुर्दे को प्रभावित कर सकते हैं। वहीं अगर फंगल इंफेक्शन का इलाज नहीं किया गया तो यह और भी फैलेगा। इससे अनुभवी डॉक्टरों को भी परेशानी होती है। यह बहुत जरूरी है कि म्यूकोरमाइकोसिस का शुरुआती चरण में पता चल जाए ताकि इसका प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सके।'

किसे हो सकता है ब्लैक फंगस?

– कोविड के दौरान जिन्हें स्टेरॉयड्स- मसलन डेक्सामिथाजोन, मिथाइल, प्रेडनिसोलोन आदि दी गई हों।

– कोविड मरीज को ऑक्सिजन सपॉर्ट पर या आईसीयू में रखना पड़ा हो।

– कैंसर, किडनी, ट्रांसप्लांट आदि की दवाएं चल रही हों।

ब्लैक फंगस के लक्षण

– बुखार आ रहा हो, सर दर्द हो रहा हो, खांसी हो या सांस फूल रही हो।

– नाक बंद हो। नाक में म्यूकस के साथ खून आ रहा हो।

– आंख में दर्द हो। आंख फूल जाए, एक चीज दो दिख रही हो या दिखना बंद हो जाए।

– चेहरे में एक तरफ दर्द हो, सूजन हो या सुन्न हो।

– दांत में दर्द हो, दांत हिलने लगें, चबाने में दांत दर्द करे।

– उल्टी में या खांसने पर बलगम में खून आए।

क्या करें

ब्लैक फंगस के कोई लक्षण नजर आए तो तत्काल सरकारी अस्पताल में या किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाएं। नाक, कान, गले, आंख, मेडिसिन, चेस्ट या प्लास्टिक सर्जन विशेषज्ञ को तुरंत दिखाएं ताकि जल्दी इलाज शुरू हो सके।

सावधानियां

– खुद या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टरों, दोस्तों, मित्रों, रिश्तेदारों के कहने पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू न करें।

– लक्षण के पहले 5 से 7 दिनों में स्टेरॉयड देने के दुष्परिणाम हो सकते हैं। बीमारी शुरू होते स्टेरॉयड शुरू न करें। इससे बीमारी बढ़       सकती है।

– स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 5 से 10 दिनों के लिए देते हैं, वह भी बीमारी शुरू होने के 5 से 7 दिनों       बाद, केवल गंभीर मरीजों को। इससे पहले बहुत सी जांच होना जरूरी हैं।

– इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें की इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं है, अगर है तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं।

– स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें।

– घर पर अगर ऑक्सिजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबालकर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नॉर्मल स्लाइन डालें, बेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों।

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