देश को जल्द ही अपना पहला गे यानि समलैंगिग जज मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल (49) को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की 11 नवंबर को हुई बैठक में यह सिफारिश की गई थी। खास बात यह है कि केंद्र द्वारा कृपाल के नाम पर चार बार आपत्ति जताने के बावजूद कॉलेजियम ने अपनी सिफारिश दी है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि अगर कृपाल की नियुक्ति होती है, तो यह कब तक संभव होगा, क्योंकि केंद्र सरकार कॉलेजियम से समीक्षा के लिए भी कह सकती है।
देश में यह पहली बार है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से किसी ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश की है जो खुले तौर पर समलैंगिक होने का दावा करता है। अक्टूबर 2017 में, दिल्ली उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से न्यायाधीश के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी। तब से लेकर अब तक सुप्रीम कोर्ट चार बार उनकी सिफारिश के फैसले को टाल चुका है। आखिरी बार सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सिफारिश के फैसले को अगस्त 2020 में टाल दिया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कृपाल की पृष्ठभूमि के बारे में केंद्र से इनपुट मांगा था, तो सरकार ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट का हवाला दिया था। आईबी ने कृपाल के कुछ फेसबुक पोस्ट का हवाला दिया, जिसमें उनके विदेशी साझेदार भी शामिल हैं।
इस साल मार्च में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कृपाल को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाने पर केंद्र का रुख मांगा था, लेकिन केंद्र ने एक बार फिर इस पर आपत्ति जताई थी। केंद्र ने कृपाल के विदेशी पुरुष साथी को लेकर चिंता जताई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 20 साल से कृपाल के पार्टनर ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट निकोलस जर्मेन बाकमैन हैं और स्विट्जरलैंड के रहने वाले हैं। इसलिए केंद्र की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता है। पिछले साल एक इंटरव्यू में कृपाल ने कहा था कि शायद उनकी सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से उन्हें जज बनाने की सिफारिश करने का फैसला टाल दिया गया है।
सौरभ कृपाल वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीएन कृपाल के पुत्र हैं। सौरभ ने पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के साथ जूनियर के रूप में काम किया है, वह वाणिज्यिक कानून के विशेषज्ञ भी हैं। सौरभ कृपाल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की है। उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई की है। उन्होंने लगभग 20 वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट में अभ्यास किया है। उन्होंने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के साथ भी काम किया है। वह समलैंगिक हैं और LGBTQ अधिकारों के लिए मुखर रहे हैं। उन्होंने 'सेक्स एंड द सुप्रीम कोर्ट' पुस्तक का संपादन भी किया है।
समलैंगिकता को अवैध बनाने वाली आईपीसी की धारा 377 पर सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर धारा 377 को खत्म कर दिया था। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से सौरभ कृपाल ने दलील दी थी।
समलैंगिकता से तात्पर्य किसी भी व्यक्ति के समान लिंग के व्यक्ति के प्रति यौन आकर्षण से है। सरल भाषा में पुरुष का पुरुष के प्रति आकर्षण या स्त्री का स्त्री के प्रति आकर्षण। ऐसे लोगों को अंग्रेजी में 'गे' या 'लेस्बियन' भी कहा जाता है।
कॉलेजियम में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अलावा चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का एक पैनल होता है। यह कॉलेजियम ही है जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए सिफारिशें करता है। ये सिफारिशें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेजी जाती हैं। इसके बाद नियुक्ति की जाती है।
कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों पर केंद्र पुनर्विचार की मांग भी कर सकता है, लेकिन अगर कॉलेजियम अपनी बात दोहराता है तो केंद्र मना नहीं कर सकता। हालांकि, नियुक्ति में देरी हो सकती है।