न्यूज़- अगर फ्रांस में कोरोना वायरस की वैक्सीन डेवलप करने में कंपनियों को सफलता हासिल हो गई तो सबसे पहला देश अमेरिका होगा, जिसे कोविड-19 की दवाई मिलेगी। फ्रेंच फार्मास्यूटिकल कंपनी सैनोफी के सीईओ पॉल हडसन ने ब्लूमबर्ग को दिए इंटरव्यू में यह बात कही है। हडसन ने कहा है कि अगर उनकी कंपनी वैक्सीन डेवलप करने में समर्थ होती है तो अमेरिका की सरकार के पास अधिकार होगा कि वह भारी मात्री में इसका प्री-ऑर्डर बुक कर सके।
हडसन ने कहा अमेरिकी सरकार के पास सबसे पहले वैक्सीन हासिल करने का अधिकार है क्योंकि उसने ही सबसे पहले रिस्क में निवेश करने का फैसला किया था। हडसन ने कहा कि अमेरिका वह पहला देश था जिसने कंपनी को रिसर्च के लिए फंड दिया था। ऐसे में वह उम्मीद करेगा कि अगर उसने सबसे पहले मदद की है तो फिर उसे ही सबसे पहली खुराक दी जाए। कुछ हफ्तों पहले न्यूयॉर्क टाइम्स ने खुलासा किया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सैनोफी कंपनी में शेयर हैं और उन्होंने इसमें निवेश किया है। यूरोप की कंपनियां 100 से ज्यादा रिसर्च कर रही हैं ताकि कोरोना की वैक्सीन को तलाशा जा सके। अमेरिका की बायोमेडिकल एडवांस्ड रिसर्च एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (बार्डा) ने सैनोफी को कोरोना वैक्सीन पर काम करने के लिए 30 मिलियन डॉलर यानी 226 करोड़ रुपए से ज्यादा दे चुकी है।
अमेरिका की तरफ से फरवरी माह में कंपनी को फंड मुहैया कराया गया था। इसके बाद कंपनी ने अमेरिका के कहने पर अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन के साथ डील की और अब दोनों कंपनियों का लक्ष्य साल में 60 करोड़ वैक्सीन बनाने का है। न्यूयॉर्क टाइम्स की तरफ से कहा गया था कि ट्रंप के कंपनी में काफी कम शेयर हैं। साल 2019 में ट्रंप ने अपना जो लेखा-जोखा पेश किया था उसके मुताबिक फैमिली ट्रस्ट के 1001 और 15,000 डॉलर्स की ही हिस्सेदारी कंपनी में है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने इस समय ऑपरेशन वार्प स्पीड चला रखा है। इसके तहत अमेरिकी सरकार कई दवा कंपनियों को कोरोना वैक्सीन के रिसर्च के लिए फंडिंग कर रही है और हर संभव मदद उन्हें दे रही है।