देश में कोरोना वायरस के मचे कोहराम के बीच कई राज्यों में शवों को नदियों में फेंके जाने, बालू में दबाने जैसे कई मामले सामने आए हैं। इन्हीं रिपोर्ट्स पर अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) हरकत में आया है। एनएचआरसी ने केंद्र सरकार और राज्यों को कोरोन से मरने वालों की गरिमा बनाए रखने के लिए कानून बनाने के लिए कहा है। यह भी सिफारिश की गई है कि परिवहन के दौरान सामूहिक अंत्येष्टि/दाह संस्कार या शवों का ढेर नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह मृतकों की गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। इस सिलसिले में एनएचआरसी ने गृह मंत्रालय, हैल्थ मिनिस्ट्री, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को विस्तृत एडवायजरी भेजी है।
यूं तो भारत में मृतकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। एनएचआरसी ने बताया है कि कई अंतरराष्ट्रीय अनुबंध, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले के साथ-साथ विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों में कोविड के प्रोटोकॉल को बनाए रखने पर जोर दिया गया है। एडवायजरी में कहा गया है कि प्रशासन बड़ी संख्या में कोरोना मौतों और श्मशान में लंबी कतारों को देखते हुए तत्काल अस्थायी श्मशान बनाएं। वहीं, कहा गया है कि स्वास्थ्य खतरों के लिए उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों से बचने के लिए विद्युत शवदाहगृहों को बनाया जाना चाहिए।
वाराणसी और उससे सटे चंदौली जिले में गंगा नदी में सात और शव बरामद हुए हैं। इनमें से एक शव आंशिक रूप से जला हुआ है। एक शव वाराणसी के सुजाबाद इलाके के पास और छह चंदौली जिले के धानापुर इलाके में गुरुवार को मिले। सुजाबाद इलाके में लोगों ने शवों को मोड़ पर तैरते देखा और रामनगर पुलिस को सूचना दी। इसके बाद गोताखोरों को मौके पर बुलाया गया। काशी अंचल के पुलिस उपायुक्त अमित कुमार भी मौके पर पहुंचे और तलाशी अभियान पर नजर रखी।