कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटा IIT कानपूर,जल्दी करेगा परीक्षण

महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देश वैक्सीन बनाने में जुटे है। अब इस कड़ी में भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईटी) कानपुर भी शामिल हो गया है।
कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटा IIT कानपूर,जल्दी करेगा परीक्षण

न्यूज़- कोरोना वायरस ने भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में अपने पैर पसार लिए हैं। हर रोज इस वायरस के कारण दुनिया भर में मौतें हो रही हैं। इस महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देश वैक्सीन बनाने में जुटे है। अब इस कड़ी में भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईटी) कानपुर भी शामिल हो गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईआईटी कानुपर के विशेषज्ञ करीब दो महीने से दो प्रकार के टीके विकसित करने पर शोध कर रहे हैं। इन टीकों की जून में एनिमल टेस्टिंग (जीव पर परीक्षण) भी शुरू हो जाएगी। सब कुछ ठीक रहा तो इसके अगले चार महीने में इंसान पर इस टीके का परीक्षण किया जाएगा। बता दें कि देश में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ते ही संस्थान के बायोलॉजिकल साइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर देब्येंदु कुमार दास व डॉ. सर्वानन मथेस्वरन शोध में जुट गए थे।

प्रोफेसर देब्येंदु कुमार दास व डॉ. सर्वानन मथेस्वरन ने दिन रात एक कर वैक्सीन पर काम किया। इनोवेशन एंड इन्क्यूबेशन सेल के इंचार्ज प्रो. अमिताभ बंद्योपाध्याय ने बताया कि दो तरह के टीके विकसित करने पर काम हो रहा है। एक कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी बनाएगा, जिससे संक्रमण की आशंका समाप्त होगी।

दूसरे टीके के बारे में अब तक देश में किसी ने नहीं सोचा है। यह वायरस के स्ट्रेन बदलने के दौरान भी कारगर रहेगा। दूसरे संस्थानों से एनिमल टेस्टिंग को लेकर बातचीत भी चल रही है। आईआईटी निदेशक प्रो. अभय करंदीकर का कहना है कि आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। अभी यह रिसर्च स्टेज में है। जल्द ही बाकी की प्रक्रिया पूरी होगी।

विशेषज्ञ पहली वैक्सीन में अन्य वायरस के माध्यम से शरीर में एंटीबॉडी विकसित करेंगे। उनका दावा है कि यह शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएगा। दूसरी वैक्सीन स्ट्रेन बदलने पर भी प्रभावशाली रहेगा।

कोरोना वायरस के कांटे (स्पाइक्स) में एस-वन और एस-टू प्रोटीन रहता है। इसी के जरिए ही वह कोशिका (सेल) के संपर्क में आता है। विशेषज्ञों ने एस-टू प्रोटीन पर काम करने का निर्णय लिया है।

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