डेस्क न्यूज़- देश अब व्हाइट फंगस की समस्या से जूझ रहा है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह ब्लैक फंगस से भी खतरनाक है। हालांकि संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. ईश्वर गिलाडा का कहना है कि यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है, बल्कि इसे और बड़ा कर दिया गया है। देश को ऐसी किसी गलतफहमी का शिकार न बनाएं।
आर्गनाईज मेडिसिन अकेडमी गिल्ड के महासचिव डॉ. ईश्वर
गिलाडा ने कहा, "व्हाइट फंगस एक बहुत ही सामान्य फंगस है,
जिसे हम वर्षों से देख रहे हैं। यह कैडिडा बीकॉन्स नामक कवक के
कारण होता है। इसे कैंडिडिआसिस कहा जाता है।
महिलाओं में ल्यूकोरिया नामक रोग में श्वेत प्रदर होता है, उसमें
आधे श्वेत प्रदर कैंडिडिया से होते हैं, और 3-4 दिनों में ठीक हो जाता है।
एचआईवी के मरीज भी ऐसे ही हैं। सफेद फंगस की समस्या उसे आती है, जो इमिनो कंप्रोमाईज, अस्थमा का मरीज है और स्टेरायड लेता है। जिनका शुगर ज्यादा होता है, उनमें कैंडिडा इंफेक्शन होता है। कैंडिडा धब्बे जीभ के ऊपर और तालू पर सफेद कलर के होते हैं, इसलिए इसका नाम व्हाइट फंगस रखा गया है।
फंगस की पहचान उसके नाम से करनी चाहिए न कि रंग से, क्योंकि ऐसे कई रंग के फंगस होते हैं। जैसा कि डॉ. गिलाडा ने कहा, एस्परजिलोसिस ग्रे और ब्लैक रंग का है। ब्लास्टोमाइकोसिस भूरे रंग का है। हिस्टोप्लाज्मोसिस ऑरेंज कलर का है। ठीक से जांच के बाद इसका इलाज भी आसान है। कई एंटी फंगल दवाएं हैं, जो तीन से छह दिनों में ठीक इसे ठीक कर हैं।
डॉ. गिलाडा ने कहा, आपको मधुमेह (शुगर) को नियंत्रण में रखना है और जब रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो तो सुनिश्चित करें कि फंगस न हो। फंगस तब होता है जब शरीर में शुगर बढ़ जाती है और स्टेरॉयड के कारण इम्युनिटी कम हो जाती है। यह एक अवसरवादी बीमारी है।