न्यूज़- भारत सरकार ने 7 मई से विदेशों में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए वंदे भारत मिशन शुरू किया है। इसके शुरू होते ही ये बहस शुरू हो गई कि भारत सरकार मजदूरों की जगह एनआरआई लोगों पर ध्यान दे रही है। इस बीच तुर्की में फंसे 220 भारतीयों को अभी भी भारत सरकार से थोड़ी मदद मिलने का इंतजार है। Rediff.com ने उत्तर पश्चिम मुंबई के विले पार्ले के चार्टर्ड अकाउंटेंट अमित जैन से बात की, जो 18 मार्च से अपने बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी, जुड़वां बेटियों और 12 वर्षीय बेटे के साथ तुर्की में फंसे हुए हैं। अमित जैन ने इस संबंध में पीएम मोदी से गुहार की है। उन्होंने कहा कि प्रिय मोदीजी, हम 18 मार्च, 2020 से इस्तांबुल में फंसे हैं। मेरे परिवार में मेरी 70 साल की मां और 80 साल के पिता, मेरी पत्नी, 12 साल का बेटा और जुड़वां बेटियां शामिल हैं। हमें वास्तव में आपकी सहायता की आवश्यकता है।
हमने 14 मार्च, 2020 को भारत छोड़ा था, जब तुर्की में सिर्फ एक COVID-19 मामला था। 16 मार्च को, हमें एक सूचना मिली कि तुर्की में भारतीयों को 18 मार्च, 2020, की आधी रात के बाद भारत में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हम तुर्की के एक हिस्से में थे जहां से इस्तांबुल तक पहुंचना और इतने कम समय में भारत की उड़ान पकड़ना असंभव था। बाद में, तुर्की में मामले बढ़े और हमने सचमुच आतंक से भरा जीवन जीया, खासकर जब हम किराने का सामान खरीदने के लिए बाहर जाते हैं।
मेरे पिता को अल्जाइमर, अवसाद, रक्तचाप से लेकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उनके हर्ट में स्टेंट पड़ चुके हैं और आंखों से भी कम दिखाई पड़ता है। दिन में 40 से 50 बार वो पूछते हैं कि हम अपने घर वापस कब जाएंगे। मजबूरी के चलते हमें महंगे दामों पर दवाईयां खरीदनी पड़ रही है। सप्ताह में एक या दो बार हमें अपनी किराने का सामान मिलता है। हर दिन हम अपने खर्चों के लिए 100 डॉलर खर्च करते हैं। मैंने अपने यात्रा बीमा का दो बार नवीनीकरण किया है। मैं पहले ही इस पर 65,000 रुपये खर्च कर चुका हूं। नवीनतम नीति 15 मई को समाप्त हो रही है जिसके बाद मुझे इसे नवीनीकृत करना होगा।