प्लाज्मा थेरेपी से डॉक्टरों में जागी नई उम्मीद, कोरोना संक्रमित मरीज की हालत में आया सुधार
न्यूज़- कोरोनावायरस (कोविड 19) का प्रकोप पूरी दुनिया में बढ़ता जा रहा। वैश्विक महामारी का तोड़ निकालने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक इसका टीका (वैक्सीन) बनाने में जुटे हुए हैं। कोरोना वायरस के मरीजों को ठीक करने के लिए कुछ देशों के डॉक्टर 100 साल पुरानी पद्धति को भी अपना रहे हैं। इस पद्धति में स्वस्थ्य व्यक्ति के प्लाज्मा से बीमार का इलाज किया जाता है।
चीन और अमेरिका के बाद अब भारत में भी कोरोना मरीजों का प्जाज्मा थेरेपी से इलाज शुरु कर दिया हैं। केरल में कोरोना मरीजों का इस थेरेपी के तहत किए गए ट्रायल के पॉजिटिव परिणाम मिलने के बाद अन्य राज्यों में भी कोरोना पॉजिटिव का इलाज इस थेरेपी के तहत किया जा रहा हैं। जिसके सकारात्मक परिणामों से चिकित्सकों में एक नई उम्मीद जागी है ।
बता दें दिल्ली में एक निजी अस्पताल में 50 वर्षीय संक्रमित व्यक्ति का प्लाज्मा थेरेपी से इलाज शुरू किया गया और इस थेरेपी से इलाज शुरू करने के महज 24 घंटे के भीतर मरीज की हालात में सुधार नजर आने लगा है। मैक्स हेल्थकेयर के क्लीनिकल डायरेक्टर डॉ. सुदीप बुधीराजा ने बताया कि थेरेपी शुरू करने से पहले मरीज को फुल वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ रही थी, लेकिन अब उसे 50 फीसदी ही जरूरत हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि हालत में सुधार को देखते हुए मरीज को अगले एक या दो दिन में वेंटिलेटर से हटा दिया जाएगा। मालूम हो कि कोरोना संक्रमण के गंभीर मामलों में मरीज के लंग्स डैमेज हो जाते हैं। फिर उसे सांस लेने में बहुत ज्यादा दिक्कत होने लगती है। इसके बाद मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पडती है1
मालूम हो कि जिस मरीज का प्लाज्मा थेरेपी से इलाज के बाद हालत में सुधार हो रहा है उन्हीं के पिता की बुधवार को संक्रमण के कारण मौत हो गई थी। जिसके बाद मरीज के परिजनों ने डाक्टर से कुछ भी करके उसे बचाने को कहा और प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग करने को कहा। बात दें प्लाज्मा थेरेपी बहुत पुरानी थेरेपी है इससे पहले सार्स संक्रमण से प्रभावित मरीजों के इलाज में इसका काफी इस्तेमाल किया गया था।
कोरोना के मरीजों पर इस थेरेपी का इस्तेमाल सबसे पहले चाइना ने किया और अमेरिका के अस्पतालों में भर्ती कोरोना वायरस पॉजिटिव मरीजों का इस थेरेपी से इलाज किया जा रहा हैं। चीन के डॉक्टरों ने बताया कि इससे इलाज करने पर मरीजों की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है। हालांकि, अमेरिका के एमडीए ने कहा है कि इससे मरीजों की हालत में निश्चित तौर पर सुधार हो रहा है, लेकिन इसे बहुत ज्यादा सुरक्षित और प्रभावी तकनीक नहीं माना जा सकता है। जिसके बाद भारत में भी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और ड्रग कंटोरलर जनरल आफ इंडिया (DCGI) ने प्लाज्मा थेरेपी का क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया है। इस मरीज की हालत इतनी खराब थी कि हम ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते थे। इसलिए परिवार की मंजूरी के साथ इलाज शुरू कर दिया गया।
डॉ. बुधीराजा ने बताया कि उसके परिवार के अन्य सदस्य भी संक्रमित हो गए थे, जो इलाज के बाद पूरी तरह से ठीक हो चुके थे। इस परिवार को जिस व्यक्ति के संपर्क में आने से संक्रमण हुआ था, वह इलाज के बाद अब पूरी तरह से ठीक हो चुका है। उसने इलाज के लिए रक्तदान किया। इसके बाद वेंटिलेटर पर मौजूद मरीज का इलाज शुरू करने से पहले परिवार की पूरी सहमति ली गई। उन्होंने बताया कि ठीक होने के दो सप्ताह बाद बाद कोई भी संक्रमित व्यक्ति प्लाज्मा थेरेपी के लिए प्लाज्मा दान कर सकता है।
प्लाज्मा थेरेपी के तहत कोविड-19 की चपेट में आने के बाद ठीक हो चुके मरीजों के रक्त से प्लाज्मा निकालकर गंभीर मरीजों के शरीर में डाला जाता है! इससे गंभीर मरीज के संक्रमण से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। अगर कोई व्यक्ति कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो जाए, तो उसके शरीर में इस वायरस को बेअसर करने वाले एंटीबॉडीज बन जाते हैं। इन एंटीबॉडीज की मदद से इस वायरस से संक्रमित दूसरे मरीजों के शरीर में मौजूद कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, किसी मरीज के ठीक होने के 14 दिन बाद उसके शरीर से एंटीबॉडीज लिए जा सकते हैं। रक्त में मौजूद एंटीबॉडीज केवल प्लाज्मा में मौजूद होते हैं। इसीलिए रक्त से प्लाज्मा निकालकर बाकी खून फिर से दान करने वाले मरीज के शरीर में चढा दिया जाता। इस थरैपी को शुरू करने के 48 से 72 घंटे के भीतर मरीज की हालत में सुधार आ सकता है। इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड वायलियरी साइंस (ILBS) के डायरेक्टर डॉ. एसके सरीन ने बताया कि दिल्ली सरकार इस तकनीक से मरीजों के इलाज का ट्रायल करने की अनुमति हासिल कर चुकी है।
दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र, केरल और गुजरात में भी कोरोना मरीजों का प्लाज्मा थेरेपी के जरिये इलाज शुरू किया जा रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक इस वायरस की वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक वैकल्पिक समाधानों को अपनाकर मरीजों का इलाज करना ही होगा. बता दें कि इस तकनीक का 1918 में फैले फ्लू और 1930 में खसरा संक्रमण के इलाज में भी इस्तेमाल किया जा चुका है. हालिया वर्षों में इबोला, सार्स और H1N1 इंफ्लूएंजा के मरीजों के इलाज में भी इस तकनीक का सफल प्रयोग किया गया था.
डाक्टरों के अनुसार एक ठीक हो चुके मरीज से इतना प्लाज्मा मिल जाएगा कि तीन अन्य मरीज ठीक हो सकें। इससे डोनर को कोई नुकसान नहीं होगा, कोरोना से लड़ने के लिए उसके शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडीज बनती रहेंगी। डोनर के शरीर से सिर्फ 20% एंटीबॉडीज ली जाएगी जो 2-4 दिनों में ही उसके शरीर में फिर से बन जाएंगी।'