अर्थी को कंधा देने कोई नहीं आया, ब्रह्मभोज खाने पहुंच गए 150 लोग

बताया जा रहा है कि गांव में डॉक्टरी करने वाले बीरेन मेहता की कोरोना संक्रमण के चलते डेथ हो गई थी।
अर्थी को कंधा देने कोई नहीं आया, ब्रह्मभोज खाने पहुंच गए 150 लोग
Updated on

बचपन से हम सभी सुनते आ रहे हैं कि सुख के सब साथी, दुख में न कोई…। इस लाइन को बिहार के अररिया जिला की विशनपुर पंचायत में चरितार्थ देखने को मिला है। यहां मधुलता गांव में कोरोना से डाक्टर बीरेन मेहता और उनकी पत्नी प्रियंका देवी की मौत हो गई, तो पूरे गांव में कोई उन्हें कांधा देने तक नहीं आया, लेकिन जब बेटी ने मां-पिता का श्राद्धक्रम कर्मकांड के तहत पूरा करने के लिए ब्रह्मभोज का आयोजन किया, तो गांव के 150 से ज्यादा लोग भोजन खाने पहुंच गए। बताया जा रहा है कि गांव में डॉक्टरी करने वाले बीरेन मेहता की कोरोना संक्रमण के चलते डेथ हो गई थी।

श्मशान तक पहुंचाने की गुजारिश की, लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी।

उनकी मौत के चार दिन बाद ही उनकी पत्नी प्रियंका देवी को भी कोरोना लील गया। कोरोना से पिता की मौत के चार दिन बाद मां की मौत पर अपनों ने अंतिम संस्कार से मुंह मोड़ लिया था। बीरेन की बेटी ने पड़ोसियों से मां की अर्थी को कांधा देने और श्मशान तक पहुंचाने की गुजारिश की, लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी। गांव समाज से किसी के सामने नहीं आने पर बेटी सोनी ने पीपीई किट पहनकर अपनी मां को गड्ढे में दफनाया था।

डाक्टरी करने के चलते गांव वालों से उनका काफी मेल-मिलाप था।

आर्थिक तंगी में मां को दफनाने की तस्वीर मीडिया में आने पर रानीगंज के सीओ ने सोनी को आर्थिक सहायता के रूप में चार लाख रुपए का चेक दिया था। रुपए मिलने की बात पता चलते ही पिता की मौत से आहत सोनी को गांव वालों ने सलाह दी की कि बीरेन मेहता सामाजिक इनसान थे। डाक्टरी करने के चलते गांव वालों से उनका काफी मेल-मिलाप था। ऐसे में उनका और उनकी पत्नी का श्राद्धक्रम पूरे विधि से होनी चाहिए। श्राद्धक्रम जब विधि से होगी, तो उसमें ब्रह्मभोज का आयोजन तो जरूरी ही था। जिस बीरेन मेहता और उनकी पत्नी की मौत पर गांव से कोई कांधा तक नहीं देने आया, वहीं के करीब 150 लोग ब्रह्मभोज खाने उनकी ड्योढ़ी पर पहुंच गए।

Like and Follow us on :

logo
Since independence
hindi.sinceindependence.com