न्यूज़- गुजरात में गोधरा की घटना के बाद भड़के दंगे में गुलबर्ग सोसायटी उजाड़ हो गई। 28 फरवरी 2002 को हुई इस घटना में 69 लोगों की मौत हो गई थी और जो बच गए वे अपना घर छोड़कर चले यहां से चले गए। इस घटना के 18 साल बाद अब दो परिवार गुलबर्ग सोसायटी लौटने की तैयारी कर रहे हैं। ये परिवार ऐसे समय पर गुलबर्ग सोसायटी लौटने जा रहे हैं जब राज्य के खंभात समेत कई जगहों पर सीएए को लेकर जमकर हिंसा हुई है।
गुलबर्ग सोसायटी के बाशिंदे रहे फिरोज खान पठान (45) ने कहा कि मैं अपने बंगले की मरम्मत कराऊंगा और अगले 6 महीने के अंदर इसमें रहने लगूंगा। उन्होंने कहा, 'गुलबर्ग सोसायटी में मेरा घर 220 वर्ग गज में है। मैं वहां के अतिरिक्त कहीं और पर इतना बड़ा मकान खरीद नहीं सकता हूं। मेरे लिए हर जगह पर पुलिस की सुरक्षा है।'
खान के परिवार के 10 लोगों की जान चली गई
फिरोज खान इन दिनों किराए पर जूहपुरा में रहते हैं। इस दंगे में फिरोज खान के परिवार के 10 लोगों की जान चली गई थी। इनमें उनकी मां, दादी, भाई, भाभी, भतीजा, भतीजी और चाची शामिल थीं। फिरोज खान ने मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड के खिलाफ शिकायत भी की थी। खान ने आरोप लगाया कि तीस्ता ने गुलबर्ग सोसायटी के पीड़ितों के नाम पर पैसा इकट्ठा किया और उसका दुरुपयोग किया।
उधर, गुलबर्ग सोसायटी फ्लैट में रहने वाले फिरोज बांदेली शेख कहते हैं कि दूसरे लोग जाएंगे तो वह भी अपने पुराने घर में जाएंगे। उन्होंने कहा, 'चूंकि वहां पर कई लोगों की मौत हो गई थी, इसलिए ज्यादातर लोग वहां नहीं जाना चाहते हैं।' शेख इन दिनों म्यूजिक बैंड चलाते हैं और जूहापुरा में रहते हैं। लोगों के चले जाने की वजह से गुलबर्ग सोसायटी भूतिया नजर आने लगी है। इस सोसायटी के मकानों पर अभी भी जलाए जाने के निशान मौजूद हैं। इस पूरी सोसायटी में प्रतिदिन केवल एक व्यक्ति कसम मंसूरी आते हैं जिनका यहां पर बिजनस है। वह भी यहां पर सुबह 10 बजे से 6 बजे के बीच रहते हैं।