रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा मंत्रालय द्वारा युद्ध और अभियानों से जुड़े इतिहास को आर्काइव करने, उन्हें गोपनीयता सूची से हटाने और उनके संग्रह से जुड़ी नीति को शनिवार को मंजूरी दे दी। रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, युद्ध इतिहास के समय पर प्रकाशन से लोगों को घटना का सही विवरण उपलब्ध होगा, शैक्षिक अनुसंधान के लिए प्रमाणिक सामग्री उपलब्ध होगी और इससे अनावश्यक अफवाहों को दूर करने में मदद मिलेगी।
इस नीति के अनुसार, रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले सभी प्रतिष्ठान
मसलन सेना की तीनों शाखाएं (थल-जल-वायु), इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ,
असम राइफल्स और भारतीय तटरक्षक वार डायरीज (युद्ध के दौरान घटित घटनाओं का विस्तृत ब्योरा),
लेटर्स ऑफ प्रोसिडिंग्स (विभिन्न प्रतिष्ठानों के बीच अभियान/युद्ध संबंधी आपसी संवाद)
और ऑपरेशनल रिकॉर्ड बुक (अभियान की पूरी जानकारी) सहित
सभी सूचनाएं रक्षा मंत्रालय के इतिहास विभाग को मुहैया कराएंगे
जो इन्हें सुरक्षित रखेगा, उनका संग्रह करेगा और इतिहास लिखेगा।
रक्षा मंत्रालय के बयान के अनुसार, पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट 1993 और पब्लिक रिकॉर्ड रूल्स 1997 के अनुसार रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने की जिम्मेदारी संबंधित प्रतिष्ठान की है। नीति के अनुसार, सामान्य तौर पर रिकॉर्ड को 25 साल के बाद सार्वजनिक किया जाना चाहिए। बयान के अनुसार, युद्ध/अभियान इतिहास के संग्रह के बाद 25 साल या उससे पुराने रिकॉर्ड की संग्रह विशेषज्ञों द्वारा जांच कराए जाने के बाद उसे राष्ट्रीय अभिलेखागार को सौंप दिया जाना चाहिए।
बयान में कहा गया है कि युद्ध और अभियान के इतिहास के प्रकाशन के लिए विभिन्न विभागों से उसके संग्रह और मंजूरी के लिए इतिहास विभाग जिम्मेदार होगा। रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी बयान के अनुसार, नीति रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में समिति के गठन की बात करता है जिसमें थलसेना-नौसेना-वायु सेना के प्रतिनिधियों, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और अन्य प्रतिष्ठानों और (आवश्यकतानुसार) प्रतिष्ठित इतिहासकारों को समिति में शामिल करने की बात करता है। समिति युद्ध और अभियान इतिहास का संग्रह करेगी।