जैसलमेर में साल 2014 में मिले दुर्लभ डायनासोर के पैरों के निशान चोरी हो गए हैं। थईयात गांव की पहाड़ियों से यह निशान अब नहीं मिल रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि स्थानीय अधिकारियों को 1 महीने पहले चोरी हुए फुटप्रिंट के पत्थर की भी जानकारी नहीं है.
7 साल पहले थईयात गांव की पहाड़ियों पर उभरे हुए पैरों के निशान मिले थे। इन पर जब स्टडी की गई तो पता चला कि ये पैरों के निशान 15 करोड़ साल पुराने हैं। निशान को डायनासोर के पैर के निशान के रूप में चिह्नित किया गया था। आशंका जताई जा रही है कि कोई छात्र या आसपास के लोग इसे उठाकर ले जा सकते हैं।
मामला सामने आने के बाद जानकारों ने बताया कि वे पहले ही इसकी सुरक्षा की मांग कर चुके हैं, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब पैरों के निशान नहीं हैं। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में भी इस पंजे के निशान का उल्लेख किया गया है।
2014 में खोजा गया
वर्ष 2014 में, राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा जुरासिक सिस्टम पर 9वीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस का आयोजन किया गया था। इसमें संभावना जताई जा रही थी कि राजस्थान के जैसलमेर इलाके में डायनासोर के मिलने के सबूत मिल सकते हैं। इसके बाद इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ साइंटिस्ट्स के 20 वैज्ञानिकों ने थईयात गांव की पहाड़ियों पर इसकी खोज शुरू की। वैज्ञानिकों को मिले डायनासोर के पैरों के निशान उन्हें चिन्हित कर संरक्षित किया गया था और यह खोज 2015 में प्रकाशित हुई थी। इसमें जैसलमेर के भू-जल वैज्ञानिक डॉ नारायण दास इंखिया भी शामिल थे। इस पर स्टडी की गई तो सामने आया कि ये इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड नामक डायनासोर के फुट प्रिंट हैं।
थईयात की पहाड़ियों में मिली इस महान खोज का संरक्षण न होने के कारण लगभग एक माह पूर्व पदचिन्ह अपनी जगह से खो गया था या किसी ने चोरी कर लिये है। तत्कालीन खोजकर्ता धीरेंद्र कुमार पांडे से जैसलमेर में लापता डायनासोर के पंजे के निशान के बारे में बात की गई थी। उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्हें एक महीने पहले पता चला था। इस बात की जानकारी एक छात्र ने उन्हें मैसेज कर दी थी। पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब जानकारी इकट्ठी हुई तो पता चला कि पैरों के निशान नहीं हैं।
धीरेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि इस बारे में जानकारी जुटाई जा रही है. कहीं कोई छात्र या अन्वेषक इसे अपनी प्रयोगशाला में रखने के लिए नहीं ले गया। हम इसे वापस पाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मैंने पहले प्रशासन से कहा था कि जैसलमेर में खोज को संरक्षित किया जाए, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. इतनी बड़ी खोज गायब हो गई है।
जैसलमेर में मिले निशानों के अध्ययन में पाया गया कि पैर पर तीन मोटी उंगलियां थीं। इस प्रकार का डायनासोर एक से तीन मीटर ऊंचा और पांच से सात मीटर चौड़ा होता था। इस डायनासोर के जीवाश्म पहले फ्रांस, पोलैंड, स्लोवाकिया, इटली, स्पेन, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में पाए गए हैं। पैरों के निशान के अध्ययन से यह अनुमान लगाया गया था कि यह इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड डायनासोर का पंजा था, जो 30 सेमी लंबा था। कच्छ बेसिन और जैसलमेर बेसिन में भारत में डायनासोर के जीवाश्म मिलने की संभावना व्यक्त की गई है। अब ये तय हो गया है कि राजस्थान में खोजने पर चट्टानों से डायनासोर के जीवाश्म भी मिल सकते हैं।
जैसलमेर के भू-जल वैज्ञानिक डॉ नारायण दास इनखिया का कहना है कि जैसलमेर में मिले इस दुर्लभ पदचिन्ह की चोरी बहुत चिंता का विषय है. जब इसका पता चला तो मैं भी वहां मौजूद था। इसकी जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों को भी नहीं है। कलेक्टर आशीष मोदी ने कहा कि मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। इतनी बड़ी खोज कहां और कैसे गायब हो गई, इसकी जानकारी जुटाई जाएगी।
थईयात गांव की पहाड़ियों पर अन्य डायनासोर के पंजे के निशान मिले हैं, लेकिन वे इन पहाड़ियों में दबे हुए हैं। यह पहाड़ी पर उभरा हुआ एकमात्र फुटप्रिंट था।