जयपुर के आमागढ़ किले से भगवा झंडा हटाने को लेकर शुरू हुआ विवाद अब खोहगंग और आमेर तक पहुंच गया है. राज्यसभा सांसद डॉ किरोडीलाल मीणा ने मीणा समाज की ऐतिहासिक विरासत से अवैध कब्जे को हटाने सहित 7 सूत्रीय मांगों को लेकर 21 अगस्त को जयपुर कूच की आधिकारिक घोषणा की है.
सांसद किरोड़ी लाल दौसा जिले के रामगढ़ पचवाड़ा स्थित बालाजी
मैरिज गार्डन से मोटरसाइकिल रैली के रूप में मीणा समाज के साथ
जयपुर की यात्रा करेंगे. वे सात सूत्री मांगों को लेकर जयपुर पहुंचकर
बड़ा आंदोलन भी कर सकते हैं। इसको लेकर गुप्त रणनीति बनाई
जा रही है।
-हर साल जन्माष्टमी को चांदा मीणा गोत्र के लोग आसावरी माता की झांकी खोहगंग स्थित माताजी के मंदिर में लेकर आते हैं, जिन्हें असामाजिक तत्वों द्वारा बाहर ही रोक दिया जाता है। ऐसे में आशावरी माता की झांकी को मंदिर तक प्रवेश दिया जाना चाहिए।
-खोहगंग के दुर्ग पर मीणा समाज का झंडा फहराने दिया जाए।
-मीणा समाज की आशावरी माता तथा शिवालय आदि धर्म स्थलों पर पूजा करने दी जाए, इसके साथ ही मूर्ति तोड़ने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई हो।
-खोहगंग में मीणा समाज के पूर्वजों के ऐतिहासिक किले, बावडी व छतरियों जहां पितृ तर्पण किया जाता रहा है, उन तलाई व मंदिरों से अतिक्रमण हटाकर करीब 88 हेक्टेयर जमीन को मीना समाज को दिया जाए व खोहगंग में अतिक्रमण करके बनाई मजारें तथा अन्य निर्माणों को तुरंत प्रभाव से हटाया जाए।
-आमागढ़ में मीणा समाज को झंडा फहराया जाए तथा आमेर के शासकों के पितृ तर्पण वाली तलाई व अन्य ऐतिहासिक स्थलों को सुरक्षित किया जाए।
-पूरे राजस्थान में मीणा समाज से सम्बंधित सभी ऐतिहासिक राजवंशों की संपत्तियों को सूचीबद्ध कर उनका संरक्षण किया जाए।
-खोहगंगा, आमागढ़ व आमरे सहित जहां भी मीणा शासक हुए उनकी याद में पेनोरमा निर्माण कर इतिहास को सुरक्षित व संरक्षित किया जाए।
सांसद मीणा के जयपुर दौरे की घोषणा के बाद पुलिस-प्रशासन सतर्क हो गया है और खुफिया तंत्र समय-समय पर आंदोलन की रणनीति के बारे में अपडेट जुटा रहा है. आशंका है कि प्रस्तावित मोटरसाइकिल रैली के साथ ही सांसद किरोडीलाल पुलिस को चकमा दे सकते हैं और राजधानी में कोई बड़ा आंदोलन कर सकते हैं. आपको बता दें कि कुछ दिन पहले पुलिस के कड़े पहरे के बावजूद सांसद ने जंगल के रास्ते आमागढ़ किले में पहुंचकर मीन भगवान का झंडा फहराया था. इससे पहले भी कई बार सरकार की नाक के नीचे कई बड़े आंदोलनों से पुलिस-प्रशासन मुश्किल में पड़ गया।