UP ELECTION 2022- पाकिस्तान, जिन्ना, तालिबान, मुगल, अब्बा जैसे प्रतीकों से चुनाव को क्या हिंदू बनाम मुसलमान का मुद्दा बनाया जा रहा है?

विकास की बात छोड़ मुजफ्फरनगर दंगों की याद क्यों दिला रहे हैं बीजेपी नेता‚ यूपी में यह आम धारणा है कि जो भी पार्टी पश्चिमी यूपी में बढ़त बनाती है, वह आगे भी बढ़त बनाए रहती है यानी उसके चुनाव जीतने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
मुजफ्फरनगर में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोगों से सवाल किया, “हम मुजफ्फनगर और पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता से पूछने आए हैं कि क्या जनता दंगों को भूल गई है। अगर नहीं भूली है तो वोट देने में गलती मत करना।

मुजफ्फरनगर में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोगों से सवाल किया, “हम मुजफ्फनगर और पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता से पूछने आए हैं कि क्या जनता दंगों को भूल गई है। अगर नहीं भूली है तो वोट देने में गलती मत करना।

Photo: Twitter/@AmitShah

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी प्रचार की शुरुआत में पांच साल के विकास कार्यों और कानून-व्यवस्था सुधारने का दावा करते हुए अपनी उपलब्धियों को प्रचारित करना शुरू किया था लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, पार्टी के स्थानीय नेताओं से लेकर केंद्रीय स्तर तक के नेता और मंत्री न सिर्फ पाकिस्तान, जिन्ना, तालिबान, मुगल, अब्बा जैसे प्रतीकों के जरिए न सिर्फ चुनाव को हिन्दू बनाम मुसलमान की ओर मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि पश्चिमी यूपी के लोगों को साल 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की भी याद दिला रहे हैं।

यूपी में यह आम धारणा है कि जो भी पार्टी पश्चिमी यूपी में बढ़त बनाती है, वह आगे भी बढ़त बनाए रहती है यानी उसके चुनाव जीतने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अलावा केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह समेत कई बड़े नेता इस समय पश्चिमी यूपी के अलग-अलग इलाकों में घर-घर जाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

मुजफ्फरनगर में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोगों से सवाल किया, “हम मुजफ्फनगर और पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता से पूछने आए हैं कि क्या जनता दंगों को भूल गई है। अगर नहीं भूली है तो वोट देने में गलती मत करना, वर्ना फिर से वही दंगे कराने वाले लखनऊ की गद्दी पर बैठ जाएंगे। बीजेपी के शासन में अब तक एक भी दंगा नहीं हुआ, बल्कि दंगा कराने वाले जेल की सलाखों के पीछे हैं।”
अगले दिन दिल्ली से लगे यूपी के हापुड़ में रविवार को एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कुछ लोग दोबारा यूपी में दंगे कराना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “जो लोग पांच साल तक बिलों में दुबके हुए थे, वे एक बार फिर सिर उठाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन 10 मार्च के बाद इनकी गर्मी उतार दी जाएगी।”
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yogi adityanath

योगी आदित्यनाथ ने साल 2013 में मुजफ्फनगर दंगों से पहले सचिन और गौरव की हत्या का भी जिक्र किया।

अमित शाह की तरह योगी आदित्यनाथ का भी सीधा निशान समाजवादी पार्टी की सरकार पर था जो साल 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के वक्त में राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी थी। 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल कस्बे में मलिकपुरा निवासी गौरव और सचिन की हत्या कर दी गई थी। उसके बाद वहां कई पंचायतें हुईं और फिर सितंबर 2013 को मुजफ्फरनगर में भयानक सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था।

जब हम लैपटॉप की बात करते हैं, फ्री बिजली की बात करते हैं, रोड की बात करते हैं तो उन्हें अब्बाजान याद आते हैं- अखिलेश यादव
बीजेपी के दूसरे नेता भी इन चुनावों में पाकिस्तान, जिन्ना, अब्बाजान जैसे शब्दों का जिक्र करते हुए इन्हें विपक्षी नेताओं, खासकर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से जोड़ रहे हैं। इनके जरिए वो यह कहना चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी मुस्लिमों की पक्षधर है और बीजेपी हिन्दुओं की हितसाधक। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव एक टीवी चैनल से बातचीत में कहते हैं कि उन्हें इससे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन सवाल है कि बीजेपी मुद्दों की बात क्यों नहीं करती। अखिलेश यादव कहते हैं, “हमें अब्बाजान शब्द से कोई आपत्ति नहीं है। ये कोई गलत शब्द नहीं है। हमारी आपत्ति इस बात से है कि जब हम लैपटॉप की बात करते हैं, फ्री बिजली की बात करते हैं, रोड की बात करते हैं तो उन्हें अब्बाजान याद आते हैं।”
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों और मुसलमानों के बीच नफरत का फायदा बीजेपी को मिला
दरअसल, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके में जाटों और मुसलमानों का बाहुल्य है। साल 2013 के चुनाव से पहले जाट और मुसलमान में भारतीय किसान यूनियन की वजह से एकता थी और इनका वोट आमतौर पर राष्ट्रीय लोकदल या फिर उसकी समर्थक पार्टियों को जाता था। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों और मुसलमानों के बीच नफरत का फायदा बीजेपी को मिला और न सिर्फ 2014 के लोकसभा चुनाव बल्कि 2017 के विधानसभा चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी मिला। लेकिन कृषि कानूनों के विरोध में हुए किसान आंदोलन के चलते जाट-मुस्लिम एकता एक बार फिर कायम हुई और कृषि कानूनों की वापसी के बावजूद यह बनी हुई है।

बीजेपी की परेशानी का मुख्य सबब यही है कि इस इलाके में कोई दूसरी युक्ति सफल नहीं हो सकती है और हिन्दू, विशेषकर जाट मतदाताओं को किसी न किसी तरह ‘मुसलमानों से भय’ और दंगों का खौफ दिखाकर ही उनका समर्थन हासिल किया जा सकता है। हालांकि यह युक्ति कुछ हद तक कामयाब होती भी दिख रही है लेकिन पूरे इलाके में पिछले साल 28 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के साथ हुई पुलिसिया कार्रवाई के बाद निकले टिकैत के आँसुओं ने बीजेपी सरकार के खिलाफ जाट समुदाय में जो गुस्सा भड़का, उसकी भरपाई बीजेपी के इन प्रयासों से भी नहीं हो पा रही है।

पश्चिमी यूपी के गांवों में बीजेपी उम्मीदवारों का विरोध हो रहा है!

बीजेपी के ब़ड़े नेता इन इलाकों में घर-घर जाकर भले ही पर्चे बांट रहे हों और प्रचार कर रहे हों लेकिन पश्चिमी यूपी के गांवों में बीजेपी उम्मीदवारों को काले झंडे दिखाने, उन पर पत्थर फेंकने और उन्हें खदेड़ने के दर्जनों मामले अब तक सामने आ चुके हैं। पूरे इलाके में बीजेपी नेताओं का काफी दिनों से विरोध हो रहा है और यह विरोध चुनाव के नजदीक आने के साथ ही बढ़ता जा रहा है। यहां 10 फरवरी और 14 फरवरी को मतदान होना है।

वहीं दूसरी ओर, मुस्लिम समुदाय किसी भी तरीके से चुनाव का ध्रुवीकरण होने की कोशिशों को सफल नहीं होने दे रहे हैं। अब तक ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जिनके जरिए सांप्रदायिक संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती थी लेकिन दोनों ही समुदायों ने संयम दिखाते हुए ऐसी किसी भी कोशिश को नाकाम कर दिया। यहां तक कि एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की ओर से उम्मीदवार उतारे जाने के मुद्दे को भी मुसलमान उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं ताकि हिन्दू मतदाताओं में इसका कोई नकारात्मक संदेश न जाने पाए।

जब बेरोजगारी जैसे मुद्दे पर छात्र यूपी और बिहार में आंदोलित हैं, ऐसी स्थिति में बीजेपी हिन्दू-मुसलमान जैसे मुद्दों को उठाने की हिम्मत कैसे कर रही है?

आम मतदाता भी इस बात से हैरान हैं कि जब बेरोजगारी जैसे मुद्दे पर छात्र यूपी और बिहार में आंदोलित हैं, ऐसी स्थिति में बीजेपी हिन्दू-मुसलमान जैसे मुद्दों को उठाने की हिम्मत कैसे कर रही है? लेकिन शायद बीजेपी को पता है कि जब पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम गठजोड़ में दरार नहीं पड़ रही है, पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता बीजेपी के विरोध में हैं और लोग महंगाई, बेरोजगारी, नौकरियों में कमी जैसे मुद्दों पर चर्चा कर रहे हों, उस स्थिति में इन सवालों के जवाब देने से बेहतर वो लोगों को भय दिखाकर अपनी ओर मोड़ने में सफल हो सकती है।

पश्चिमी यूपी में किसानों, जाटों और दलितों के साथ ही मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है। बीजेपी पर इस इलाके में हर चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश के आरोप लगते रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैराना के पलायन और 80 बनाम 20 जैसे मुद्दों को उठाकर ध्रुवीकरण की कोशिश शुरू कर दी थी जिसे अमित शाह जैसे केंद्रीय नेता भी तेज धार देते जा रहे हैं।

समीरात्मज मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. लंबे समय तक बीबीसी में संवाददाता रहे हैं. इस समय जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से जुड़े हैं और यूट्यूब चैनल ‘द ग्राउंड रिपोर्ट’ के संपादक हैं.

ये एना​लेसिस यूपी चुनाव को लेकर बन रही श्रृंखला का दूसरा लेख है, इस श्रृंखला में आगे भी यूपी चुनाव 2022 के राजनैतिक समीकरणों और जनता के रुझान को लेकर के समीक्षा निंरतर जारी रहेगी।

(यह लेख अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

<div class="paragraphs"><p>मुजफ्फरनगर में ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोगों से सवाल किया, “हम मुजफ्फनगर और पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता से पूछने आए हैं कि क्या जनता दंगों को भूल गई है। अगर नहीं भूली है तो वोट देने में गलती मत करना।</p></div>
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