Kaifi Azmi Death Anniversary: महज 11 साल की उम्र में लिख डाली थी पहली रचना,ऐसी है कैफ़ी की कैफियत

Kaifi Azmi Death Anniversary: साल 1919 में यूपी आजमगढ़ में जन्म लेने वाले कैफ़ी आज़मी का असली नाम सैयद अतहर हुसैन रिज़वी हुआ करता था। उर्दू अदब की दुनिया के वे कुछ शानदार शख़्सियतों में शुमार थे, जिन्होंने फिल्मों के गीतों को अलग अंदाज दिया।
Kaifi Azmi Death Anniversary: महज 11 साल की उम्र में लिख डाली थी पहली रचना,ऐसी है कैफ़ी की कैफियत
Photo Credits: azmi kaifi

Kaifi Azmi Death Anniversary: कैफी आजमी उर्दू के प्रसिद्ध शायर और बॉलीवुड के दिग्गज गीतकार रहे। उनका असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था।. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में 14 जनवरी 1919 को जन्मे कैफी ने महज 11 साल की उम्र में अपनी पहली गज़ल लिख डाली थी। इसके बाद से वे कस्बे के हर मुशायरे में शामिल होने लगे। साल 1936 में कम्यूनिज्म आइडियोलॉजी से प्रभावित होकर इसकी सदस्यता ली। मई 1947 में उन्होंने शौकत से शादी की।

इनसे जो संतान हुई शबाना आजमी और तन्नवी आजमी जिन्होंने आगे चलकर हिंदी सिनेमा में खूब नाम कमाया। कैफी ने कई फिल्मों में बेहतरीन गीत लिखे। इस दौरान उन्हें कई सम्मान से नवाजा भी गया। उनके क्रिएशंस में आवारा सज़दे, इंकार, आख़िरे-शब आदि शायर प्रेमियों में असर छोड़ते हैं। आज देश के इस पसंदीदा शायर कैफ़ी आज़मी की पुण्यतिथि है (Kaifi Azmi Death Anniversary). 10 मई 2002 को इस अज़ीम शख़्सियत ने दुनिया से रुख्सती ले ली।

मुशायरे में कैफी नज्म सुन शौकत ने तोड़ दी थी मंगनी...

साल 1919 में यूपी आजमगढ़ में जन्म लेने वाले कैफ़ी आज़मी का असली नाम सैयद अतहर हुसैन रिज़वी हुआ करता था। उर्दू अदब की दुनिया के वे कुछ शानदार शख़्सियतों में शुमार थे, जिन्होंने फिल्मों के गीतों को अलग अंदाज दिया। कैफ़ी के जीवन में एक नज़्म ने भी ख़ास किरदार निभाया। हैदराबाद के एक मुशायरे के दौरान जब कैफ़ी आजमी ये नज़्म को पढ़ रहे थे तब एक महिला ने अपनी मंगनी तक तोड़ दी थी। वो नज़्म थी ‘औरत’। कहते हैं वो कोई औऱ नहीं बल्कि शौकत आज़मी थी जो बाद में कैफी की पत्नी बनी। बताया जाता है कि शौकत ने उनकी ‘औरत’ नज़्म सुनकर ही कैफी से शादी की थी।
Photo Courtesy: Social media

रचना को सम्मान से नवाजा गया

कफी ने ‘काग़ज़ के फूल’, ‘गर्म हवा’, ‘हक़ीक़त’, ‘हीर रांझा’ जैसी कई नामी फिल्मों को अपने गीतों से पिरोया। कैफी आजमी (Kaifi Azmi) को देश के चौथे सबसे प्रतिष्ठित नागरिक अवॉर्ड पद्मश्री से नवाजे जाने के बाद उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी अवॉर्ड, ‘आवारा सजदे’ रचना के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड फॉर उर्दू, महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का स्पेशल अवॉर्ड, सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड, 1998 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने ज्ञानेश्वर अवॉर्ड भी मिला। दिल्ली सरकार और दिल्ली उर्दू अकादमी की ओर से उन्हें पहला मिलेनियम अवॉर्ड भी दिया गया।

Kaifi Azmi Death Anniversary: कैफ़ी आज़मी की कुछ मशहूर शेर

1. बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में

कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में...

2. झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं

दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं...

3. इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं

दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद...

4. बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमां जो बस गए

इंसां की शक्ल देखने को हम तरस गए...

Kaifi Azmi के लिखे गीत-

1. वक़्त ने किया क्या हंसीं सितम

तुम रहे न तुम हम रहे न हम

वक़्त ने किया…

बेक़रार दिल इस तरह मिले

जिस तरह कभी हम जुदा न थे

तुम भी खो गए, हम भी खो गए

एक राह पर चलके दो क़दम

वक़्त ने किया…

जाएंगे कहाँ सूझता नहीं

चल पड़े मगर रास्ता नहीं

क्या तलाश है कुछ पता नहीं

बुन रहे हैं दिल ख़्वाब दम-ब-दम

वक़्त ने किया…

2. ये दुनिया ये महफ़िल

मेरे काम की नहीं – (२)

किसको सुनाऊँ हाल-ए-दिल बेक़रार का

बुझता हुआ चराग़ हूँ अपने मज़ार का

ऐ काश भूल जाऊँ मगर भूलता नहीं

किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का

ये दुनिया…

अपना पता मिले न खबर यार की मिले

दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा प्यार की मिले

उनको खुदा मिले है खुदा की जिन्हे तलाश

मुझको बस इक झलक मेरे दिलदार की मिले

ये दुनिया…

सहरा में आके भी मुझको ठिकाना न मिला

ग़म को भूलाने का कोई बहाना न मिला

दिल तरसे जिस में प्यार को क्या समझूँ उस संसार को

इक जीती बाज़ी हारके मैं ढूँढूँ बिछड़े यार को

ये दुनिया…

दूर निगाहों से आँसू बहाता है कोई

कैसे न जाऊँ मैं मुझको बुलाता है कोई

या टूटे दिल को जोड़ दो या सारे बंधन तोड़ दो

ऐ पर्बत रस्ता दे मुझे ऐ काँटों दामन छोड़ दो

ये दुनिया…

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