वैक्सीन की डबल डोज ही देगी कोरोना से सुरक्षा, रीइन्फेक्शन से बचना हैं तो दूसरी खुराक इसलिए जरूरी

कोरोना की दूसरी लहर कमजोर हो गई है। रोजाना मामले 40 हजार के करीब पहुंच गए हैं। जून से टीकाकरण में भी तेजी आई है, लेकिन अभी भी कई लोग ऐसे हैं जो मामले कम होते ही टीकाकरण से परहेज कर रहे हैं। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो वैक्सीन की एक डोज मिलने के बाद ही पूरी तरह से लापरवाह हो जाते हैं।
वैक्सीन की डबल डोज ही देगी कोरोना से सुरक्षा, रीइन्फेक्शन से बचना हैं तो दूसरी खुराक इसलिए जरूरी

डेस्क न्यूज़- कोरोना की दूसरी लहर कमजोर हो गई है। रोजाना मामले 40 हजार के करीब पहुंच गए हैं। जून से टीकाकरण में भी तेजी आई है, लेकिन अभी भी कई लोग ऐसे हैं जो मामले कम होते ही टीकाकरण से परहेज कर रहे हैं। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो वैक्सीन की एक डोज मिलने के बाद ही पूरी तरह से लापरवाह हो जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि मुझे कोरोना हो गया। उसके बाद मैंने टीके की एक खुराक ली। अब मुझे दूसरी खुराक की जरूरत नहीं है। यह कहाँ तक ठीक है? वैक्सीन की डबल डोज क्यों जरूरी है? दोनों खुराक के बाद आप कब तक सुरक्षित रहेंगे? क्या भारत को यूके की तरह कोवशील्ड की दो खुराक के बीच के अंतर को कम करना चाहिए? क्या दो खुराक के बाद तीसरी खुराक की आवश्यकता होगी? इन सभी सवालों के जवाब जानेंगें।

वैक्सीन की दूसरी खुराक क्यों जरूरी है?

दूसरी लहर में हमने कोरोना की भयावहता देखी। इसने दिखाया कि यह महामारी कितनी घातक हो सकती है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन साथ ही इसने हमें तीसरी लहर से निपटने के बेहतर तरीके भी बताए। हमें यह समझना होगा कि टीकाकरण ही कोरोना संक्रमण से बचने का एकमात्र उपाय है। उसमें भी वैक्सीन की दूसरी खुराक सबसे अहम है। जब तक आप दोनों खुराक न ले लें, तब तक आप संक्रमण के जोखिम से पूरी तरह दूर नहीं हैं।

अगर भारत की बात करें तो देश में कोरोना के तीनों टीके डबल डोज वाले टीके हैं। ऐसे में अगर आपने वैक्सीन की एक डोज ली है तो दूसरी डोज जरूर लें। कोवेशील्ड की दूसरी खुराक पहली खुराक के 12 सप्ताह बाद दी जाएगी। यदि आपने कोवैक्सीन की पहली खुराक ली है, तो आपको दूसरी खुराक 4 से 6 सप्ताह के बीच मिल सकती है।

पहली खुराक मिल गई है, दूसरी क्यों ले?

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कोरोना से ठीक होने के बाद यह तय नहीं होता है कि आपके शरीर में बनी एंटीबॉडीज कब तक बनी रहेंगी। ऐसे में कोरोना वैक्सीन को बूस्टर डोज के तौर पर लेना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक डोज से पूरी तरह सुरक्षित हो जाएंगे। अब तक के शोध बताते हैं कि ज्यादातर टीकों की एक खुराक कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ केवल 30 से 35% ही प्रभावी है। दोनों खुराकों को लगाने के बाद यह प्रभाव 80 से 90% तक हो जाता है। ऐसे में दोनों खुराक लेने से आप ज्यादा सुरक्षित रहेंगे।

संक्रमित हो चुके लोगों के लिए एक खुराक पर्याप्त

जो लोग संक्रमित हो चुके हैं उनके लिए एक खुराक पर्याप्त है, लेकिन यह विभिन्न लोगों की इम्यून सिस्टम पर भी निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, जिन लोगों को टीके की दोनों खुराकें मिलती हैं, वे भी 80% तक सुरक्षित रहते हैं। यानी उनमें भी 20 फीसदी संक्रमण का खतरा है। हम इस बात की गारंटी नहीं दे सकते कि दोनों डोज लेने से उन्हें कोरोना नहीं होगा। और अगर नए वेरिएंट से कोरोना होता है तो इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता।

दूसरी खुराक के बाद कीतना सुरक्षित?

आपको कोरोना हो गया है और आपको दोनों खुराकें मिल गई हैं। उसके बाद भी सभी को कोविड के उचित व्यवहार का पालन करना चाहिए, क्योंकि पूरी तरह से टीका लगवाने के बाद भी टीका लगाने वाला व्यक्ति सुरक्षित रहता है, लेकिन वह उसी तरह से संक्रमण फैला सकता है, जिस तरह बिना टीका लगाए व्यक्ति। इसलिए समाज के प्रति जिम्मेदार होते हुए दोनों खुराक लेने के बाद भी मास्क पहनना, सैनिटाइजर आदि का उपयोग करना बंद न करें।

दोनों ड़ोज लेने के बाद कब तक सुरक्षा?

वर्तमान में ऐसा माना जाता है कि दोनों खुराक लेने के बाद 80% लोग 6 से 11 महीने तक सुरक्षित रहते हैं। अगर दोनों डोज के बाद भी कोरोना होता है तो या तो कोई लक्षण नहीं होते हैं या फिर हल्के लक्षण होते हैं। टीके की एक खुराक आपको संक्रमण से बचाती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता कम है। जब दोनों खुराक का उपयोग किया जाता है तो टीका अधिक प्रभावी होता है।

यूके के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन से पता चलता है कि जिन लोगों को कोरोना के डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ पूरी तरह से टीका लगाया गया था, वे सुरक्षित थे, जबकि वैक्सीन की एक खुराक प्राप्त करने वालों को डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ कम सुरक्षा मिली थी। अमेरिका में, सीडीसी ने पूरी तरह से टीकाकरण वाले लोगों के लिए सार्वजनिक समारोहों और मास्क-मुक्त रहने की भी अनुमति दी है। यानी हम जितनी जल्दी पूरी तरह से टीका लगवाएंगे उतनी जल्दी हमारे देश में भी ऐसे हालात पैदा होंगे।

कब तक लगानी पडेगी वैक्सीन?

इस बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। कुछ नए सबूत सामने आ रहे हैं। विशेष रूप से एमआरएनए आधारित टीकों में। यह बात सामने आई है कि इम्युनिटी ज्यादा समय तक चल सकती है। जो पिछले साल अप्रैल में क्लिनिकल ट्रायल में शामिल हुए थे। उन्हें अभी भी सुरक्षा मिली हुई थी। ऐसे में हो सकता है कि बूस्टर डोज दो साल में एक बार देना पड़े, एक साल में दिया जाए, लेकिन अभी इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।

हालाँकि, इस प्रकार के वायरस में परिवर्तन होते हैं। ऐसे वायरस के खिलाफ बूस्टर डोज की जरूरत होती है। नए वैरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने की आवश्यकता अधिक है। ऐसे में भी बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी।, ऐसे में भी बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी। हालांकि, वैक्सीन में बदलाव की जरूरत नहीं दिखाई दे रही है।

तीसरी खुराक?

वैक्सीन कंपनी फाइजर-बायोएनटेक का दावा है कि डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले तीसरी खुराक ज्यादा कारगर होगी। हालांकि, तीसरी खुराक कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को ही दी जाएगी। खासकर वे लोग जो दिल, फेफड़े या कैंसर की बीमारी से पीड़ित हैं। फाइजर के मुताबिक तीसरी खुराक दूसरी खुराक के छह महीने बाद दी जा सकती है। यह खुराक दूसरी खुराक के छह से 12 महीने के भीतर देनी चाहिए।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

अमेरिकी स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरी खुराक को लेकर फाइजर का दावा अवसरवादी और गैर जिम्मेदाराना है। तीसरी खुराक की उपयोगिता इतनी जल्दी साबित नहीं हो सकती। इसके लिए कई महीनों के डेटा स्टडी की जरूरत होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरी खुराक लेना जरूरी नहीं है। वह भी ऐसे समय में जब दुनिया के कई बड़े हिस्सों में टीकाकरण की दर बहुत कम है। साथ ही टीकों की आपूर्ति सीमित है। अमीर देशों के लोगों को अतिरिक्त खुराक देना अदूरदर्शी है।

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