किसान आंदोलन स्थगित, आंदोलन में 700 किसानों की मौत,देखिए 378 दिन की पूरी कहानी

किसानों को सरकार की और से औपचारिक चिट्ठी मिलने के बाद गुरुवार को SKM की बैठक हुई और किसान आंदोलन को फ़िलहाल ख़त्म करने का ऐलान किया गया. अब अगले 48 घंटे में बॉर्डर खाली कर देंगे.
Farmer's movement ended
Farmer's movement ended

कृषि मंत्रालय की तरफ से गुरुवार सुबह एक हस्ताक्षरित पत्र संयुक्त किसान मोर्चे को मिला है –अशोक धवले, किसान नेता

कृषि कानून वापसी के बाद किसानों की अन्य मांगों पर केंद्र सरकार ने जो प्रस्ताव दिया है, उसे किसान संगठनों ने मान लिया है. – सयुक्त किसान मोर्चा

जो भी प्रस्ताव सरकार की तरफ से आया है, बस हमारी मांग यह है कि उन्हें लिखित तौर पर दे दिया जाए – राकेश टिकैत

सरकार मुआवजे के तौर पर किसानों को देगी 5 लाख रूपए – हरियाणा सरकार

कुछ ऐसी ही लाइने आपको पढ़ने मिल जाएगी अखबारों और सुनने को मिल जाएगी टीवी चैनलों पर. क्योंकी अब दिल्ली के बॉर्डर खाली होने वाले है. दिल्ली में एक बार फिर आना और जाना आसान होगा. वो इसलिए क्योकी दिल्ली के चारों और बैठे किसान 48 घंटो में बॉर्डर खाली कर देंगे. विरोध के बाद अब किसान और सरकार के बीच बातों पर सहमति बन गई है. संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने बैठक के बाद किसान आंदोलन ख़त्म होने का ऐलान कर दिया है. देश में मौजूद किसान बॉर्डर को 11 दिसंबर तक खाली कर देंगे. वही देश के किसान 10 दिसंबर को हेलिकॉप्टर क्रैश में मारे गए जवानों और CDS बिपिन रावत के अंतिम संस्कार के कारण खुशी का इजहार नहीं करेंगे इसके बजाए वह शोक सभा करेंगे तो 11 दिसंबर को दिल्ली बॉर्डर पर जश्न होगा और किसान घरों को लौट जाएंगे.

किसान आंदोलन
किसान आंदोलन

सरकार ने समझौते से दाएं बाएं किया तो हम भी करेंगे आंदोलन -

हाल ही में हुई प्रेस कॉन्फ्रेस में किसान नेता गुरनाम सिंह ने कहा की - सभी पत्रकार भाईयों का धन्यवाद. इस आंदोलन को हमने स्थगित किया है और हर महीने समीक्षा होगी. 15 जनवरी को बैठक है, अगर सरकार ने समझौते से दाएं बाएं किया तो हम भी आंदोलन करेंगे. वही कॉर्डिनेशन में मौजूद कमेटी के मेंबर हनान मौला ने सभी का धन्यवाद दिया, आजादी के बाद ये सबसे बड़ा और शांतिपूर्ण जनवादी आंदोलन है. हम किसी जाति के नहीं सिर्फ किसान है. ये लड़ाई अन्य मुद्दों पर भी आगे चलता रहेगा, अभी क‌ई सुधारों के लिए लडाई जारी रहेगी.

75 सालों में पूरी विश्व में कहीं भी ऐसा आंदोलन नहीं हुआ. ये कानून देश के अन्नदाता के खिलाफ था और कॉरपोरेट के पक्ष में था. फिलहाल आंदोलन को समाप्त नहीं, स्थगित किया गया है. सभी किसान देश में 1 साल तक बॉर्डर पर जमे रहें. हर मौसम का रुप किसानो ने देखा. चाहे वो सर्दी हो गर्मी हो या बरसात.चलिए आपको बताते है की आखिर इस आंदोलन की शुरूवात कब हुई.

किसान आंदोंलन
किसान आंदोंलन

आज से ठीक 1 वर्ष पहले दिल्ली की चारों सीमाओं पर देश के अन्नदाताओं का जुटना शुरू हुआ था. तब केवल ठिठुराने वाली सर्दी की शुरूवाती मार थी. ज्यादातर लोगों को उम्मीद नहीं थी की किसान इतने लंबे समय तक अपने प्रियजनों को छोड़कर दिल्ली की सामाओं पर डटे रहेंगे. लेकिन अन्नदाताओं ने सभी का सामना किया. यहीं नहीं, जब दुनिया में कोरोना महामारी फैली. जब 2 गज दूरी के नियम की सख्ती से पालना की जा रही थी. तब भी देश का भाग्य विधाता सीमाओं पर डटा रहा. लेकिन जब उनसे ये सवाल किया गया की आप महामारी अपनी सुरक्षा क्यों नहीं कर रहे है तब किसानों की और से कहा गया “हम इन कानूनो से वैसे ही मरने जा रहे है ये ज्यादा खतरनाक है.“ उस समय सरकार द्वारा बनाए गए नियमों की पालनी भी किसानों नहीं की और कोविड-19 के प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए दिखाई दिए.

कुछ समय बाद आंदोलन में रुख में किसानों के परिवार से महिलाएं और बच्चे भी सिंघू, टिकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर विरोध करते हुए दिखाई दिए. फिर धीरे-धीरे वहा मौजूद संसाधनों को किसानों ने अपना घर बनाना शुरू कर दिया. कई जगहों पर तो पक्के मकान तक दिखाई देने लगे. जिस कारण काफी ज्यादा व्यस्त रहने वाला मार्ग धीमा और भरा हुआ दिखाई दिया. दिल्ली में जाने वालों को रास्तों पर घटों खड़े रहना पड़ा. घटों खडे लोगों को किसानों ने इस कानून से होने वाली परेशानी के बारे में अवगत करवाया साथ ही परेशाना हुए लोगों की सहायता भी की.

विश्व पटल पर मिला किसानों को भारी समर्थन –

किसान आंदोलन को हिंदुस्तान में ही नहीं विश्व में कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने भी अपना समर्थन किया. इसमें सिंगर और अभिनेत्री रिहाना, क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी माया हैरिस भी शामिल है.

इस मुद्दे से जुड़ी एक न्यूज़ रिपोर्ट शेयर करते हुए रिहाना ने ट्वीट किया, "हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं.

वहीं, ग्रेटा थनबर्ग ने लिखा, "मैं अभी भी किसानों के साथ खड़ी हूं और उनके शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का समर्थन करती हूं. कितनी भी नफ़रत, धमकियां और मानवाधिकारों का उल्लंघन इसे नहीं बदल सकता."

ब्रिटेन की लेबर पार्टी, स्कॉटिश नेशनल पार्टी के सांसदों ने, लिबरल डेमोक्रेट सभी ने किसानों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी. यहां तक की कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और कंज़रवेटिव विपक्ष के नेता एरिन ओ' टूले ने भी विरोध पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर चिंता व्यक्त की थी. सभी ने उनका समर्थन किया. लेकिन भारत ने बयानों की निंदा करते हुए इस अपना आंतरिक मामला बताया. विरोध काफी शांति पूर्ण थे. जिसकी लोगों ने सराहना भी की. लेकिन कभी-कभी ऐसे मौके आए जब लगा किसान आंदोलन समाप्ति की और बढ़ रहा है.

Farmers entered the Red Fort
Farmers entered the Red Fort

जब लाल किला बना था “वॉर पैलेस” -

दिसंबर की कडकड़ाती ठंड में समाचार एजेंसी पीटीआई की एक तस्वीर वायरल हुई जिसमें एक अर्धसैनिक बल का जवान एक वृद्ध सिख व्यक्ति पर लाठी चलाता हुआ दिखाई दिया. इस तस्वीर के सामने आने के बाद विपक्ष ने केंद्र को आडे हाथों लेना शुरू किया.

फिर 26 जनवरी को जब किसान दिल्ली में घुसे तो ये विरोध ने हिंसा का रुप ले लिया तब ऐसा लगा की विरोध खत्म हो सकता है. वैसे तो ज्यादातर किसानों ने तय रूट की पालना की लेकिन कुछ किसान दिल्ली के दिल यानी लालकिला के एरिये की और बढ़े जिससे किसानों और पुलिस के बीच झड़प देखने को मिली.

फिर लगभग दस महीनों बाद उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में में विरोध के दौरान कुल 8 लोगों की मौत हुई. जिसमें चार लोग किसान थे. जो विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. एक व्यक्ति पत्रकार था जो कि इसे कवर कर रहा था. इन सभी की मौत गाड़ी के कुचले जाने से हुई. जिसमें कथित रूप से एक कार केंद्रीय मंत्री की बताई जाती है.

देश की सर्वोच्च अदालत ने घटना पर टिप्पणी करते हुए इसे कई लोगों की जिंदगियों की दुखद क्षति करार दिया था. इसके कुछ दिनों बाद बहादुरगढ़ में कथित रूप से एक ट्रक द्वारा कुचले जाने की वजह से तीन अन्य विरोध करने वालों की मौत हो गई और दो अन्य को चोटें आईं जब वे ऑटो का वहां पर इंतजार कर रहे थे..

“घटना सरकार के कारण घटी, झटका लगना लाज़िमी” -

भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, "यह घटना सरकार के कारण घटी. इसका झटका लगना लाज़िमी था लेकिन उसके बाद किसान जल्दी संभल गए. अब हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब समेत हर जगह से लोग आ रहे हैं और जुड़ रहे हैं."

वहीं ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर घटी घटना के संदर्भ में राजेवाल ने कहा- सरकार वहाँ भी किसानों को भड़काना चाहती थी. लेकिन राकेश टिकैत ने स्थिति को संभाल लिया. चलिए पहले आपको बताते है की आखिर जिस बिल को लेकर किसान आंदोलन कर रहे थे वो बिल कौनसे है.

कृषि बिल, जिस कारण शुरू हुआ किसानों का विरोध -

किसानों का विरोध उन तीन कानूनों को लेकर है. जिसे सरकार किसानों से लाभ के लिए बता रही है तो वहीं किसान उसे किसानों के विरूध बता रहे है. आखिर कौनसे है वह बिल जानिए. साथ ही हम आपको बताते है की विपक्ष का उस पर क्या तर्क रहा.

farmers' protest
farmers' protest

कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) क़ानून, 2020

  • कानून में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है जहां किसानों और व्यापारियों को राज्य की एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी यानी APMC की रजिस्टर्ड मंडियों से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी.

  • किसान दूसरे राज्यों में बिना रोक-टोक अपनी फसले बेच सकेंगे.

  • बिल में मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टेशन पर ख़र्च कम करने की बात कही गई है ताकि किसानों फायदा मिल सके.

  • इसमें इलेक्ट्रोनिक व्यापार के लिए एक सुविधाजनक ढांचा मुहैया कराने की भी बात हुई.

पहले बिल पर विपक्ष का तर्क -

  • राज्य को राजस्व का नुक़सान होगा, अगर किसान एपीएमसी मंडियों के बाहर फ़सल बेचेंगे तो वे 'मंडी फ़ीस' नहीं वसूल पाएंगे.

  • कृषि व्यापार अगर मंडियों के बाहर चला गया तो 'कमिशन एजेंटों' का क्या होगा?

  • इसके बाद धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य के ज़रिए फ़सल ख़रीद बंद कर दी जाएगी.

  • मंडियों में व्यापार बंद होने के बाद मंडी ढांचे के तरह बनी ई-नेम जैसी इलेक्ट्रोनिक व्यापार प्रणाली का आख़िर क्या होगा?

कृषक (सशक्‍तीकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर क़रार क़ानून, 2020

  • इस कानून में कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के लिए एक राष्ट्रीय फ्ऱेमवर्क बनाने का प्रावधान किया गया है.

  • इस क़ानून के तहत किसान कृषि व्यापार करने वाली फ़र्मों, प्रोसेसर्स, थोक व्यापारी, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ कॉन्ट्रैक्ट करके पहले से तय एक दाम पर भविष्य में अपनी फ़सल बेच सकते हैं.

  • पांच हेक्टेयर से कम ज़मीन वाले छोटे किसान कॉन्ट्रैक्ट से लाभ मिलेगा.

  • बाज़ार की अनिश्चितता के ख़तरे को किसान की जगह कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग करवाने वाले प्रायोजकों पर डाला गया.

  • अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, तकनीकी सहायता और फ़सल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फ़सल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

  • इसके तहत किसान मध्यस्थ से हट कर पूरे दाम के लिए सीधे बाज़ार में जा सकते है.

  • किसी विवाद की सूरत में एक तय समय में एक तंत्र को स्थापित करने की भी बात कही गई है.

दूसरे बिल पर विपक्ष का तर्क -

  • कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के दौरान किसान प्रायोजक से ख़रीद-फ़रोख़्त पर चर्चा करने के मामले में कमज़ोर होगा.

  • छोटे किसानों की भीड़ होने से शायद प्रायोजक उनसे सौदा करना पसंद न करे.

  • किसी विवाद की स्थिति में एक बड़ी निजी कंपनी, निर्यातक, थोक व्यापारी या प्रोसेसर जो प्रायोजक होगा उसे बढ़त होगी.

आवश्यक वस्तु (संशोधन) क़ानून 2020 -

  • इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्‍याज़ और आलू को आवश्‍यक वस्‍तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान है. जिसका अर्थ है कि सिर्फ़ युद्ध जैसी 'असाधारण परिस्थितियों' को छोड़कर कंपनिया इसका भंडारण कर सकेंगे.

  • इस क़ानून से निजी सेक्टर का कृषि क्षेत्र में डर कम होगा क्योंकि अब तक अत्यधिक क़ानूनी हस्तक्षेप के कारण निजी निवेशक आने से डरते थे.

  • कृषि इन्फ़्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ेगा, कोल्ड स्टोरेज और फ़ूड स्प्लाई चेन का विकास होगा.

  • यह किसी सामान के मूल्य की स्थिरता लाने में किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को मदद करेगा.

  • प्रतिस्पर्धी बाज़ार का वातावरण बनेगा और किसी फ़सल के नुक़सान में कमी आएगी.

तीसरे नियम पर विपक्ष का तर्क -

  • 'असाधारण परिस्थितियों' में क़ीमतों में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा होगा जिसे बाद में नियंत्रित करना मुश्किल होगा.

  • बड़ी कंपनियों फ़सलोंका अधिक भंडार कर सकेंगे. इसका अर्थ हुआ कि फिर वे कंपनियां किसानों को दाम तय करने पर मजबूर करेंगी.

क्या बाजार के लिए बनाया गया यह कानून ? -

क़ानून के अनुसार इससे किसान नई तकनीक से जुड़ पाएंगे, पाँच एकड़ से कम ज़मीन वाले किसानों को कॉन्ट्रैक्टर्स से ज्यादा फायदा मिलेगा. हालाकी इस प्रावधान से किसान अपनी ही जमीन पर मज़दूर हो जाएगा. वहीं इससे कालाबाजारी को बढ़ावा मिल सकता है.

कानून पर सरकार के साथी भी पीछे हटे -

जब इन क़ानूनों से जुड़े विधेयक लाए गए थे तब हरसिमरत कौर बादल ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफ़ा देकर अपनी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के कड़े रुख़ के साफ संकेत दिए थे.

अपने पद से इस्तीफा देने के बाद हरसिमरत कौर बादल ने ट्वीट किया था, उन्होने कहा "मैंने केंद्रीय मंत्री पद से किसान विरोधी अध्यादेशों और बिल के ख़िलाफ़ इस्तीफ़ा दे दिया है. किसानों की बेटी और बहन के रूप में उनके साथ खड़े होने पर गर्व है." वही इस मुद्दे पर अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल का ने कहा था कि उनकी पार्टी से इन अध्यादेशों को लेकर बात नहीं की गई. जबकि हरसिमरत कौर ने इसपर आपत्ति जताई और कहा कहा था कि 'पंजाब और हरियाणा के किसान इससे ख़ुश नहीं हैं.

Farmers' movement will continue, screw stuck on MSP
Farmers' movement will continue, screw stuck on MSP

किसानों का आंदोलन रहेगा जारी,MSP पर फंसा पेंच –

हाल ही में किसानों ने आंदोलन को तो रद्द कर दिया है लेकिन एमएसपी पर अभी भी पेच अडा हुआ है. कुछ किसानों ने कहा था कि गृह मंत्रालय के प्रस्ताव की भाषा को थोडा बदला जाए तो वे आंदोलन ख़त्म करने को राज है. वहीं भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार को किसान नेताओं के सामने वार्ता के लिए बैठना चाहिए.

एमएसपी गारंटी को क़ानूनी कवच देना, टिकैत के समर्थकों के लिए यह अभी भी बड़ा मुद्दा है. हरियाणा और पंजाब की तरह मौजूदा एमसएपी सिस्टम देश के दूसरे हिस्से में प्रभावी नहीं है. दूसरी और गृह मंत्रालय ने अपने प्रस्ताव में एमएसपी गारंटी को लेकर केवल एक कमिटी बनाने की बात कही है और इस कमिटी को प्रभावी बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के लोगों को भी शामिल किया जा सकता है. इस कमिटी में एमएसपी के साथ अन्य मुद्दों पर भी बात होगी. साथ ही किसानों की मांग है की आंदोलन ख़त्म होने से पहले किसानों पर लगे मुक़दमे वापस हो. ये मुक़दमे उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली पुलिस के हैं.

फिलहाल आंदोलन को स्थगित किया गया है लेकिन कुछ मांगो को लेकर अभी भी राज्यों में अलग-अलग जगहों पर आंदोलन जारी रहेगा.

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