भारत जिसे गाँवो का देश कहा जाता है ,भले ही आज जीडीपी में कई पश्चिमी देखों को पछाड़ कर शीर्ष देशों में शामिल हो गया हो। आधुनिकता के नए आयाम में पहुंच कर विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा हो लेकिन एक चीज जस की तस रही। आज़ादी के पहले भी और आजादी के बाद भी देश का अन्नदाता किसान रोटी तो देता रहा देश को , लेकिन अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए आज भी मोहताज है। अंग्रेजों का दौर रहा हो या फिर आज़ादी के बाद सत्ता में आयी स्वघोषित किसानो की हितैषी बनने वाली राजनैतिक पार्टिओं की सरकार ,किसान पाई पाई को तरसता रहा ,कहीं मांगो को लेकर सडको पर बैठा रहा , तो कही क़र्ज़ के बोझ से मजबूर हो आत्महत्या करता रहा।
भविष्य आगे भी कुछ सुरक्षित नजर नहीं आता किसानों के हाल का , इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो हर दशक में कोई न कोई देशव्यापी किसान आंदोलन हुआ।
पगड़ी संभल जट्टा एक सफल कृषि आंदोलन था जिसने ब्रिटिश सरकार को 1907 में कृषि से संबंधित तीन कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर किया। इस आंदोलन के पीछे भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह थे, और वह कृषि कानूनों पर लोगों के गुस्से को खत्म करना चाहते थे।
1907 में तूफान के केंद्र में तीन कृषि-संबंधी कार्य पंजाब भूमि अलगाव अधिनियम 1900, पंजाब भूमि उपनिवेश अधिनियम 1906 और दोआब बारी अधिनियम थे।
इन अधिनियमों से किसानों को जमीन के मालिक से ठेकेदार तक कम कर दिया, और ब्रिटिश सरकार को आवंटित भूमि वापस लेने का अधिकार दिया, अगर किसान ने अपने खेत में एक पेड़ को बिना अनुमति के छुआ था।
कानूनों के खिलाफ आक्रोश के बीच, भगत सिंह के पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह ने अपने क्रांतिकारी मित्र घसीता राम के साथ मिलकर भारत माता सोसाइटी का गठन किया, जिसका उद्देश्य इस अशांति को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह में लाना था।
तीनों कानूनों के खिलाफ आंदोलन के लिए जमीन तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए, उन्होंने लाहौर में बैठकें आयोजित कीं, जिन्हें ज्यादातर किशन सिंह और घसीटा राम ने संबोधित किया। तीन कानूनों और जनता को उनके परिणामों की व्याख्या करने के लिए कार्यकर्ताओं को विशेष रूप से लायलपुर जिले में भेजा गया था।
आंदोलन अहिंसक नहीं रह सका। 21 अप्रैल, 1921 को रावलपिंडी में अजीत सिंह एक जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे जिसकी वजह से ब्रिटश हुकूमत ने उन पर राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज कर लिया। इसके बाद ही हिंसा भड़क उठी और दंगे शुरू हो गए।
अजीत सिंह ने लिखा " रावलपिंडी, गुजरांवाला, लाहौर आदि में दंगे हुए। ब्रिटिश कर्मियों के साथ मारपीट की गई, उन पर कीचड़ उछाला गया, कार्यालयों और चर्चों को जला दिया गया, तार के खंभे और तार काट दिए गए। मुल्तान मंडल में, रेल कर्मचारी हड़ताल पर चले गए और अधिनियमों को निरस्त करने के बाद ही हड़ताल वापस ली गई। लाहौर में पुलिस अधीक्षक फिलिप्स को दंगाइयों ने पीटा। ब्रिटिश सिविल सेवकों ने अपने परिवारों को बॉम्बे भेजा और उन्हें इंग्लैंड ले जाने के लिए जहाजों को किराए पर लिया गया, "
"लॉर्ड किचनर भयभीत हो गए क्योंकि किसान विद्रोह कर रहे थे, सेना और पुलिस अविश्वसनीय थी। मोरेली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में एक बयान दिया कि पंजाब में कुल 33 बैठकें हुईं, जिनमें से 19 को एस. अजीत सिंह। भू-राजस्व में यह वृद्धि इस अशांति का कारण नहीं थी। यह भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की दृष्टि से था कि इसे एक राजनीतिक स्टंट के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था। इस सभी आंदोलन का परिणाम यह था कि तीन कानूनों को रद्द कर दिया गया था। "
बाद में ब्रिटिश सरकार ने मई 1907 में तीन विवादास्पद कानूनों को निरस्त कर दिया।
आंदोलन की वह कविता जो भगत सिंह के जईवानी पर बानी फिल्म में भी गाने के रूप में सुना गया
पगड़ी संभल ओह जट्टा; पगड़ी संभल ओह
फसलां न खा गए कीढ़े, तन ते नहीं लेरे लिरहे
भुकान ने खोब नछोरेहे, रोंडे ने बाल ओह पगड़ी… ..
बंदे ने टी नेता, राजे ते खां बहादुर
तेनु ले खावन खफिर, वल्छ दे ने जल ओह- पगड़ी……
हिंद हल तेरा मंदिर, उसदा पुजारी तू
चलेगा कदों तक, अपनी खुमारी तू
लरने ते मरने दी, कर ले तयरी तू – पगड़ी…….
देखने ते खावे तीर, रांझा तू देश है हीर
सम्भल के चल तू वीर-पगढी
तुस्सी क्यों दबदे वीरो, उसकी पुकार
हो-के इकाठे वीरो, मारो ललकार ओह
तारही दो हत्थार बज्जे, छटियां नं तार ओह
पगड़ी संभल जट्टा, पगड़ी संभल ओह