इंश्योरेंस ले रखा है और हॉस्पिटल ने कोरोना का इलाज करने से कर दिया मना, तो क्या करें? : कोरोना महामारी में कई अस्पतालों में बेड्स की संख्या कम पड़ रही तो कहीं ऑक्सीजन कम पड़ रही है,
ऐसे में कोरोना की टेंशन के बीच एक राहत की खबर भी आयी है।
अगर आप कोविड पेशेंट है और आपने इंश्योरेंस करवा रखा है तो हॉस्पिटल आपका इलाज करने से मना नहीं कर सकता,
बस वह हॉस्पिटल आपकी बीमा कंपनी से लिंक्ड होना चाहिए।
ये आदेश इंश्योरेंस रेगुलेटर इरडा (IRDAI) ने दिया है।
आदेश के मुताबिक, कोई नेटवर्क हॉस्पिटल अगर ऐसा नहीं करता है तो हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों पर कार्रवाई होगी।
इरडा ने यह भी साफ किया कि इंश्योरेंस कंपनियों का जिन अस्पतालों के साथ कैशलेस का करार है,
उन्हें कोविड के साथ दूसरी बीमारियों का इलाज भी करना जरूरी है।
अगर ऐसा नहीं होता है, तो इंश्योरेंस कंपनियों को ऐसे अस्पतालों से बिजनेस एग्रीमेंट खत्म करना चाहिए।
इंश्योरेंस ले रखा है और हॉस्पिटल ने कोरोना का इलाज करने से कर दिया मना, तो क्या करें? : मरीजों को कैशलेस फैसिलिटी देने के बदले इंश्योरेंस कंपनियों से मिलने वाला पैसा उन्हें अगले 10-15 दिनों में मिलता है।
ऐसे में हॉस्पिटल्स मरीज से ही इलाज का पैसा वसूलते हैं और उन्हें रिएंबर्समेंट कराने की सलाह दे देते हैं।
मुंबई के बीमा लोकपाल यानी इंश्योरेंस ओम्बड्समैन मिलिंद खरात कहते हैं कि अगर हॉस्पिटल ने ग्राहकों को कैशलेस इलाज की सुविधा नहीं दी,
तो सबसे पहले ग्राहक को अपनी इंश्योरेंस कंपनी के ग्रीवांस रिट्रेशनल ऑफिसर (GRO) के पास शिकायत दर्ज करनी होगी।
अगर 15 दिन के भीतर संतुष्ट जवाब नहीं मिलता, तो आप ओम्बड्समैन के पास अपनी शिकायत लेकर जा सकते हैं।
खास बात यह है कि यहां सुनवाई के दौरान वकील की जरूरत नहीं,
बल्कि खुद ग्राहक या उसका रिश्तेदार उपस्थित हो सकता है और बीमा कंपनी की ओर से भी अधिकारी आएगा।
बीमा लोकपाल के फैसले से इंश्योरेंस कंपनी इनकार नहीं कर सकती है।
लेकिन अगर ग्राहक फैसले से असंतुष्ट है तो वह कंज्यूमर कोर्ट भी जा सकता है।
भारत के 17 शहरों में इंश्योरेंस ओम्बड्समैन हैं। केवल महाराष्ट्र राज्य ऐसा है जहां मुंबई और पुणे दो शहरों में इंश्योरेंस ओम्बड्समैन हैं।
वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी 22 अप्रैल को इरडा के चेयरमैन एस सी खुंटिया से कहा था कि इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा कैशलेस सुविधा न देने वाली शिकायतों पर सख्त एक्शन लें।
ग्राहकों के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। पॉलिसी की तहत ग्राहक को इलाज का पूरा पेमेंट किया जाता है। लेकिन कैशलेस सुविधा नहीं मिलने पर इलाज का खर्च ग्राहक को भरना होगा। बाद में इससे जुड़े सभी वाजिब डॉक्यूमेंट्स इंश्योरेंस कंपनी के पास जमा करने होंगे। उन्हीं डॉक्यूमेंट्स को इंश्योरेंस कंपनी क्रॉस चेक करती है, फिर पॉलिसी के तहत इलाज में खर्च रकम को ग्राहक के बैंक खाते में भेज देती है।
अगर आप अस्पताल में भर्ती होते हैं तो दो तरीके से क्लेम मिल सकता है। पहला कि आप पूरा खर्च खुद से ही भरें और फिर बिल या उससे जुड़े सभी डॉक्युमेंट इंश्योरेंस कंपनी के पास जमा कर दें। कंपनी इसकी जांच पड़ताल कर आपको पेमेंट करती है।
दूसरा उपाय होता है कि इंश्योरेंस कंपनी का नेटवर्क अस्पतालों के साथ एग्रीमेंट होता है, जिसके तहत इंश्योरेंस कंपनी अस्पताल को एक क्रेडिट देती है। इससे ग्राहक के इलाज का खर्च अस्पताल और इंश्योरेंस कंपनी के बीच सेटल हो जाता है। यानी इलाज के बाद ग्राहक को पेमेंट नहीं करना होगा। इसे ही कैशलेस फैसिलिटी कहा जाता है।
इंश्योरेंस इंडस्ट्री में 57 इंश्योरेंस कंपनियां शामिल हैं। इनमें से 33 नॉन-लाइफ इंश्योरेंस और बाकी लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां हैं। ओवरऑल मार्केट साइज की बात करें तो यह 2020 में करीब 280 अरब डॉलर का रहा।
इरडा के मुताबिक लाइफ इंश्योरेंस बिजनेस में भारत दुनिया के 88 देशों की लिस्ट में 10वें नंबर पर है। 2019 के दौरान ग्लोबल लाइफ इंश्योरेंस मार्केट में भारत की भागीदारी 2.73% रही। नॉन-लाइफ इंश्योरेंस मार्केट में भारत का 15वां नंबर है।