राजस्थान में कोरोना के बाद अब डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया ने कहर बरपा रखा है। स्थिति यह है कि राज्य के सबसे बड़े अस्पतालों एसएमएस और जेके लोन में बेड फुल हैं। डेंगू के मामले दोगुने हो गए हैं। ऐसे में अस्पताल में ब्लड बैंक की व्यवस्था भी चरमरा गई है। लाइव एसडीपी (सिंगल डोनर प्लेटलेट्स) के लिए डोनर तो उपलब्ध है, लेकिन एसडीपी किट नहीं होने से मरीजों के परिजनों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्लेटलेट्स का स्टॉक भी कम होने लगा है, जबकि मांग 3 गुना तक बढ़ गई है।
इधर, मरीजों की बढ़ती संख्या और प्लेटलेट्स की कमी को देखते हुए एसएमएस अस्पताल प्रशासन उन्हीं मरीजों को प्लेटलेट्स दे रहा है जिनके प्लेटलेट्स 10 हजार से कम हो गए हैं या फिर ब्लीडिंग की समस्या है। एसडीपी किट की खरीद कम होने से अब ब्लड बैंकों की कमी है। जनाना, सांगानेरी गेट, जेके लॉन के मरीजों को एसडीपी किट लेने के लिए कई बार एसएमएस भेजना पड़ता है।
डेंगू को लेकर प्रशासन कितना जागरूक है, यह तो इसके आंकड़े देखकर ही पता चलता है। जयपुर सीएमएचओ की रिपोर्ट पर नजर डालें तो 24 अक्टूबर तक पूरे जयपुर जिले में 1,728 मामले सामने आ चुके हैं, जबकि राज्य की रिपोर्ट में 27 अक्टूबर तक जयपुर जिले में डेंगू के सिर्फ 1,737 मामले ही सामने आए हैं। केवल 27 अक्टूबर के दिन मिले मामलों की संख्या 29 बताई गई है।
एसएमएस अस्पताल में जयपुर के अलावा आसपास के जिलों और हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए आते हैं, लेकिन इन दिनों अस्पताल में अधिकतम बेड की समस्या जनरल मेडिसिन वार्ड में है। जनरल मेडिसिन वार्ड की 10 यूनिट हैं और उनमें से लगभग सभी बेड फुल हैं। जेके लोन अस्पताल में तो स्थिति और भी खराब है। डेंगू, मलेरिया के साथ-साथ अन्य बीमारियों से पीड़ित बच्चों को भी यहां अधिक आने से बिस्तर नहीं मिल रहा है। अस्पताल में वे बच्चे इलाज के लिए बरामदे में बैठने को मजबूर हैं, जिनकी हालत ज्यादा गंभीर नहीं है। यहां भी निगेटिव ग्रुप के लोगों को ब्लड लेने के लिए एसएमएस, जनाना या महिला अस्पताल जाना पड़ता है।
एसएमएस, जेके लोन, जनाना, सांगानेरी गेट महिला अस्पताल समेत सभी सरकारी अस्पतालों के ब्लड बैंक अब बाहर से आने वाले मरीजों के लिए अघोषित बंद हो गए हैं। यानी निजी अस्पताल से किसी मरीज का परिवार अगर किसी सरकारी अस्पताल के ब्लड बैंक में एसडीपी किट लेने आ रहा है तो वह नहीं दे रहा है। बाहर से आने वाले मरीजों को प्लेटलेट्स जैसे घटक भी नहीं दिए जा रहे हैं। ऐसे में मरीजों के परिजनों को एक-एक यूनिट प्लेटलेट्स लेने के लिए बड़ी-बड़ी सिफारिशें करनी पड़ रही हैं। सबसे ज्यादा परेशानी निगेटिव ग्रुप के लोगों को आ रही है, जिनकी सबसे ज्यादा कमी है।