HIV (ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस), एक ऐसा खतरनाक वायरस, जो शरीर में मौजूद कोशिकाओं पर हमला करता है। एक ऐसा वायरस, जिसमे व्यक्ति अन्य संक्रमणों और बीमारियों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है। सरल भाषा में बात करें, तो यह ऐसी स्तिथि में हावी होता है जब इम्मून सिस्टम पूरी तरह काम करना बंद कर देता है। यह वायरस मानवीय रक्त, यौन तरल पदार्थ और स्तन के दूध में मौजूद रहता है। अगर समय पर इसका ट्रीटमेंट नहीं किया है, तो यह एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम यानि एड्स की ओर जाता है। आमतौर पर यह असुरक्षित यौन संबंध, एचआईवी वाले वाले व्यक्ति के संपर्क में आए कोई इंजेक्शन या उपकरण आदि साझा करने से हो सकता है। बता दें की मानव शरीर HIV से छुटकारा नहीं पा सकता है, कारण है कि दुनिया में फिलहाल एचआईवी का कोई प्रभावी इलाज मौजूद नहीं है। इसलिए, संभावना है की एक बार यदि एचआईवी किसी को जकड़ ले तो जीवन भर साथ रह सकता है।
विश्व एड्स दिवस का इतिहास और महत्व
विश्व एड्स दिवस पहली बार 1 दिसंबर 1988 को मनाया गया था। इस दिन को पहली बार 1987 में दो सार्वजनिक सूचना अधिकारियों, जेम्स डब्ल्यू बन और थॉमस नेटर द्वारा एड्स पर वैश्विक कार्यक्रम के लिए प्रस्तावित किया गया था। अभियान के पहले दो वर्षों में, विश्व एड्स दिवस बच्चों और युवाओं के विषय पर केंद्रित था, ताकि परिवारों पर एड्स के प्रभाव को उजागर किया जा सके। 1996 में, UNAIDS ने विश्व एड्स दिवस के संचालन को अपने हाथ में ले लिया और पहल के दायरे को एक साल की रोकथाम और शिक्षा अभियान तक बढ़ा दिया। बता दें की 1 दिसंबर 1988 को शुरू हुए विश्व एड्स दिवस का उद्देश्य एचआईवी या एड्स से पीड़ित लोगों की मदद के लिए धन जुटाना, एड्स से बचाव के लिए लोगों में जागरूकता फैलाना, एड्स या एचआईवी से पीड़ित लोगों के खिलाफ भेदभाव को रोकना है। साथ ही एड्स से जुडी भ्राँतियों को दूर करते हुए लोगों को शिक्षित करना इसके मुख्य उद्देश्य में शामिल है।
एड्स की उत्पत्ति को लेकर असमंजस
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एड्स का पहला मामला वर्ष 1981 में सामने आया था। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस घातक बीमारी की उत्पत्ति किन्शासा शहर में हुई थी, जो अब कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य की राजधानी है। कहा जाता है कि किन्शासा बुशमीट का बड़ा बाजार था। संभावना जताई जा रही थी कि यह बीमारी वहां से संक्रमित खून के संपर्क में आने से इंसानों में पहुंच गई थी।
यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि एचआईवी का वायरस समलैंगिक युवकों के बीच संबंधों के कारण फैलता है। 38 साल पहले 1981 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, यह वायरस अमेरिका के लॉस एंजिल्स के पांच पुरुषों में पाया गया था, जो समलैंगिक थे। पहला केस 'गैटन दुगास' नामक एक शख्स में मिला था। गैटन पेशे से कनाडा का एक फ्लाइट अटेंडेंट था। यह भी कहा जाता है कि उसने जानबूझकर अमेरिका के कई लोगों के साथ संबंध बनाए थे। इसलिए इसका नाम 'पेशेंट जीरो' रखा गया। अमेरिका में, जब इस बीमारी का पता चला, तो पहले आठ वर्षों तक एचआईवी के 92 प्रतिशत रोगी पुरुष थे। बाद के वर्षों में धीरे-धीरे यह रोग महिलाओं में भी फैल गया।
चिंपैंजी से भी जुड़ी एक कहानी
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र किया गया है कि यह बीमारी एक चिंपैंजी से इंसानों में फैली थी। कहा जाता है कि एचआईवी एड्स सबसे पहले कांगो में एक चिंपैंजी के कारण हुआ था, जब एक घायल चिंपैंजी ने कैमरून के जंगलों में एक शिकारी को खरोंच और काट लिया था। इससे शिकारी के शरीर पर गहरे जख्म के निशान भी थे। इस दौरान घायल चिंपैंजी का खून शिकारी के शरीर में मिल गया और इससे एचआईवी का संक्रमण फैल गया। डॉयचे वेले की रिपोर्ट में भी इसका जिक्र है।
एड्स के चौंकाने वाले आंकड़े
अगर हम भारत देश की बात करें, तो देश में लगभग 23.49 लाख मरीज एचआईवी प्रभावित है। नाको की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 23.49 लाख एचआईवी मरीज हैं। इनमें से उत्तर प्रदेश में 1 लाख 69 हजार और बिहार में 1 लाख 34 हजार हैं। वहीं, दिल्ली में 68 हजार, राजस्थान में 63 हजार, मध्य प्रदेश में 59 हजार, छत्तीसगढ़ में 43 हजार और झारखंड में 23 हजार हैं. हालांकि, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश इस सूची में शीर्ष पर हैं।
वहीं, अगर हम विश्व की बात करें, तो 2020 के आंकड़ों की अनुसार, पुरे विश्व में 3.77 करोड़ से अधिक लोग एचआईवी प्रभावित है। इनमें से 6.80 लाख से अधिक लोग इस बीमारी इ कारण अपनी जान गवां चुके है। 2020 में कोरोना भी अपनी चरम सीमा पर था, उस समय भी लगभग 15 लाख लोग कोरोना के चलते एचआईवी पॉजिटिव हुए थे। इनमें से केवल 73 फीसदी लोगो को ही 'एंट्री रेट्रोवायरल थेरपी' मिल पाई थी।
विश्व एड्स दिवस 2021 की थीम
विश्व एड्स दिवस 2021 की थीम 'असमानताओं को समाप्त करें', एड्स खत्म करें' है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इस साल का मुख्य एजेंडा दुनिया भर में आवश्यक एचआईवी सेवाओं तक पहुंच में बढ़ती असमानताओं को उजागर करना है। इसमें आगे कहा गया है कि विभाजन, असमानता और मानवाधिकारों के उल्लंघन उन विफलताओं में से हैं जिन्होंने एचआईवी को वैश्विक स्वास्थ्य संकट बनने और बने रहने दिया है। WHO का यह भी कहना है कि अब COVID-19 सेवाओं में असमानता और व्यवधान को बढ़ा रहा है, जिससे एचआईवी के साथ रहने वाले कई लोगों का जीवन और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
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