आदिवासी कभी हिंदू नहीं थे : आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक संहिता की लगातार पैरवी कर रहे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अब ऐसा बयान दिया है, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है।
हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासी कभी हिंदू नहीं थे।
केंद्र सरकार को अगली जनगणना में इनकी गिनती के लिए अलग से कालम की व्यवस्था करनी चाहिए।
सोरेन का बयान आते ही बीजेपी हमलावर हो गई।
बीजेपी ने सोरेन पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री वेटिकन के हाथों में खेल रहे हैं।
हेमंत सोरेन का यह बयान शनिवार की देर रात हार्वर्ड इंडिया कांन्फ्रेंस के दौरान सामने आया।
हेमंत सोरेन इस कांफ्रेंस को वर्चुअल माध्यम से संबोधित कर रहे थे।
कांफ्रेंस का आयोजन हार्वर्ड बिजनेस स्कूल और हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के छात्रों ने किया था।
आदिवासी कभी हिंदू नहीं थे, जनगणना में गिनती के लिए अलग से हो कालम की व्यवस्था इससे पहले मुख्यमंत्री ने कहा कि जनगणना में आदिवासियों के अलग कालम होना चाहिए।
झारखंड विधानसभा ने पिछले साल नवंबर में सर्वसम्मति से आदिवासियों के लिए एक सरना आदिवासी धार्मिक कोड का प्रस्ताव पास किया था।
जनगणना में इसे शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया है।
हेमंत सोरेन ने सरना आदिवासी धार्मिक संहिता का मुद्दा उठाया
एक दिन में ही दूसरी बार हेमंत सोरेन ने सरना आदिवासी धार्मिक संहिता का मुद्दा उठाया है।
हार्वर्ड कांफ्रेंस से ठीक पहले दिन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग परिषद की बैठक में सोरेन ने सरना कोड का मुद्दा उठाया।
उन्होंने झारखंड विधानसभा द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आग्रह किया।
2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों की जनसंख्या 3.24 करोड़ है।
झारखंड की आबादी का लगभग 26% आदिवासी हैं।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार राज्य के अधिकांश आदिवासी जो ईसाई नहीं हैं,
उन लोगों ने 2011 की जनगणना में धार्मिक पहचान वाले कालम में अदर का चुनाव किया था।
आदिवासी समाज को लेकर एक रूढ़िवादी मानसिकता अब भी समाज में व्याप्त
सोरेन ने राज्य में आदिवासियों, प्रवासी श्रमिकों, खनन और विकास के अन्य प्रमुख क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की। देश में आदिवासियों की स्थिति पर बोलते हुए सोरेन ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों, अलग से मंत्रालय और आदिवासियों की भलाई के लिए बने कानूनों के बावजूद इनके साथ शोषण और भेदभाव हो रहा है। मौजूदा स्थिति से बचना इनके लिए आसान नहीं है।
सोरेन ने कहा कि आदिवासी समाज को लेकर एक रूढ़िवादी मानसिकता अब भी समाज में व्याप्त है। आदिवासियों को नैपकिन के रूप में उपयोग किया जाता है और फेंक दिया जाता है। सोरेन ने कहा कि यदि आदिवासी शिक्षित हो जाएंगे तो ड्राइवर, रसोइया या नौकरानी के रूप में काम कौन करेगा?
विकास का क्या मतलब है यदि मजदूरों का विकास ही नहीं हुआ हो। केवल बड़े उद्योग लगाना ही काफी नहीं है
सोरेन ने कहा कि आदिवासियों के लिए केंद्र की योजनाएं विफल होने के बाद उनकी सरकार अनुसूचित जनजाति के छात्रों को विश्व स्तर पर उच्च शिक्षा के लिए प्रयास कर रही है। महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों के संकट से निपटने के अपने अनुभव को साझा करते हुए सोरेन ने कहा कि समय यह समय पुनर्विचार करने और श्रम कानूनों में सुधार का है। किसी भी देश के विकास का क्या मतलब है यदि मजदूरों का विकास ही नहीं हुआ हो। केवल बड़े उद्योग लगाना ही काफी नहीं है।