न्यूज़- एक महीने से ज्यादा हो गया है और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के वेस्टर्न सेक्टर पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच सैन्य टकराव की स्थिति है। कुछ लोग कह रहे हैं कि साल 1962 में जब दोनों देशों के बीच जंग हुई थी तो उसके बाद सन् 1967 में फिर से चीन ने एक हिमाकत की थी और सिक्किम के नाथू ला में भारतीय सेना को चुनौती दी थी। 62 की जंग के बाद 67 में चीन के दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया गया था। अब लोग मान रहे हैं यह पहला मौका है जब चीन से सटे बॉर्डर पर हालात इतने तनावपूर्ण बने हैं।
1967 के टकराव के दौरान भारत की 2 ग्रेनेडियर्स बटालियन के जिम्मे नाथु ला की सुरक्षा थ। इस बटालियन की कमान तब ले. कर्नल राय सिंह के हाथों में थी। ले. कर्नल राय बाद में ब्रिगेडियर होकर रिटायर हुए थे। 11 सितंबर 1967 को चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने नाथू ला में इंडियन आर्मी की पोस्ट्स पर हमला कर दिया था। यह संघर्ष 15 सितंबर 1967 को खत्म हुआ। लेकिन इसके बाद उसी वर्ष अक्टूबर में फिर से चीनी सैनिकों ने हमला किया। 1965 में भारत-पाकिस्तान की जंग के बाद चीन ने भारत को नाथू ला और जेलप पास खाली करने का अल्टीमेटम दिया।
उस समय 17 माउंटेन डिविजन के जीओसी मेजर जनरल सगत सिंह ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया था। चीन इसी बात से नाराज था। वहीं, 17 माउंटेन डिविजन ने जेलेप ला पास को खाली कर दिया था लेकिन नाथु ला पर सेना डटीं रही। आज भी जेलेप ला चीन के कब्जे में है। 13 अगस्त 1967 को चीनी जवानों ने नाथू ला में सिक्किम की तरफ पर खाईयों को खोदने का शुरू किया। भारतीय जवानों ने इसे देखा और उन्हें कुछ खाईयां नजर आई। इस बात की जानकारी लोकल चीनी कमांडर को दी गई और उन्हें वहां से चले जाने को कहा गया।
चीनी जवान नहीं माने और अड़े रहे। इसके बाद भारतीय सेना ने तय किया कि नाथू ला में बाउंड्री स्पष्ट करने के मकसद से कंटीलें तार लगाए जाएंगे। यह जिम्मा 70 फील्ड कंपनी ऑफ इंजीनियर्स एवं 18 राजपूत की एक टुकड़ी को सौंपा गया। 18 अगस्त को सीमा पर तार लगाने का काम शुरू हुआ। इसके दो दिन बाद भड़के चीनी हथियार लेकर उन भारतीय जवानों के आगे खड़े हो गए जो तार लगा रहे थे। इस दौरान उन्होंने गोली नहीं चलाई थी।
छह सितंबर को चंद मिनटों के अंदर चीनी सीमा से गोलियों की तेज आवाज आने लगी और फिर चीनी जवानों ने मीडियम रेंज की मशीन गनों से गोलियां बरसानी शुरू कीं। भारतीय सैनिकों को शुरू में भारी नुकसान झेलना पड़ा, क्योंकि उन्हें चीन से ऐसे कदम का अंदेशा नहीं था। ले. कर्नल राय सिंह खुद जख्मी हो गए, और 2 ग्रेनेडियर्स के कैप्टन डागर और 18 राजपूत के मेजर हरभजन सिंह के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों के एक छोटे दल ने चीनी सैनिकों का मुकाबला करने की भरपूर कोशिश की। दोनों ऑफिसर इस दौरान शहीद हो गए।
इसी दिन दोनों सेनाओं के बीच जमकर गोलीबारी हुई और पहले 10 मिनटों के अंदर करीब 70 चीनी सैनिक मारे जा चुके थे और कई घायल हुए। इसके बाद भारत की ओर से जो जवाबी हमला हुआ उसने चीन का इरादा चकनाचूर कर दिया। सेबू ला एवं कैमल्स बैक से अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत ने जमकर आर्टिलरी पावर का प्रदर्शन किया। करीब 10 दिन तक चले इस युद्ध में चीन को मुंह की खानी पड़ी थी। चीन आज भी मानता है कि उसके करीब 400 से सैनिक इस दौरान मारे गए थे। जबकि भारत के 65 सैनिक शहीद हो गए थे।