2021 में होने वाली जनगणना को अनिश्चित काल तक के लिए टाल दिया गया है। मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने ये जानकारी दी। कोरोना के चलते अब तक इसकी शुरुआत भी नहीं हो सकी है।
चुनाव के लिए लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय क्षेत्रों के सीमांकन, उनके आरक्षण से लेकर केंद्र और राज्य सरकारों की जन कल्याणकारी योजनाओं में जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल होता है। जनगणना में होने वाली देरी इन सभी को प्रभावित करेगी।
28 मार्च 2019 को केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी करके 2021 की जनगणना करने की जानकारी दी थी। ये जनगणना दो चरणों में होनी थी। पहले चरण में अप्रैल 2020 से सितंंबर 2020 के दौरान मकान सूचीकरण और उनकी गणना होनी थी। वहीं, 9 से 28 फरवरी 2021 के दौरान देश की जनसंख्या की गणना होनी थी। कोरोना के चलते इनमें से कोई भी काम शुरू नहीं हो सका है।
दूसरे फेज में जनसंख्या की गणना के दौरान जनसांख्यिकी, धर्म, अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST), भाषा, लिटरेसी रेट और एजुकेशन, आर्थिक गतिविधि, माइग्रेशन आदि की गणना होगी।
इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने कहा कि जनसंख्या का प्रोविजनल डेटा अगले लोकसभा चुनाव से पहले 2023-24 में ही रिलीज कर दिया जाएगा। अब मानसून सत्र में सरकार ने कहा कि इसे कब से शुरू किया जाएगा, ये तय नहीं है।
शुरुआत में जनगणना का डेटा गरीबी रेखा के नीचे रही 3 करोड़ से ज्यादा विधवाओं, विकलांगों, बुजुर्गों को आर्थिक मदद के लिए इस्तेमाल होता था। 2011 की जनगणना में केंद्र ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC ) की शुरुआत की। SECC के मुताबिक ये कवरेज 3 करोड़ से बढ़ाकर 6 करोड़ होना चाहिए था। हालांकि, सरकार इसके लिए पर्याप्त बजट नहीं दे पाई।
केंद्र की ज्यादातर स्कीम में लाभार्थियों की संख्या का निर्धारण इसी SECC डेटा के आधार पर होता है। इसी डेटा के जरिए ही लोगों को हेल्थ इंश्योरेंस से लेकर घर मिलने तक की योजनाओं का लाभ मिलता है। मौजूदा सरकार की सभी स्कीम के लिए लाभार्थी भी इसी डेटा से तय होते हैं। भले ये डेटा 10 साल पुराना हो चुका है।
लोकसभा-विधानसभा सीटों का परिसीमन 2026 में होना है। तब तक जनसंख्या के आंकड़े आ जाने की उम्मीद है। ऐसे में कहा जा सकता है कि 2026 में होने वाला परिसीमन इस देरी की वजह से आगे नहीं खिसकेगा।
देश में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी। उसे बाद हर 10 साल पर जनगणना होती है। 1931 तक की जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जारी होते थे। 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इन्हें जारी नहीं किया।
आजादी के बाद सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी का डेटा जारी करने का फैसला किया। इसके बाद से बाकी जातियों के जातिवार आंकड़े कभी पब्लिश नहीं हुए।