डेस्क न्यूज़- दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में ब्लैक फंगस का दुर्लभ मामला सामने आया है। यह अब छोटी आंत में देखा गया है। यह दो मरीजों में पाया गया है। एक की उम्र 56 साल और दूसरे की 68 साल है। ये दोनों डायबिटीज के रोगी हैं, और कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। यह अलग बात है कि उनमें से केवल एक ने पहले स्टेरॉयड लिया है। छोटी आंत में मिला ब्लैक फंगस ।
बायोप्सी से इन रोगियों की छोटी आंत में ब्लैक फंगस
(म्यूकोर्मिकोसिस) की पुष्टि की हैं। ब्लैक फंगस के
मामले हाल के दिनों में तेजी से बढ़े हैं। विशेष रूप
से कोरोना से ठीक होने वाले लोग इसकी चपेट में
आ रहे हैं। मधुमेह के रोगियों को इस संक्रमण का अधिक खतरा होता है।
यह संक्रमण शरीर के अलग-अलग हिस्सों में हो रहा है। यह नाक, आंख, फेफड़े,
मस्तिष्क और पाचन तंत्र पर हमला कर सकता है। सर गंगा राम अस्पताल में
भर्ती मरीजों की छोटी आंत में इसकी मौजूदगी देखी गई है।
एम्स के न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर डॉ पी सरत चंद्र ने कहा कि यह फंगल इंफेक्शन नया नहीं है, लेकिन यह कभी महामारी की स्टेज तक नहीं पहुंचा है। उन्होंने बताया कि हमें नहीं पता कि ब्लैक फंगस किस वजह से इतना बढ़ रहा है, लेकिन इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।
चंद्रा ने कहा कि अनियंत्रित मधुमेह इसका एक प्रमुख कारण हो सकता है। रोगी का वेंटीलेशन पर होना, Tocilizumab के साथ स्टेरॉयड का लगातार इस्तेमाल और सप्लीमेंटल ऑक्सिजन भी इसका कारण हो सकता है। कोरोना होने के 6 सप्ताह के भीतर लोगों को नाक की समस्या, सिरदर्द, चेहरे के एक हिस्से में सूजन, चेहरे के रंग में बदलाव, पलकों में सूजन, दांतों का हिलना, बुखार, धुंधला दिखाई देने जैसी समस्याएं होने पर काले फंगस का खतरा होता है। .
लंबे समय तक स्टेरॉयड लेने वालों को ब्लैक फंगस होने का खतरा होता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर काले फंगस का हमला होता है। मधुमेह के रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। तो यह उन्हें फंगस का शिकार बना देता है।
चंद्रा के मुताबिक मरिज को सिलेंडर से सीधे ऑक्सीजन देना बेहद खतरनाक है। 2-3 सप्ताह तक मास्क पहनना ब्लैक फंगस का कारण बन सकता है। जिन लोगों को ब्लैक फंगस का बहुत अधिक खतरा है, उन्हें एंटी-फंगल दवा Posaconazole दी जा सकती है।