स्वर कोकिला लता मंगेशकर का आज 28 सितंबर को 92वां जन्मदिन है। इंदौर में जन्मीं लताजी ने 1940 में गाने गाना शुरू किया था। तब वह सिर्फ 11 साल की थीं। 1943 में उन्होंने मराठी फिल्म 'गजाभाऊ' के हिंदी गाने 'माता एक सपूत की दुनिया बदल दे' को आवाज दी। यह उनका पहला गाना है। उन्हें 2001 में भारत रत्न और 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिला था। लता जी सरल और पवित्र हैं, उनका इतना सम्मान है कि हर कोई उन्हें 'दीदी' कहता है। आइए जानते है लताजी से जुड़े कुछ खास किस्से।
लता का मानना है कि यह उनके पिता की वजह से है कि वह आज एक गायिका हैं, क्योंकि उन्होंने ही संगीत सिखाया। यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि लता के पिता दीनानाथ मंगेशकर को लंबे समय तक यह नहीं पता था कि बेटी गा सकती है। लता उनके सामने गाने से डरती थी। रसोई में अपनी मां की मदद के लिए आने वाली महिलाओं को वह गाकर सुनाया करती थीं। लेकिन उनकी माँ उन्हें डांट कर भगा देती थी कि लता के कारण उन स्त्रियों का समय व्यर्थ होता था और ध्यान बंट जाता था।
एक बार लता के पिता के शिष्य चंद्रकांत गोखले रियाज कर रहे थे। दीनानाथ किसी काम से बाहर गए थे। पांच साल की लता वहां खेल रही थी। पिता के जाते ही लता अंदर चली गई और गोखले को कहने लगी कि वह गलत गा रहा है। इसके बाद लता ने गोखले को सही तरीके से गाकर सुनाया। जब पिता लौटे तो उन्होंने लता को फिर से गाने के लिए कहा। लता ने गाना गाया और भाग गई। लता मानती हैं, 'मैंने अपने पिता की बात सुनकर गाना सीखा, लेकिन उनके साथ गाने की मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई।' इसके बाद लता और उनकी बहन मीना ने अपने पिता से संगीत सीखना शुरू किया। छोटा भाई हृदयनाथ केवल चार वर्ष का था जब उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके पिता ने भले ही उनकी बेटी को गायिका बनते नहीं देखा होगा, लेकिन लता की सफलता का उन्हें अंदाजा था, अच्छे ज्योतिष जो थे।
अपने पिता की मृत्यु के बाद, लता ने परिवार की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन मीना के साथ मुंबई आ गईं और मास्टर विनायक के लिए काम करने लगीं। 13 साल की उम्र में उन्होंने 1942 में 'पहली मंगलागोर' फिल्म में अभिनय किया। कुछ फिल्मों में, उन्होंने नायक-नायिका की बहन की भूमिका निभाई है, लेकिन उन्हें अभिनय में कभी मजा नहीं आया। लता ने 'लव इज ब्लाइंड' के लिए पहली बार रिकॉर्ड किया गया, लेकिन वह फिल्म अटक गई थी।
संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 वर्षीय लता को सुना और उस दौर के सफल फिल्म निर्माता शशाधर मुखर्जी से उनका परिचय कराया। शशाधर ने साफ कहा कि यह आवाज बहुत पतली है, यह काम नहीं करेगी। तब यह मास्टर गुलाम हैदर थे जिन्होंने लता को गायक मुकेश के साथ फिल्म 'मजबूर' के गाने 'अंग्रेजी छोरा चला गया' में गाने का मौका दिया। यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई। बाद में शशाधर ने अपनी गलती मान ली और 'अनारकली', 'जिद्दी' जैसी फिल्मों में लता के कई गाने गाए।
अपने करियर के सुनहरे दिनों में वह गाना रिकॉर्ड करने से पहले आइसक्रीम खाती थीं और अचार, मिर्च जैसी चीजों से कभी परहेज नहीं करती थीं। उनकी आवाज हमेशा अप्रभावित रहती थी। वह 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रस्तुति देने वाली पहली भारतीय हैं।
जब लता को अपनी यात्रा याद आती है, तो वह अपने शुरुआती दिनों की रिकॉर्डिंग रातों को भुलाए नहीं भूलतीं। तब दिन में शूटिंग होती थी और रात में स्टूडियो के फर्श पर ही गाने रिकॉर्ड होते थे । रिकॉर्डिंग सुबह तक जारी रहती थी और एसी की जगह शोरगुल वाले पंखे लगे होते थे।