‘थानाधिकारी विष्णुदत्त विश्नोई’ की आत्महत्या पर जानिए एक वकील के विचार

आज राजगढ़ में किसी की जिंदाबाद तो किसी की मुर्दाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं।
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अभिव्यक्ति – आज राजगढ़ में किसी की जिंदाबाद तो किसी की मुर्दाबाद के नारे लगाए जा रहे हैं। किसी की रोटियां सिकेंगी तो किसी की जलेंगी। दुकाने सज चुकी हैं। जिस सियासत के दवाब में आप आत्महत्या कर चुके, वही सियासत आपकी मौत का मजमा लगा रही है। आरोप प्रत्यारोप के दौर जारी हैं। जिस राजनीति के दवाब का आप जिक्र कर रहे थे, आज वो राजनीति खुद दवाब में है। आपके मृत शरीर मे खुराक ढूंढने वाले गिद्ध पत्थरों पर घिस घिस कर अपनी चौंच पैनी कर रहे है। वैसे क्यों मरे आप?? इस जिंदाबाद मुर्दाबाद वाली जाहिल जमात के दवाब में??

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जो आया है, उसे एक न एक दिन जाना है, पर जाने का तरीका, रास्ता और समय क्या होगा, इसी पर निर्भर करता है कि जाने वाले को लोग कितने दिन याद रख पाते हैं। मौत हमारे दर पर एक न एक दिन आनी ही है, भले ही आ जाए, पर कम से कम हम खुद चलकर तो मौत के दरवाजे पर ना पहुंचें। आत्महत्या ने आपके जीवन भर की पूंजी को जिंदाबाद मुर्दाबाद के शोर में उड़ा कर रख दिया।

हिटलर ने एक बार जर्मनों को संबोधित करते हुए कहा था कि आत्महत्या करने के लिए जितनी हिम्मत चाहिए, उससे आधी से भी कम हिम्मत में उस समस्या का समाधान किया जा सकता है। ये बात और है कि हिटलर ने स्वयं ने अंत मे आत्महत्या ही की थी। सादुलपुर ही नहीं, बल्कि श्री डूंगरगढ़, सुजानगढ़ समेत जहां  जहां आप तैनात रहे वहां के लोग आपकी हिम्मत, न्यायप्रियता और दबंगई के कायल हो गए। श्री डूंगरगढ़ के लोग तो आज भी आपके द्वारा छुटभैये, गली के गुंडे और आवारागर्दी करने वाले अपराधियों को थाने में समझाने और फिर रात होते ही केवल अंडरवियर में वहां से भगाने के तरीके के कायल हैं। शस्त्र की बजाय किसी को उसी की शर्म से सुधारने के आपके मौलिक तरीके का तो मैं भी प्रशंसक था।

थाने में अगर कोई गरीब पूरे रौब के साथ अपनी शिकायत दर्ज करा रहा होता तो अंदाज लग जाता था कि सीआई साहब अंदर ही हैं। आप बहुत से लोगों की हिम्मत के केंद्र थे। पर इस तरह अपनी हिम्मत, हिमायत और हौंसले की रश्मियों से सबको रोशनी देने वाले सूर्य का खुद कोयला होकर राख होना, और बिखर जाना समझ से बाहर है।

आपकी मौत की जांच होनी लाज़मी है। किसके दवाब में थे, क्या कारण था, कहां कमजोर पड़ गए,  ये तो केवल आप ही जानते हैं पर मैंने अक्सर देखा है कि दो सौ लोगों का जुलूस दो पुलिसवालों के साये में महफूज़ महसूस करता है। हजारों की नफरी के बीच खुद सिपहसालार अपने आप को इतना असुरक्षित कैसे महसूस करने लगे?

क्षेत्र के लोग आपको #सिंघम कहते थे। अजय देवगन ने एक फ़िल्म में सिंघम का अभिनय मात्र किया था, जबकि आप ने तो सिंघम के चरित्र को जिया है। अफसोस, कि आप तो सिंघम बन कर अड़े रहे पर आपका महकमा फ़िल्म की भांति शायद आपका साथ ना दे पाए। आपकी बहादुरी जितना प्रेरित करती थी, आपकी आत्महत्या उससे कहीं ज्यादा डराने में कामयाब होगी। अच्छा होता कि आपकी सर्विस बुक में आत्महत्या की अपेक्षा जिसके कारण आत्महत्या की, उसकी हत्या के मुकदमे का इंद्राज होता, तो भविष्य में दवाब झेलने वाले नहीं अपितु दवाब बनाने वाले लोग खौफ खाते।

खैर, मैं प्रार्थना करता हूँ कि आपके परिजनों को आपके आराध्य देव गुरु जंभेश्वर द्वारा दिखाए मार्ग से हिम्मत मिले, नश्वर शरीर की यादें, और आपके सुकर्मों की दास्तानें उन्हें हिम्मत दे, हौंसला दे। आपकी मौत के राज पर से पर्दा उठे। यदि आपकी आत्महत्या पुलिस विभाग में राजनैतिक दखल को जरा भी कम कर पाए, तो आपकी आत्महत्या भी बेशक़ बलिदान ही मानी जाएगी।

बहरहाल… आपके आत्महत्या से पहले तक के शौर्य, बहादुरी और जीवट को नमन… शत शत नमन

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