सीबीएसई की 12वीं बोर्ड परीक्षा का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। देशभर के छात्रों की ओर से बोर्ड परीक्षाएं रद्द करने की अपील की गई। यहां खास बात यह है कि जिस मुकदमे की चर्चा देशभर में थी थी उस मुकदमे में छात्राओं का पक्ष बेहद दमदार तरीके से रखने वाली एडवोकेट ममता शर्मा वकालत में सिर्फ 2 वर्ष का तर्जुबा रखती हैं।
बावजूद इसके लाखों छात्र ममता शर्मा के साथ आ खड़े हुए। इतना ही नहीं, एडवोकेट ममता शर्मा ने भी यह केस लड़ने के लिए छात्रों से कोई फीस नहीं ली।
इस पूरे मामले में देश भर के छात्रों को एक दूसरे के छात्रों को एक दूसरे से जोड़ने में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 33 वर्षीय वकील ममता शर्मा ने आईएएनएस से कहा, " शुरूआत में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले केवल कुछ छात्रों ने ही उनसे संपर्क किया। सोशल मीडिया जैसे ट्विटर, गूगल, वीडियो कांफ्रेंस के जरिये छात्र जुड़ते गए। देखते ही देखते बहुत जल्द 40,000 से ज्यादा छात्र उनसे जुड़ गए।"
दरअसल 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को लेकर लाखों छात्र सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव थे। छात्र परीक्षाएं रद्द करने के लिए एक प्रकार का ऑनलाइन अभियान चला रहे थे।
एडवोकेट ममता ने 7224 अभिभावकों का एक खास ग्रुप बनाया गया। ममता के मुताबिक उन्हें सबसे उन्हें सबसे अजीब यह लगा कि जब दसवीं की परीक्षाएं रद्द की जा चुकी है तो फिर 12वीं के छात्रों को किस आधार पर कोरोना महामारी के बीच परीक्षाएं देने के लिए कहा जा सकता है?
ममता ने कहा, " 3 मई को सुप्रीम कोर्ट में पहली अपील दायर की गई। अपील में सुधार के बाद 5 मई को दोबारा पिटीशन डाली डाली गई। दिल्ली में चारों ओर कोरोना संक्रमण फैले होने होने के बावजूद वह स्वयं सुप्रीम कोर्ट गई और रजिस्ट्री में अपनी पिटीशन को लेकर पूछताछ की। "
सोशल नेटवकिर्ंग के जरिए इस युवा वकील द्वारा बनाई गए 7224 अभिभावकों के ग्रुप ने ट्विटर, गूगल काल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि पर आपसी चर्चा की। इसके बाद अपनी वकील के कहने पर इस ग्रुप ने भी तमाम दस्तावेजों के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर रजिस्ट्री में अपनी पिटिशन जमा कराई जमा कराई। युवा वकील ने बताया कि 27 मई को उनकी पिटीशन स्वीकार कर ली गई और 28 से इस पर सुनवाई शुरू पर सुनवाई शुरू हुई।