नासा का महाप्रयोग: धरती को बचाने मिसाइल से उल्कापिंड का रास्ता मोड़ेगा नासा, जानिए किस तरह बचेगी धरती

नासा आज पृथ्वी को बचाने के लिए अपनी तरह का पहला 'डार्ट मिशन' लॉन्च कर सकता है। अंतरिक्ष यान की लॉन्च विंडो भारतीय समयानुसार रात 11 बजकर 50 मिनट पर खुलेगी।
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नासा आज पृथ्वी को बचाने के लिए अपनी तरह का पहला 'डार्ट मिशन' लॉन्च कर सकता है। अंतरिक्ष यान की लॉन्च विंडो भारतीय समयानुसार रात 11 बजकर 50 मिनट पर खुलेगी। यानी इसके बाद मौसम और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मिशन को लॉन्च किया जा सकता है। इस मिशन में नासा स्पेसक्राफ्ट को उल्कापिंड से टकराकर अंतरिक्ष यान की गति और दिशा में बदलाव करेगा। इससे यह पता लगाना संभव होगा कि किसी उल्कापिंड की गति और दिशा कितनी बदली जा सकती है ताकि वह पृथ्वी से न टकराए।

आइए जानते है की आखिर क्या है नासा का ये मिशन? यह कैसे काम करेगा? ऐसा कौन सा उल्कापिंड है जो इससे टकराएगा? मिशन की पूरी टाइमलाइन क्या है? और यह आपकी जान कैसे बचा सकती है?

सबसे पहले समझिए नासा का मिशन

नासा ने इस मिशन को DART (डबल एस्ट्रॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट) नाम दिया है। मिशन में नासा यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि अंतरिक्ष से पृथ्वी की ओर आने वाले उल्कापिंड को पृथ्वी से टकराने से कैसे रोका जा सकता है। मिशन के हिस्से के रूप में नासा ने एक अंतरिक्ष यान का निर्माण किया है। यह अंतरिक्ष यान डिमोर्फोस नाम के उल्कापिंड से टकराएगा। इसके बाद पता चलेगा कि टक्कर के कारण डिमोर्फोस की गति और दिशा में क्या बदलाव आया है। इसी के आधार पर यह गणना की जाएगी कि किसी उल्कापिंड की दिशा और गति में कितना बदलाव आ सकता है। मिशन की लागत लगभग 2,000 करोड़ रुपए है।

Image Credit: Oneindia Hindi
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साथ ही जानिए उस उल्कापिंड के बारे में जो अंतरिक्ष यान से टकराएगा

अंतरिक्ष यान डिडिमोस नामक उल्कापिंड से टकराएगा। डिडिमोस दो भागों वाला उल्कापिंड है, जिसे पहली बार 1996 में खोजा गया था। इस उल्कापिंड का मुख्य भाग लगभग 780 मीटर में फैला हुआ है, जिसे डिडिमोस नाम दिया गया है। वहीं छोटा हिस्सा लगभग 160 मीटर में फैला होता है, जिसे डिमोर्फस कहते हैं। वर्तमान में, छोटा भाग (डिमोर्फस) बड़े भाग (डिडिमोस) की परिक्रमा कर रहा है। हालांकि, डिडिमोस पृथ्वी से कभी नहीं टकराएगा, इसलिए यह हमारे लिए कोई खतरा नहीं है। यही कारण है कि नासा ने इसे अपने मिशन के लिए चुना है, ताकि भविष्य में अगर ऐसा उल्कापिंड पृथ्वी की ओर आ जाए तो उसे कैसे दूर रखा जा सकता है। साथ ही, डिडिमोस को मिशन के लिए चुनने का एक कारण यह भी है कि 2003 में यह पृथ्वी के करीब से गुजरा था। 2022 में यह एक बार फिर से धरती के पास से गुजरेगा।

पूरा मिशन कैसे काम करेगा?

मिशन का मुख्य भाग एक इम्पैक्टर है। यह इम्पैक्टर लगभग 23,760 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उल्कापिंड के छोटे से हिस्सों से टकराएगा। टकराने से उल्कापिंड के इस हिस्से की रफ्तार करीब 1 फीसदी कम हो जाएगी। इससे इसकी कक्षा में बदलाव आएगा। मिशन का एक हिस्सा एक सेकंडरी स्पेसक्राफ्ट भी है, जिसे इटालियन अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा बनाया गया है। इसका नाम LICIACube है। यह सेकेंडरी स्पेसक्राफ्ट टक्कर से 2 दिन पहले मुख्य स्पेसक्राफ्ट से अलग हो जाएगा। इसका काम टक्कर के दौरान तस्वीरें और अन्य जानकारी पृथ्वी पर भेजना होगा, ताकि मिशन के बारे में अपडेट मिल सकें।

Image Credit: India TV News
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कितना महत्वपूर्ण है यह मिशन?

आप सोच रहे होंगे कि गति और दिशा में इतने छोटे बदलाव से कोई फर्क पड़ेगा, लेकिन समझने वाली बात यह है कि उल्कापिंड अंतरिक्ष में सालों-साल इधर-उधर घूमते रहते हैं। यदि गति और दिशा में थोड़ा सा भी परिवर्तन होता है, तो यह परिवर्तन समय के साथ बड़ा होता जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि गति और दिशा में छोटे-छोटे बदलावों के कारण या तो उल्कापिंड पृथ्वी से नहीं टकराएगा या फिर अगर टकरा भी जाता है, तो हमें तैयारी के लिए कुछ समय मिल सकता है, जिससे नुकसान कम होगा।

यह मिशन कितना अहम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर 100 मीटर का कोई उल्कापिंड धरती से टकराए तो यह पूरे महाद्वीप पर कहर ढा सकता है।

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