हत्यारी भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, मॉब लिंचिंग पर क्यों बेबस है कानून?

“2014 से पहले ‘लिंचिंग’ शब्द सुनने में भी नहीं आता था।“- राहुल गांधी
स्वर्ण मंदिर और कपूरथला में हुई लिंचिंग की घटना

स्वर्ण मंदिर और कपूरथला में हुई लिंचिंग की घटना

सौंजन्य- ज़ी न्यूज़

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डेस्क न्यूज. भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता और जब ये भीड़ बेनकाब और बेड़र होकर किसी की भी निर्मम हत्या कर देती है चाहे वह किसी धर्म या मजहब से हो। फिर क्यूं ना हमारे देश में व्याप्त संविधान की नजरों में यह गलत हो। कानून भी कई बार कुछ नहीं कर पाता और चुप्पी साध लेता है, इस भीड़ के द्वारा महज अफवाहों और झूठ चलते मॉब लिंचिग को अनजाम दिया जाता है।

“2014 से पहले ‘लिंचिंग’ शब्द सुनने में भी नहीं आता था।“- राहुल गांधी

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने स्वर्ण मंदिर और कपूरथला में हुई लिंचिंग की घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि “2014 से पहले ‘लिंचिंग’ शब्द सुनने में भी नहीं आता था।“

संविधान का अनुच्छेद 21
21 अनुच्छेद भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है, यदि कोई अन्य व्यक्ति या कोई संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लंघन करने का प्रयास करती है, तो पीड़ित व्यक्ति को सीधे सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार है।

फिर चर्चाओं में क्यों आया मॉब लिंचिग

स्वर्ण मंदिर और कपूरथला में हुई लिंचिंग ने पूरे देश में हलचल मचा कर दी है। रविवार को कपूरथला के निजामपुर गांव के एक गुरुद्वारे में युवक को पीट-पीटकर मार दिया गया। उस पर निशान साहिब (सिखों का धार्मिक झंडा) के अपमान का आरोप लगा था। लेकिन फिर बाद में पुलिस ने मामला चोरी का बताया। जिस शख्स पर चोरी का आरोप था, उसे कई घंटों तक कमरे में बंद करके रखा गया, लेकिन गुस्साई भीड़ ने कमरे में जबरन घुसकर उस पर हमला किया। तलवार से भी वार किए गए। इस घटनाक्रम में तीन पुलिसवाले भी जख्मी हो गए। इससे पहले शनिवार को एक अज्ञात शख्स स्वर्ण मंदिर के अंदर मौजूद ग्रिल्स को फांदकर उस जगह पहुंच गया था, जहां पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब रखी हुई थी। शख्स ने वहां रखी तलवार भी उठा ली, तब ही लोगों ने उसे पकड़कर पीटना शुरू कर दिया था। इस मामले में मृतक के खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया है। गोल्डन टेंपल की ही एक घटना पिछले हफ्ते (15 दिसंबर) चर्चा में आई थी। तब वहां एक शख्स ने पवित्र ग्रंथ 'गुटका साहिब' को स्वर्ण मंदिर के तालाब में फेंक दिया था।

क्या है मॉब लिंचिग ?

भीड़ द्वारा किसी व्यक्ति की हत्या की घटना को मॉब लिंचिंग कहा जाता है, भीड़ में से किसी एक व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, जिसके कारण ऐसी घटनाओं पर कार्रवाई बहुत कम या ना के बराबर की जाती है। ज्यादातर देखा गया है कि ऐसी घटनाओं के पीछे किसी न किसी धर्म से जोड़ दिया जाता हैं। जिसके कारण समाज में दो समुदाय के बीच में माहौल खराब होता है।

कुष्ठ रोगियों की सेवा में मगन रहे वाले शख्स को 22 जनवरी 1999 में परिवार सहित भीड़ ने मार दिया।

कुष्ठ रोगियों की सेवा में मगन रहे वाले ग्राहम स्टेन्स अपने परिवार के साथ बहुत खुश थे उनका काम लोगों की सेवा करना था और दिनभर वो इसी काम में लगे रहते थे, लेकिन एक बार उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि जिसके बाद मानवता के लिए अपना जीवन देने वाला व्यक्ति उसी समाज में रह रहे इंसान रुपी देत्यों की भीड़ का शिकार हो बैठे।

क्योंकि उन पर लोगों का धर्म परिवर्तन कराने का शक था। महज भीड़ के शक की वजह से ग्राहम स्टेन्स की परिवार सहित लिंचिग कर दी गई। ये घटना 22 जनवरी 1999 की है।

<div class="paragraphs"><h3>भारत में सड़क से लेकर संसद तक मॉब लिंचिंग पर बहस हो रही है</h3><p></p></div>

भारत में सड़क से लेकर संसद तक मॉब लिंचिंग पर बहस हो रही है

सड़क से लेकर संसद तक मॉब लिंचिंग पर बहस

आज के समय में भारत में सड़क से लेकर संसद तक मॉब लिंचिंग पर बहस हो रही हैं संसद में भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया गया है देश के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं देखने को मिलती हैं, जिससे आम जनता में एक धर्म के खिलाफ दूसरे धर्म के लिए विपरीत भावनाएँ पैदा हो जाती हैं, जिस के कारण निर्दोष लोगों की हत्या कर दी जाती है।

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