UNICEF सर्वे: भारतीय माँ-बाप अपने बच्चो पर 30 तरह की हिंसा करते है

सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बने और उनका नाम रोशन करे। भारत में खासतौर पर बच्चे जब तक खुद समझदार नहीं हो जाते माता-पिता उन्हें अनुशासन में रखने के लिए कभी प्यार तो कभी शख्ती का इस्तेमाल करते हैं...
UNICEF सर्वे: भारतीय माँ-बाप अपने बच्चो पर 30 तरह की हिंसा करते है

न्यूज़- सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बने और उनका नाम रोशन करे। भारत में खासतौर पर बच्चे जब तक खुद समझदार नहीं हो जाते माता-पिता उन्हें अनुशासन में रखने के लिए कभी प्यार तो कभी शख्ती का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कई बार माता-पिता जाने अनजाने में बच्चों को अच्छी सीख देने के इरादे से उनको मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दे रहे होते हैं। इसे लेकर यूनिसेफ द्वारा किए गए एक सर्वे में बड़ा खुलासा हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) दुनियाभर में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही बच्चों के विकास और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों पर काम कर रहा है। हाल ही में यूनिसेफ ने भारत के पांच राज्यों में एक सर्वे किया जिससे पता चला है कि माता-पिता भी अपने बच्चों पर अत्याचार करते हैं। 'पैरेंटिंग मैटर्स: एक्जामिनिंग पैरेंटिंग एप्रोचेज एंड प्रैक्टिसेज' नाम का यह अध्ययन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में कराया गया।

अध्ययन में पता चला कि भारतीय परिवारों में अनुशासन सिखाने के प्रयास के तहत 6 साल तक बच्चों के साथ 30 अगल-अगल तरह की हिंसा को अंजाम दिया जाता है। इनमें शारीरिक, मौखिक और कभी-कभी मानसिक उत्पीड़न भी शामिल है। सर्वे में पता चला है कि लड़के और लड़कियों को अपने बचपन के दौरान उत्पीड़न झेलना पड़ता है। परिवार में, स्कूल में और सामुदायिक स्तर पर भी अनुशासन सिखाने के लिए बच्चों को दंडित किया जाता है।

यूनिसेफ ने अपने सर्वे में बच्चों पर होने वाली 30 तरह की हिंसाओं का जिक्र किया है। जिसमें जलाना, चिकोटी काटना, थप्पड़ मारना, छड़ी, बेल्ट, छड़ आदि से पीटने को शारीरिक हिंसा में रखा गया है। वहीं, दोषारोपण, आलोचना करना, चिल्लाना, भद्दी भाषा का इस्तेमाल करने को मौखिक हिंसा की श्रेणी में रखा गया है। इसके अलावा बच्चों को खाना ना देना, बाहर जाने से रोकना, भेदभाव करना, मन में भय पैदा करना जैसे उत्पीड़न को भावनात्मक उत्पीड़न में शामिल किया गया है।

बच्चों का बचपन से ही अपने परिवार के किसी अन्य बच्चों के साथ तुलना करने को भी हिंसा कहा गया है। इसके अलावा बच्चे घर में ही माता-पिता के बीच झगड़े, परिवार के बाहर शारीरिक हिंसा देखते हैं जो उनके कोमल मन पर बुरा प्रभाव डालता है। सर्वे में कहा गया है कि लड़के और लड़कियों की परवरिश भी बहुत कम उम्र से ही अलग-अलग तरीके से की जाने लगती है। रोजमर्रा की बंदिशें और घर के कामकाज का बोझ लड़कियों पर बचपन से ही डाला जाता है।

मुख्यतौर पर बचपन में बच्चों की देखभाल करने का जिम्मा मां पर होता है, पिता इन चीजों में कम शामिल होते हैं। मां ही बच्चों को गलत-सही का पाठ पढ़ाती हैं, उन्हें लोरियां और गाने सुनाती हैं, पुरुष सिर्फ बच्चों को बाहर ले जाते हैं। भारत में यूनिसेफ की प्रतिनिधि यास्मीन अली हक ने कहा कि बच्चों को अपने जीवन में 6 साल तक माता-पिता से विभिन्न रूपों में हिंसा मिलती है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय जब विश्व में कोरोना फैला है, आवश्यक सेवाओं के रूप में बाल संरक्षण सेवाओं को नामित करने की तत्काल जरूरत है।

Related Stories

No stories found.
logo
Since independence
hindi.sinceindependence.com