कवर स्टोरी. बीते दिनों सोश्यल मीडिया पर रणदीप हुड्डा का वीडियो वायरल हुआ। जिसमें वे मायावती के बारे में वो ऐसी बातें कह रहे हैं जो मायावती तो क्या किसी भी महिला के लिए नहीं कही जा सकती, लेकिन पूरे मामले के बीच एक बात समझ से परे है कि करीब 9 साल पुराने वाीडियो को एक दम से वायरल कर क्यों बवाल मचाया गया।
वीडियो के वायरल होते ही यूजर्स ने उन्हें कोसना‚ नसीहत देना‚ निचली सोच वाला जातीवादी और सेक्सिस्ट कहना शुरू कर दिया‚ लेकिन किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि करीब 9 साल पुराने वीडियो को अचानक किसने वायरल कर दिया।
ये ठीक उसी तरह है जैसे किसी ने वॉट्सएप पर मैसेज किया और लोग आगे फारवर्ड करने के साथ खुद ज्ञानी बनकर नसीहत भी देते चले जाएं।
ऐसे में इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस मामले में भी किसी टूल किट का इस्तेमाल नहीं हुआ हो। यहां आपको बता दें कि हम रणदीप का वीडियो 9 वर्ष बाद क्यों वायरल हुआ या किया गया इस बात को समझाना चाह रहे है न कि उनके वीडियो को सही ठहरा रहे हैं।
हम वीडियो में उनकी ओर से कही गई बात का किसी भी तरह से समर्थन नहीं करते। लेकिन कई बार कई शख्सियतें सार्वजनिक जीवन में कुछ ऐसा कह जाती हैं जिसका उन्हें सार्वजनिक तौर पर ही खामियाजा भुगतना पड़ जाता है।
लेकिन आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि बीते कुछ माह से सोशल मीडिया पर किसी की इमेज बिगाड़ने और सुधारने के लिए टूलकिट का इस्तेमाल तेजी से हो रहा है। फिर चाहे वो मामला किसान आंदोलन को लेकर हो या किसी राजनीतिक पार्टी का, कहीं न कहीं सोशल मीडिया पर टूलकिट के माध्यम से इमेज ब्रांडिंग और इमेज गिराने का काम किया जा रहा है।
आप कहेंगे कि अब ये टूलकिट क्या बला है जो इससे किसी की इमेज धूमिल की जा सके या किसी को हीरो बनाया जा सके। तो पहले आप इसे समझ लिजिए।
असान भाषा में समझें तो यह किसी दल द्वारा किसी प्रोटेस्ट को ऑनलाइन या ऑफलाइन चलाने की प्लानिंग होती है। जब हमारे पास इंटरनेट और मोबाइल नहीं था तब प्लानिंग डायरी में लिख कर यानि वर्तमान की भाषा में कहें तो हार्ड कॉपी रख ली जाती थी। जैस कि किस तरह के नारे लगाने हैं, किस स्थान पर लोगों को इकट्ठा करना है और किस बात पर जोर देना है वगैरह वगैरह।
बहरहाल रणदीप के मामले पर लौटते हैं… अब एक बार के लिए मान लेते हैं कि इस टूलकिट का इस्तेमाल रणदीप हुड्डा की इमेज को डाउन करने के लिए किया गया…. तो उनके विरोधी क्या करेंगे उनका कोई पुराना विविदित विडियो निकालेंगे…. फिर उसे किन किन प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करना है? कब पोस्ट करना है? इसे पोस्ट करेगा कौन? ये सब पूरी प्लानिंग डिजिटल टूलकिट ही कहलाएगी। बस मुद्दा यही है कि रणदीप हुड्डा के 9 वर्ष पुराना वीडियो को अब जाके वायरल करने की क्या जरूरत पड़ी। क्या साल 2012 में यूट्यूब या ट्वीटर या डिजिटल मीडिया एक्टिव नहीं था? बिल्कुल था‚ 2012 कोई ज्यादा पुरानी बात नहीं है।
इन दिनों रणदीप भले ही साेशल मीडिया पर ट्रोल हो रहे हों, लेकिन वे वर्ल्ड एन्वायर्नमेंट डे पर बीच पर सफाई करते नजर आए। इसकी तस्वीर उन्होंने अपने सोशल एकाउंट पर शेयर की।
सोनीपत में जहां से वे स्कूलिंग कर रहे थे वहीं थिएटर भी किया, लेकिन खुद की तरह डॉक्टर बनाने के लिए पेरेंट्स ने उन्हें डीपीएस भेज दिया। मार्गदर्शन की कमी के चलते वे थोड़े गुस्सेल रहे। यहां तक की स्कूल फेयरवेल पर रणदीप 'डॉन' हुड्डा का टाइटल उन्हें मिला। फिर 'जाट' बॉय कॉम्प्लेक्स होने पर वे पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया गए तो पहले ही साल फ़ेल हो गए।
तब ख़र्चे और जीवन सीखने के लिए कभी वेटर बने तो कभी कारें धोईं, बर्तन भी मांजे और टैक्सी भी चलाई। इसके बाद कहीं जाकर मीरा नायर की मॉनसून वेडिंग में ब्रेक मिला। कुल मिलाकर इतने संघर्ष के बाद बॉलीवुड में बिना किसी स्टार बैकग्राउंड के वो अपने बूते आज जिस मुकाम पर हैं वो किसी भी स्ट्रगलर को सीख देने वाला हैं। ये कि भाई स्टार सिर्फ स्टारकिड ही नहीं बनते।
एक्टिंग नाम की भी कोई चीज होती है। फिल्मों की बात करें तो 'सुल्तान' में भाईजान से शारीरिक मशक्कत करवाने से पहले कई फिल्मों में अपने शानदार अभिनय से खुद को साबित कर चुके हैं। जिस सादगी से रणदीप जोख़िम भरा अभिनय करते हैं वो लाजवाब है।
वीडियो वायरल होने के बाद रणदीप को क्या नुकसान हुआ उससे आप भली भांती परिचित है। दूसरा नुकसान ये कि यूनाइटेड नेशन ने जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण सम्मेलन (CMS) के एम्बेसडर के पद से हटा दिया। CMS सचिवालय ने कहा कि जब हुड्डा को फरवरी 2020 में प्रवासी प्रजातियों के लिए CMS एंबेसडर के रूप में नियुक्त किया गया था, उस समय संगठन को इस वीडियो की जानकारी नहीं थी।