फ्रांस का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने उसकी पीठ में छुरा घोंपा है। उन्होंने दोनों देशों के अपने राजनयिकों को भी वापस बुला लिया है। फ्रांस के इस सख्त लहजे की सबसे बड़ी वजह सबमरीन हैं। दरअसल, ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस से डीजल से चलने वाली पनडुब्बियों के लिए 5 लाख करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने AUKUS सौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसमें ब्रिटेन और अमेरिका संयुक्त रूप से ऑस्ट्रेलिया के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का निर्माण करेंगे। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ पुराना सौदा रद्द कर दिया।
ऐसे में अब सवाल उठता है कि फ्रांसीसी पनडुब्बियों और यूएस-यूके पनडुब्बियों में क्या अंतर है? परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां किन मायनों में बेहतर हैं? किन देशों के पास कितनी पनडुब्बियां हैं? पनडुब्बी शक्ति में भारत कहां खड़ा है? आइए जानते है…..
यह इलेक्ट्रिक मोटर का उपयोग करता है जो डीजल इंजन द्वारा चार्ज किया जाता है। ऐसे इंजन को चलाने के लिए हवा और ईंधन की जरूरत होती है। इसका मतलब है कि उन्हें बहुत बार समुद्र की सतह पर आना पड़ता है। बता दें की दुनिया की अधिकांश पनडुब्बियां डीजल-इलेक्ट्रिक पावर्ड हैं।
परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी भी सामान्य पनडुब्बियों की तरह ही दिखती है। मुख्य अंतर वह ऊर्जा है जिसके साथ वे चलते हैं। परमाणु रिएक्टर एक शक्ति स्रोत है जो लंबे समय तक चलता है। इस पनडुब्बी की एक और विशेषता यह है कि पारंपरिक दहन इंजन के विपरीत, इस पनडुब्बी को हवा की आवश्यकता नहीं होती है। यानी एक परमाणु पनडुब्बी समुद्र की सतह पर आए बिना सालों तक काम कर सकती है।
पहली परमाणु संचालित पनडुब्बी अमेरिका द्वारा 1954 में बनाई गई थी। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के अनुसार, सभी 68 अमेरिकी पनडुब्बियां परमाणु संचालित हैं और उनमें से 14 SSBNs हैं। उसके बाद 1957 में सोवियत संघ ने पहली परमाणु संचालित पनडुब्बी, K-3 लेनिंस्की कोस्मोसोल लॉन्च की। रूस के पास 49 पनडुब्बियां हैं, जिनमें से 29 परमाणु संचालित हैं। इसमें 11 SSBNs हैं।
चीन ने 1974 में अपनी पहली परमाणु संचालित पनडुब्बी का निर्माण किया। बीजिंग के पास 59 ऑपरेशनल पनडुब्बियां हैं, जिनमें से 12 परमाणु संचालित हैं और उनमें से आधी एसएसबीएन हैं।