करप्शन पर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने जारी की रिपोर्ट, ये है भारत की रैंकिंग

विश्व की जानी मानी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने मंगलवार को 'करप्शन परेसेप्शन इंडेक्स' यानि CPI ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी की है. इस सर्वे में दुनिया के 180 देशों में भ्रष्टाचार के लेवल को बताया गया है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट

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हाल ही में सीपीआई यानि 'करप्शन परेसेप्शन इंडेक्स' ने अपनी एक रिपोर्ट जारी करते हुए सरकारों को संबोधित कर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने ट्विटर पर अपनी बात कही है.

संस्था कहती है कि , ''मीडिया संस्थानों और एनजीओ को बंद करने, मानवाधिकारों के लिए लड़ने और ग़लत कामों का विरोध करने वालों की हत्या करने, नेताओं और पत्रकारों की जासूसी करने से आपके देश का करप्शन परेसेप्शन इंडेक्स नहीं सुधरने वाला. इसके लिए आपको उल्टा चलना होगा.''

भारत की सरकार पर मीडिया, एनजीओ पर लगाम लगाने और पत्रकारों सहित कई हस्तियों की जासूसी के आरोप लगते रहे हैं. बहरहाल इस साल जारी सूची में, भारत की रैंकिग में एक स्थान का सुधार हुआ है. भारत अब 180 देशों में 85 वे नंबर पर है. वही हालांकि 100 अंको के पैमाने पर दिया जाने वाले स्कोर में कुछ खासा सुधार नहीं हुआ है. भारत के अंक पहले की तरह 40 नंबर पर ही हैं.

वहीं दूसरी और भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान का प्रदर्शन सुधरने की बजाय और ख़राब हो रहा है. संस्था ने पाक की रैंकिंग में सूची 124 से गिरकर 140 हो गई है.

वहीं अगर इस साल की बात करें तो दुनिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन डेनमार्क का रहा और वह नंबर एक पर बना है. दूसरे नंबर पर फिनलैंड, तीसरे पर न्यूज़ीलैंड, चौथे स्थान पर नॉर्वे और पांचवें पर सिंगापुर है.

सबसे खराब देश की बात करें तो इसमें दक्षिणी सूडान को सबसे लास्ट में रखा गया है. उससे पहले सीरिया, सोमालिया, वेनेज़ुएला और यमन का नंबर है.

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दुनिया में भ्रष्टाचार कोरोना काल के पहले जैसा

संस्था का कहना है कि दुनिया में भ्रष्टाचार कोरोना काल के पहले जैसा ही है और बीते दो सालों में करप्शन में कोई खास बदलवा नहीं हुआ है. रिपोर्ट में बताया गया है कि किए गए वादों के बावजूग भी दुनिया के 131 देशों ने पिछले 10 सालों में करप्शन से निपटने की दिशा में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं की है.

संस्था ने दुनिया में मानव अधिकारों और लोकतंत्र को ख़तरे में बताया है. रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के दो तिहाई देशों को 50 फ़ीसदी से भी कम नंबर दिए गए हैं.

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