अमेरिका और रूस में किसे नाराज कर रहा भारत, क्या होंगे इसके परिणाम?

आज भारत अपने हित समझता है और दुनिया को भी समझाना चाहता है कि हर बार सिर्फ भारत ही समझौता नहीं करेगा, विरोध और समर्थन के बीच भी एक विमर्श और भी हो सकता है जिसे बीच का रास्ता कहा जा सकता है
अमेरिका और रूस में किसे नाराज कर रहा भारत, क्या होंगे इसके परिणाम?

अमेरिका और रूस में किसे नाराज कर रहा भारत, क्या होंगे इसके परिणाम?

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भारत की पहचान पूरी दुनिया में एक अहिंसा को मानने वाले देश के रुप होती रही है लेकिन रुस और यूक्रेन युद्ध में ये छवि कुछ बदलती हुई नजर आ रही है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन द्वारा बनाया गया दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा विमान कुछ दिन पहले यूक्रेन में नष्ट कर दिया, इसके अलावा रूस ने यूक्रेन कई एयरपोर्ट को तबाह कर दिया है।

रूस ने खार्किव में यूक्रेनी सेना मुख्यालय को क्षतिग्रस्त कर दिया है। इसके अलावा कीव में रॉकेट हमलों से कई इमारतों को भी नुकसान पहुंचा है।

रूस और यूक्रेन के बीच जारी इस जंग में अब तक 2 हजार से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि इससे दोगुना लोग घायल हुए हैं। मरने वालों में कई बच्चे भी हैं।

बता दें कि यूक्रेन में रूसी मिसाइल हमले से एक भारतीय और एक बांग्लादेशी की भी मौत हुई है।

  • रूस के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया है कि सशस्त्र बलों ने यूक्रेन में 1,600 से अधिक सैन्य ठिकानों को नष्ट कर दिया है

  • यूक्रेनी सेना ने 62 कमांड पोस्ट और संचार केंद्रों, 39 एस-300, बुक एम-1 और ओसा वायु रक्षा मिसाइल प्रणालियों और 52 रडार स्टेशनों को नष्ट कर दिया।

  • रूस ने माना है कि उसने अब तक युद्ध में 498 सैनिकों को खो दिया है। इसके अलावा 1,597 घायल हैं।

  • यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का दावा है कि उनकी सेना ने एक हफ्ते में 9,000 रूसियों को मार गिराया है

  • रूस पर कड़े प्रतिबंधों ने कच्चे तेल की कीमतों को 120 डॉलर प्रति बैरल पर धकेल दिया। इससे पेट्रोल और डीजल महंगा हो सकता है।

  • संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि रूसी हमले के बाद से करीब दस लाख लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं। यूक्रेन में रूस के हमलों में अब तक 227 नागरिक मारे गए हैं और 525 अन्य घायल हुए हैं।

दुनिया को समझाना चाहता है भारत
आज भारत अपने हित समझता है और दुनिया को भी समझाना चाहता है कि हर बार सिर्फ भारत ही समझौता नहीं करेगा, विरोध और समर्थन के बीच भी एक विमर्श और भी हो सकता है जिसे बीच का रास्ता कहा जा सकता है।

अब बात करते है कि रुस और यूक्रेन के साथ भारत के संबंध

विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत के यूक्रेन के साथ सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंध हैं। भारत सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था। इसलिए यहां के निवासी भारतीयों के लिए काफी सम्मान करते हैं। भारत ने यहां मई 1992 में राजधानी कीव में अपना दूतावास खोला। वहीं, यूक्रेन ने एशिया में अपना पहला मिशन फरवरी 1993 में दिल्ली में खोला था।

पिछले ढाई दशक और खासकर 2018-19 में करीब 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर का कारोबार हुआ था। यूक्रेन से भारत को निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएं कृषि उत्पाद, प्लास्टिक और पॉलिमर हैं। कीव खाना पकाने के तेल का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है। पिछले साल भारत में लगभग 74 प्रतिशत सूरजमुखी तेल यूक्रेन से आयात किया गया था। इसके साथ ही भारत फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी, रसायन, खाद्य उत्पादों का आयात करता है।

जब से युक्रेन ने युरोपियन यूनियन में शामिल होने की कवायद शुरु की है अमेरिका खुल कर युक्रेन के समर्थन में आ गया है, और अमेरिका को साथ मिला है पूरे युरोपियन यूनियन का,युक्रेन के पड़ोसी देशों ने अब खुलकर हथियार और रसद के साथ साथ पैसा भी दे रहे हैं। ऐसे में विरोध की वो लाइन बहुत साफ हो चुकी है कि कौन किसके साथ है औऱ किसके खिलाफ है। न्यूट्रल रहने वाले देशों को अपनी बात पूरी प्रबलता से उचित ठहरानी पड़ रही है यही वजह है कि भारत के लिए राहें मुश्किल होती जा रही है ।

रूस और भारत को एक दूसरे पर कितना भरोसा

रूस के साथ भारत के संबंध सोवियत संघ के समय से ही मजबूत रहे हैं। रक्षा मामलों में रूस के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध 1970 से बहुत मजबूत रहे हैं। भारत अपने हथियारों का करीब 50 फीसदी रूस से खरीदता है। इसके साथ ही भारत अपने कच्चे तेल का 80 प्रतिशत से अधिक रूस से आयात करता है, जबकि 25 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का आयात करता है।

भारत हथियारों के लिए रूस पर ज्यादा निर्भर है। 2011 से 2015 तक भारत ने अपने करीब 70 फीसदी हथियार रूस से खरीदे थे। इसके बाद 2016 से 2020 तक हालांकि इसमें गिरावट दर्ज की गई और यह घटकर करीब 49 फीसदी पर आ गई है। हालांकि, दोनों देशों के बीच रक्षा सौदों में S-400 रक्षा मिसाइल प्रणाली सौदा महत्वपूर्ण है।

जब जब भारत को जरुरत पड़ी रुस ने इस्तेमाल किया अपना वीटो

पहली बार वीटो शक्ति का उपयोग: रूस ने भारत के सामरिक, आर्थिक और व्यावसायिक हितों के लिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत किया है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र में लगभग 4 बार अपनी वीटो शक्ति का उपयोग करके भारत के आंतरिक हितों की भी मदद की है। रूस ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिए अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग किया जब पाकिस्तान ने 1957 में संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को विसैन्यीकरण करने के लिए भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया। उस समय सोवियत संघ ने अपनी वीटो शक्ति का उपयोग करते हुए पाकिस्तान के प्रस्ताव को छोड़ दिया।

<div class="paragraphs"><p><strong>VETO Power</strong></p></div>

VETO Power

दुसरी बार 1961 में वीटो पावर का इस्तेमाल

दुसरी बार 1961 में पुर्तगाल के हाथों से गोवा की आजादी के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल किया गया। पुर्तगाल ने संयुक्त राष्ट्र को गोवा पर कब्जा करने के लिए लिखा था।

तीसरी बार 100वीं वीटो शक्ति का उपयोग

1962 में तीसरी बार अपनी 100वीं वीटो शक्ति का उपयोग करते हुए आयरलैंड के प्रस्ताव को हटा दिया गया था, जिसमें उसने भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करके बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने की बात कही थी। रूस के इस कदम ने कश्मीर मुद्दे पर तीसरे देश की मध्यस्थता को अस्वीकार्य बना दिया।

चौथी बार पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे पर वीटो शक्ति का इस्तेमाल

चौथी बार, रूस ने अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया जब पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की कोशिश कर रहा था। 1971 में, बांग्लादेश की मुक्ति के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और पाकिस्तान ने फिर से संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को प्रस्तुत किया। उस समय भी रूस ने अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर भारत से दोस्ती की थी।

पश्चिमी देशों के बिना रूस से कैसे रहे दोस्ती
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती पश्चिमी देशों को सरल रखना है। रूस और यूक्रेन के बीच इस युद्ध ने भारत को कूटनीतिक रूप से असहज कर दिया है। राजनयिक मामलों के जानकारों की माने तो भारत को पश्चिम और रूस के बीच संतुलन बनाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने एक साक्षात्कार में कहा है कि भारत की कूटनीति के लिए यह सबसे बड़ा कठिन दौर है। उन्होंने कहा है कि भारत के लिए चुनौती यह है कि पश्चिम को अलग किए बिना रूस के साथ अपनी दोस्ती कैसे कायम रखी जाए।

भारत दोंनों देशों का साथ देने में न्यूट्रल क्यों

इस समय अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, बुल्गारिया, ब्राजील, कनाडा, भूटान, कंबोडिया, डेनमार्क, अफगानिस्तान, मिस्र, घाना, ग्रीस, इंडोनेशिया, आयरलैंड, इटली, जापान समेत करीब 141 देश यूक्रेन के समर्थन में खड़े हैं। जिनके साथ भारत के आर्थिक, व्यापारिक और सामरिक संबंध हैं। अब अगर भारत ऐसे संकट की घड़ी में यूक्रेन के साथ खड़ा होता है तो उसका सबसे अच्छा दोस्त छूट जाएगा और अगर रूस का समर्थन करता है, तो अमेरिका सहित दुनिया के 141 देशों के साथ संबंधों में खटास आ जाएगी। इसलिए भारत इस मामले में तटस्थ रुख अपना रहा है।

अमेरिकी सांसदों ने 'भारत-अमेरिका संबंधों' पर एक बैठक में भारत के रुख की आलोचना की। तब से इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या CAATSA के तहत वाशिंगटन भारत पर कुछ प्रतिबंध लगा सकता है। दरअसल, भारत ने रूस से एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था। भारत और रूस के बीच इस रक्षा सौदे पर CAATSA के तहत जो बाइडेन प्रशासन कार्रवाई कर सकता है।

जानते हैं आसान भाषा ये CAATSA है क्या ?

‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेक्शन एक्ट’ है जिसे हम आसान भाषा में कहें तो कई तरह के प्रतिबंध को लगा कर अपने अमेरिका के द्वारा अपने विरोधियों का सामना किया जाता। बता दें कि अमेरिका ने इस कानून का उपयोग अपने विरोधियों पर प्रतिद्वंद्वियों लगा कर इसका प्रयोग दंडात्मक कार्रवाई की तरह करता है। पहली बार इस कानून को लेकर 2 अगस्त 2017 को लाया गया, बाद में इसे जनवरी 2018 को लागू किया गया। बता दें कि इस कानून का मकसद अमेरिका के दुश्मन देशों ईरान, रूस और उत्तर कोरिया की आक्रामकता का मुकाबला करना है। हालांकि अब भारत के लिए खतरे की तलवार लटक रही है और इसकी वजह रूस की S-400 मिसाइल बनी है।

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